spartacus


Spartacus great warrior
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Well, there are many great warriors in this world. Which was one of them. Spartacus

Spartacus was born about 109 BC place in Thrace. A lot of stories are heard about spartacus. And all the stories are told real. From the story of Spartacus. many people inspire some to rise above their life. Many people like to hear the stories of the bravery of the spartacus.

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वैसे तो इस दुनिया में बहुत से महान योद्धा हुए है। जिनमें से एक था। spartacus.

Spartacus का जन्म लगभग 109 ई.पू. में Thrace में हुआ था। spartacus के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनाई जाती है। और सभी कहानी असली बताई जाती है। spartacus की कहानी से बहुत से लोगो अपने जीवन से ऊपर उठकर कुछ करने को प्रेरित करती है। बहुत से लोग spartacus के बहादुरी के किस्से को सुनने पसंद करते है।

Spartacus is also called Thracian Gladiator (real name unknown). Spartacus was a slave. Who, along with some other slaves, fought a very dangerous war with the Roman Empire.It is said that spartacus was taught to fight in the school named Capua. And Spartacus had made a Thracian gladiator from the inferior. Spartacus also fought a lot in the school named Capua. But all these battles were for his practice.

Spartacus को Thracian gladiator (असली नाम अज्ञात) भी कहते है। spartacus एक गुलाम था। जिसने कुछ और गुलामों के साथ मिलकर रोमन साम्राज्य के साथ एक बहुत की खतरनाक युद्ध लड़ा। ऐसा बताया जाता है की spartacus को Capua नाम के स्कूल मैं लड़ने की शिक्षा दी गई थी। और वंही से स्पार्टाकस एक Thracian gladiator बना था। स्पार्टाकस ने Capua नाम के स्कूल में भी बहुत सी लड़ाई लड़ी। लेकिन ये सभी लड़ाई उसके अभ्यास के लिए थी।

Spartacus was a courageous warrior. And there was such a passion of freedom in spartacus. Its just matter of one day. Spartacus escaped from Rome prison with some other slaves. After escaping from jail, spartacus inducted other slaves and their leaders into an army. And went out to war with Rome.

Spartacus एक साहसी योद्धा था। और साथ spartacus के अन्दर आजादी का ऐसा जुनून था। एक दिन की बात है। spartacus अन्य कुछ गुलामों के साथ मिलकर रोम की जेल से भाग गया। जेल से भागने के बाद spartacus ने अन्य गुलामों और उनके नेताओ को एक सेना में इक्क्ठा किया। और रोम के साथ युद्ध करने निकल पड़ा।

Spartacus fought many battles with Rome, and won. Because of all these battles, Rome saw a great rebellion of his slaves. It was such a rebellion. Who had greatly feared Rome and his entire army from inside.

spartacus ने रोम के साथ कई लड़ाई लड़ी, और जीता। इन सभी लड़ाई के कारण रोम ने अपने गुलामों का एक बहुत बड़ा विद्रोह देखा। ये एक ऐसा विद्रोह था। जिसने रोम और उसकी पूरी सेना को अन्दर से बहुत ही भय भीत कर दिया था।

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Before any spartacus, no single slave had so much fear of Rome. Then for a few years gradually the number of slaves of Rome increased in the army of spartacus. And the army of spartacus went slowly growing. Considering its army, spartacus once again thought of abolishing the empire of Rome. And then 71 B.C. In spartacus, together with his whole army, once again attacked his entire army with Rome. But this time he could not win from Rome. And was killed fighting in the war.

spartacus से पहले किसी भी अकेले गुलाम ने रोम को इतना भय भीत नहीं किया था। फिर कुछ सालों तक धीरे-धीरे रोम के गुलामों की संख्या spartacus की सेना में बढ़ती गई। और spartacus की सेना धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। अपनी सेना को देखते हुए spartacus ने एक बार फिर से रोम के साम्राज्य को खत्म करने की सोची। और फिर 71 ई.पू. में spartacus ने अपनी पूरी सेना के साथ मिलकर एक बार फिर अपनी पूरी सेना के साथ रोम पर हमला कर दिया। लेकिन इस बार वो रोम से नहीं जीत सका। और युद्ध में लड़ते हुए मारा गया।

Spartacus was a brave and fearless warrior. His name will always remain immortal in the history pages.

spartacus एक बहादुर और निडर योद्धा था। इतिहास के पन्नो में उसका नाम हमेशा अमर रहेगा।


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Haridwar

हरिद्वार-Haridwar

Haridwar-Haridwar is a holy city of Haridwar district of Uttarakhand and the main pilgrimage center of the Hindus. This is a very ancient city. Haridwar is one of the seven holy places of Hindus. After traveling 253 km from its source Gaumukh (Gangotri Glacier) at an altitude of 313 9 meters, the river Ganga first entry into the plains of the Haridwar, hence Haridwar is also known as 'Gangadwar'; Which means the place where Gangaji enters the plains. Haridwar means "gate of Hari (God)".

हरिद्वार-हरिद्वार, उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। ३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के नाम से भी जाना जाता है; जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ "हरि (ईश्वर) का द्वार" होता है।

According to the postwar Hindu religious texts, Haridwar is the place where a few drops of nectar were forgotten due to a puddle when Dhanvantar was taking the pitcher after the sea monastery. It is important to note that the story related to Aquarius or Maha Kumbh is not mentioned in any Puran. It has been mentioned in the form of an intermediate form. So the form of the story has also been different. It is believed that the drops of nectar dropped on four places. The places are: - Ujjain, Haridwar, Nasik and Prayag. In these four places, the Maha Kumbha is organized every alternate 12th year. Mahakumbh is organized in the second place after three years from the Mahakumbh of one place. Thus, after completing one cycle in the twelfth year, the time of Maha Kumba comes in the first place. Hundreds of pilgrims from all over the world, devotees and tourists gather here to celebrate this festival and bathing on the banks of River Ganges by the method of Shastra etc.

पश्चात्कालीन हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब धन्वन्तरी उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। ध्यातव्य है कि कुम्भ या महाकुम्भ से सम्बद्ध कथा का उल्लेख किसी पुराण में नहीं है। प्रक्षिप्त रूप में ही इसका उल्लेख होता रहा है। अतः कथा का रूप भी भिन्न-भिन्न रहा है। मान्यता है कि चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग। इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर १२वें वर्ष महाकुम्भ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होकर फिर पहले स्थान पर महाकुम्भ का समय आ जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।

There are many ancient temples in Haridwar whose stories are older than those temples.

हरिद्वार में बहुत से प्राचीन मंदिर है जिनकी कहानियाँ उन मंदिरो से भी पुरानी है

According to one belief, the place where the drops of nectar fell, it is believed to be Brahma Kund on everybody's pauri. 'Har Ki Pauri' is considered the most sacred ghat of Haridwar, and the whole community of devotees and pilgrims from all over India come here to take a bath on festivals or holy days. Bathing here is considered to be the salvation.

एक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। 'हर की पौड़ी' हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है।

Chandi devi temple- This famous temple of Mata Chandi Devi is situated on the eastern edge of river Ganges, on the peak of the Shivalik-type 'Nil Mountain'. This temple was built by King Suchet Singh of Kashmir in 1929 AD. According to a legend of Skanda Purana, the goddess Chandi was killed here by the local monster kings Shumbha-Nishumbha's senanayaka Chand-Munda; After which the name of this place falls to Chandi Devi. It is believed that the main statue was established by Adi Shankaracharya in the 8th century. The temple is situated at a distance of 3 km from Chandighat. It is difficult to climb in comparison to Mansa Devi, but there are many famous temples in both the ways of climbing and landing here. With the introduction of the Ropeway Trolley facility, most travelers travel here easily, but face a long queue. Apart from the grand temple of Mata Chandi Devi, there is also a temple of Santoshi Mata on the other side. At the same time Hanuman ji's mother Anjana Devi temple and Hanuman ji's temple also remained. The scenic beauty here is visible. Walking around the peacocks can be easily seen.

चण्डी देवी मन्दिर-माता चण्डी देवी का यह सुप्रसिद्ध मन्दिर गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर शिवालिक श्रेणी के 'नील पर्वत' के शिखर पर विराजमान है। यह मन्दिर कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा १९२९ ई० में बनवाया गया था। स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार, स्थानीय राक्षस राजाओं शुम्भ-निशुम्भ के सेनानायक चण्ड-मुण्ड को देवी चण्डी ने यहीं मारा था; जिसके बाद इस स्थान का नाम चण्डी देवी पड़ गया। मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी। मन्दिर चंडीघाट से ३ किमी दूरी पर स्थित है। मनसा देवी की तुलना में यहाँ की चढ़ाई कठिन है, किन्तु यहाँ चढ़ने-उतरने के दोनों रास्तों में अनेक प्रसिद्ध मन्दिर के दर्शन हो जाते हैं। अब रोपवे ट्राॅली सुविधा आरंभ हो जाने से अधिकांश यात्री सुगमतापूर्वक उसी से यहाँ जाते हैं, लेकिन लंबी कतार का सामना करना पड़ता है। माता चण्डी देवी के भव्य मंदिर के अतिरिक्त यहाँ दूसरी ओर संतोषी माता का मंदिर भी है। साथ ही एक ओर हनुमान जी की माता अंजना देवी का मंदिर तथा हनुमान जी का मंदिर भी बना हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक शोभा दर्शनीय है। मोरों को टहलते हुए निकट से सहज रूप में देखा जा सकता है।

Mansa Devi Temple-The temple of Mansa Devi is located on a mountain-top of the Shivalik range, often towards the west by everybody's pad. Mansa Devi literally means that the Goddess who fulfills the desire of the mind (Mansa). The main temple has two statues, with the first three faces and five arms and with the other eight arms. In order to go to the temple of Mansa Devi, the facility of Ropeway trolley has also been started and many travelers enjoy the journey through the temple through him, but the system has to wait a long time. In addition, walking distance to the temple of Mansa Devi is also quite accessible. The climb here is normal. After about 187 stairs, about 1 kilometer long paved road has been constructed on which, besides the young people, the children and the elderly also go to the temple comfortably after staying awhile. The joy of this journey is unique. From this path, everybody has a paddle, there is a stream of Ganges and the mainstream (Niladhara) and Haridwar Nagari of Ganga near the Nile Mountain leave their unique effects on the mind of the audience. If you return here after a walk in the morning and take a bath in the Ganges, then there will be no memory of exhaustion and what to say about the frenzy of the mind! However, on the basis of religiousness, people often travel here after the Ganga-bath.

मनसा देवी मंदिर-हर की पैड़ी से प्रायः पश्चिम की ओर शिवालिक श्रेणी के एक पर्वत-शिखर पर मनसा देवी का मन्दिर स्थित है। मनसा देवी का शाब्दिक अर्थ है वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) पूर्ण करती हैं। मुख्य मन्दिर में दो प्रतिमाएँ हैं, पहली तीन मुखों व पाँच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ। मनसा देवी के मंदिर तक जाने के लिए यों तो रोपवे ट्राली की सुविधा भी आरंभ हो चुकी है और ढेर सारे यात्री उसके माध्यम से मंदिर तक की यात्रा का आनंद उठाते हैं, लेकिन इस प्रणाली में लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी होती है। इसके अतिरिक्त मनसा देवी के मंदिर तक जाने हेतु पैदल मार्ग भी बिल्कुल सुगम है। यहाँ की चढ़ाई सामान्य है। सड़क से 187 सीढ़ियों के बाद लगभग 1 किलोमीटर लंबी पक्की सड़क का निर्माण हो चुका है, जिस पर युवा लोगों के अतिरिक्त बच्चे एवं बूढ़े भी कुछ-कुछ देर रुकते हुए सुगमता पूर्वक मंदिर तक पहुंच जाते हैं। इस यात्रा का आनंद ही विशिष्ट होता है। इस मार्ग से हर की पैड़ी, वहाँ की गंगा की धारा तथा नील पर्वत के पास वाली गंगा की मुख्यधारा (नीलधारा) एवं हरिद्वार नगरी के एकत्र दर्शन अपना अनोखा ही प्रभाव दर्शकों के मन पर छोड़ते हैं। प्रातःकाल यहाँ की पैदल यात्रा करके लौटने पर गंगा में स्नान कर लिया जाय तो थकावट का स्मरण भी न रहेगा और मन की प्रफुल्लता के क्या कहने ! हालाँकि धार्मिकता के ख्याल से प्रायः लोग गंगा-स्नान के बाद यहाँ की यात्रा करते हैं।

Maya Devi Temple-This ancient temple, probably built in the 11th century, of Maya Devi (the goddess of Haridwar) is considered a Sidhpith. It is called the place of the navel of the Goddess Sati and the falling of the heart. This is one of the few ancient temples that still stand with Narayani Shila and Bhairav Temple.

माया देवी मंदिर- माया देवी (हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी) का संभवतः ११वीं शताब्दी में बना यह प्राचीन मन्दिर एक सिद्धपीठ माना जाता है। इसे देवी सती की नाभि और हृदय के गिरने का स्थान कहा जाता है। यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मन्दिर के साथ खड़े हैं।

Vaishno Devi Temple- It can be easily accessible to Vaishno Devi Temple by auto by walking on the foot or auto-rickshaw to Bhimgoda, about 1 km away from everybody's paddle. Here is the magnificent temple of Vaishno Devi. Due to the fame of the famous Vaishno Devi of Jammu, this temple has been attempted to replicate the cave of Vaishno Devi. This grand temple is entered from the left side. The natural cave is intended to give natural form. An attempt has been made to maintain the inaccessibility of the path, although there is no difficulty in determining the path of the cave. Yes, two-three men should go together without going alone. By moving from the left side to the moving curved cave, the statue of Mata Vaishno Devi is reached. There are also three philosophical views. This temple has also gained great popularity.

वैष्णो देवी मंदिर- हर की पैड़ी से करीब 1 किलोमीटर दूर भीमगोड़ा तक पैदल या ऑटो-रिक्शा से जाकर वहाँ से ऑटो द्वारा वैष्णो देवी मंदिर तक सुगमतापूर्वक जाया जा सकता है। यहाँ वैष्णो देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है। जम्मू के प्रसिद्ध वैष्णो देवी की अत्यधिक प्रसिद्धि के कारण इस मंदिर में वैष्णो देवी की गुफा की अनुकृति का प्रयत्न किया गया है। इस भव्य मंदिर में बाईं ओर से प्रवेश होता है। पवित्र गुफा को प्राकृतिक रूप देने की चेष्टा की गयी है। मार्ग की दुर्गमता को बनाये रखने का प्रयत्न हुआ है, हालाँकि गुफा का रास्ता तय करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। हाँ अकेले नहीं जा कर दो-तीन आदमी साथ में जाना चाहिए। बाईं ओर से बढ़ते हुए घुमावदार गुफा का लंबा मार्ग तय करके माता वैष्णो देवी की प्रतिमा तक पहुँचा जाता है। वहीं तीन पिंडियों के दर्शन भी होते हैं। यह मंदिर भी काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है।

Bharat Mata Temple-Just ahead of Vaishno Devi Mandir, there is Bharatmata Temple. This multi-storey temple has been built by Swami Satyamitranand Giri. The inauguration was done by lighting the lamp by the then Prime Minister Mrs. Indira Gandhi. This unique temple of its kind is quite famous. On many different floors, many multi-dimensional images of India have been modified through idols and paintings in the form of Shur Mandir, Matru Mandir, Sant Mandir, Shakti Mandir, and Bharat Darshan. On top is the Vishnu temple and the top Shiva temple. The arrival of the Bharat Mata Temple for the passengers coming to Haridwar becomes a different and better experience and the motivation of patriotism becomes unmatched.

भारत माता मन्दिर- वैष्णो देवी मन्दिर से कुछ ही आगे भारतमाता मन्दिर है। इस बहुमंजिले मन्दिर का निर्माण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि के द्वारा हुआ है। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर इस का लोकार्पण हुआ था। अपने ढंग का निराला यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इसके विभिन्न मंजिलों पर शूर मंदिर, मातृ मंदिर, संत मंदिर, शक्ति मंदिर, तथा भारत दर्शन के रूप में मूर्तियों तथा चित्रों के माध्यम से भारत की बहुआयामी छवियों को रूपायित किया गया है। ऊपर विष्णु मंदिर तथा सबसे ऊपर शिव मंदिर है। हरिद्वार आने वाले यात्रियों के लिए भारत माता मंदिर के दर्शन से एक भिन्न और उत्तम अनुभूति की प्राप्ति तथा देशभक्ति की प्रेरणा अनायास हो जाती है।

Saptarshi Ashram / Saptar Sarovar- The 'Bharat Mata Mandir' can be easily reached by the auto and reaching the Saptarshi Ashram. On going here, the unique natural image of the Ganga Ganga is visible in the curved streams on the right side of the road. It is said that here the Saptarishas had done penance and thought that the Ganga was swept away from them by dividing them into seven streams with the thought of not obstructing their tenacity. The beauty of the small natural stream of Ganga is visible in the form of innumerable pieces of stones that came from the mountains broken into the flood. Here 'Saptarshi Ashram' has been built on the other side of the road. Here the main temple is of Shiva and in its orbits, small shrines of Satya Sages are visible. The place is full of natural beauty. Continuous fire is lit, and at some distance, seven pots are built in the name of the saptaris, in which the people of the ashram live.

सप्तर्षि आश्रम/सप्त सरोवर- 'भारत माता मंदिर' से ऑटो द्वारा आगे बढ़कर आसानी से सप्तर्षि आश्रम तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ जाने पर सड़क की दाहिनी ओर सप्त धाराओं में बँटी गंगा की निराली प्राकृतिक छवि दर्शनीय है। कहा जाता है कि यहाँ सप्तर्षियों ने तपस्या की थी और उनके तप में बाधा न पहुँचाने के ख्याल से गंगा सात धाराओं में बँटकर उनके आगे से बह गयी थी। गंगा की छोटी-छोटी प्राकृतिक धारा की शोभा बाढ़ में पहाड़ से टूट कर आये पत्थरों के असंख्य टुकड़ों के रूप में स्वभावतः दर्शनीय है। यहाँ सड़क की दूसरी ओर 'सप्तर्षि आश्रम' का निर्माण किया गया है। यहाँ मुख्य मंदिर शिवजी का है और उसकी परिक्रमा में सप्त ऋषियों के छोटे छोटे मंदिर दर्शनीय हैं। स्थान प्राकृतिक शोभा से परिपूर्ण है। अखंड अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है और कुछ-कुछ दूरी पर सप्तर्षियों के नाम पर सात कुटिया बनी हुई है, जिनमें आश्रम के लोग रहते हैं।

Kakhal-The Kankhal, which is called the suburban of Haridwar, is situated in the south direction 3 kilometers away from Haridwar. Here is a detailed population and market. The oldest pilgrimage center of Haridwar is the only one in the pilgrimage sites. Its name is clearly mentioned in various mythologies. From the mainstream of Ganges, the stream brought in 'every pad' is re-found in mainstream. In the many Puranas, along with the Mahabharata, Ganga has been considered as a special religious place in Kankhal. Therefore, here is the special significance of Ganga-bath, in Kankhal, Daksh has performed the yagna, it has been shown in the above description. This yagna was destroyed by Shivsans. There is a vast temple of Nageshwar Mahadev at the said site.

कनखल- हरिद्वार की उपनगरी कहलाने वाला 'कनखल' हरिद्वार से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित है। यहाँ विस्तृत आबादी एवं बाजार है। आबादी वाले तीर्थस्थलों में हरिद्वार का सबसे प्राचीन तीर्थ कनखल ही है। विभिन्न पुराणों में इसका नाम स्पष्टतः उल्लिखित है। गंगा की मुख्यधारा से 'हर की पैड़ी' में लायी गयी धारा कनखल में पुनः मुख्यधारा में मिल जाती है। महाभारत के साथ-साथ अनेक पुराणों में भी कनखल में गंगा विशेष पुण्यदायिनी मानी गयी है। इसलिए यहाँ गंगा-स्नान का विशेष माहात्म्य है कनखल में ही दक्ष ने यज्ञ किया था, यह ऊपरिलिखित विवरण में दर्शाया जा चुका है। इस यज्ञ का शिवगणों ने विध्वंस कर डाला था। उक्त स्थल पर दक्षेश्वर महादेव का विस्तीर्ण मंदिर है।

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