kuldhara village in rajasthan


Village of Kuldhara-A cursed and mysterious village in India.
Village of Kuldhara

Well all of us have heard many ghost stories. Which is a lot of fiction, and some real.But today we are telling such a true story. You are not sure what you hear, and you say. Can this happen too? There are many such places in the world. Who is cursed, and is also mysterious. And even today is mysterious and cursed Today we talk about the village of Kuldhara, which is located in the Jaisalmer district of the beautiful Indian state of Rajasthan.

वैसे तो हम सबने बहुत ही भूतों की कहानियाँ सुनी है। जिनमें बहुत सी कल्पनिक है, और कुछ असली। लेकिन आज हम एक ऐसी सच्ची कहानी बताने रहे है। जिसे सुनकर श्याद आपको यकीन ना हो, और आप कहे। क्या ऐसा भी हो सकता है? दुनिया में वैसे तो बहुत सी ऐसी जगह है। जो शापित है, और रहस्यमयी भी है। और आज भी रहस्यमयी और शापित है। आज हम बात करने वाले कुलधरा गांव की, जो भारतीय राज्य राजस्थान के सुन्दर से जैसलमेर ज़िले में स्थित है।

This village has suffered a lot for the past several years. Thousands of people living in the village of Kuldhara (Kuldhara) did not know where this village was evacuated one night and went on a very bad curse that there would never be any other village at all. Since then, this village has lost the desert.

यह गांव पिछले कई सालों से वीरान पड़ा हैं। कुलधरा(Kuldhara) गाँव में रहने वाले हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली करके पता नहीं कहाँ चले गए, और जाते जाते एक बहुत बुरा श्राप दे गए कि, यहाँ पर कभी भी कोई दूसरा गाँव नहीं बस पायेगा। तब से यह गाँव वीरान पड़ा हैं।

With a sudden disappearance of all the people of the village, a very shocking story about this village often gets heard. After listening to the story, it shows that there are many such secrets in the land of this village. Such secrets that many years or years of age still feel their feeling of being. Because of which, today even after centuries they are fresh and unresolved in the same way.

गांव के सभी लोगो के अचानक गायब हो जाने से, इस गांव के बारे में एक बहुत ही हैरान कर देने वाली कहानी अक्सर सुनने को मिलती रहती है। कहानी सुनने के बाद पता चलता है की इस गांव की जमीन में कई ऐसे राज़ दफ्न हैं। ऐसे राज़ जो कई वर्षों या कहें सदियों बाद आज भी अपने होने का एहसास महसूस कराते है। जिसके कारण आज भी सदियों बाद वो उसी तरह ताजा और अनसुलझे हैं।

The secrets of this village, the mystery is such that the more they try to solve, the seams of this are so confused. On hearing about the secret and secrets of this small village of Kuldhara in Rajasthan, someone says that on the land of Kuldhra for many years, villagers have the rule of wandering souls. Or the curse of the villagers.

According to historians, this Kuldhara village was constructed by Paliwal Brahmins in the 13th century. In this area of ​​Paliwal there were 84 villages at that time. One of them was Kuldhara village too. There were 600 houses in the village of Kuldhara. Then this village used to be very beautiful The houses of Kuldhara village were made of brick and stone, the texture of these houses was such that the heat was never felt in these houses. While the outside temperature ranges from 45 degrees to 48 degrees

इस गांव के राज़, रहस्य कुछ ऐसे हैं जिन्हें जितना सुलझाने की कोशिश होती है इस के राज़ उतने ही उलझते जाते हैं। राजस्थान के इस छोटे से गांव कुलधरा के भीतर के राज़ और रहस्य के बारे में सुनकर कोई कहता है कि कुलधरा की ज़मीन पर कई वर्षों से गांव वालो की भटकती आत्माओं का राज है। या फिर गांव वालो का श्राप।

इतिहासकारों के अनुसार इस कुलधरा गाँव का निर्माण लगभग १३वीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। पालीवाल के इस इलाके में उस समय ८४ गाँव थे। उनमें से एक कुलधरा गाँव भी था। कुलधरा गाँव में ६०० घर थे। तब यह गाँव बहुत ही सुन्दर हुआ करता था। कुलधरा गाँव के घर ईट और पत्थर से बने हुए थे, इन घरों की बनावट ऐसी थी की इन घरों में कभी भी गर्मी का अहसास नहीं होता था। जबकि बाहर का तापमान ४५ डिग्री से ४८ डिग्री तक रहता है।

The beauty of the village - All the people living in this village used to get many arts, and at the same time they had knowledge of many more arts, and through these art, the people here developed their village. From this art, the people of this village had constructed many beautiful houses and ponds. The people of this village were known for their business skills and agriculture. All the villages were very happy. then one day .....

गांव की सुंदरता - इस गांव में रहने वाले सभी लोगों को बहुत सी कलाएं आती थी, और साथ ही उन्हें और भी बहुत सी कलाओं का ज्ञान था, और इन्ही कलाओं के जरिये यहाँ के लोगों ने अपने गांव का विकास किया। अपनी इस कलाओं से इस गांव के लोगो ने बहुत से सुन्दर घर और तालाबों का निर्माण किया था। इस गांव के लोगों को इनके व्यापार कौशल और कृषि के लिए जाने जाते थे। सभी गांव बहुत ही ख़ुशी में रह रहे थे। फिर एक दिन .....

Ministers of village Salim Singh

Ministers of village Salim Singh, one day went out to roam the village. Salim Singh was very happy after seeing the prosperity of all the villages. After roaming in all the villages, Salim Singh returned to his house. Salim Singh was going back to his house, so that his eyes fell on a girl. Which was very beautiful. Seeing the beauty of that girl, Salim's mind began to find him. Salim proposed marriage to that girl. But the girl of the village refused to accept the marriage proposal of Salim Singh.

गाँव का मिनीस्टर सलीम सिंह, एक दिन गाँव में घूमने निकला। सभी गाँव की खुशहाली देखकर सलीम सिंह बहुत खुश हुआ। सभी गाँव में घूमने के बाद, सलीम सिंह वापस अपने घर जाने लगा। सलीम सिंह वापस अपने घर जा ही रहा था, की तभी उनकी नजर एक लड़की पर पड़ी। जो बहुत ही खूबसूरत थी। उस लड़की की खूबसूरती देखकर, सलीम का मन उस को पाने का करने लगा। सलीम ने उस लड़की को विवाह का प्रस्ताव दिया। लेकिन गाँव की उस लड़की ने सलीम सिंह के विवाह के प्रस्ताव को मना कर दिया।

All villages disappear

Salim Singh could not bear the denial of that girl. Therefore, he declared in front of the people of all the villages, "If I did not get married to this girl, then I would attack the village and pick up the girl." After listening to this announcement of Salim Singh, all the villagers were scared. The people had to protect the village, or the girl, but all the villagers thought to protect that girl, and then all the 84 villages in the same night gathered in a temple of the village, and decided that.Whatever happens, we will not give our girl to Salim Singh. And then the villagers decided to evacuate the village and all 84 villages overnight disappeared from the eyes. As he went, he cursed that nobody will be able to settle in these houses after today.

सभी गाँव वालों गायब होना

सलीम सिंह, उस लड़की के इंकार को बर्दाश नहीं कर सका। इसलिए उसने सभी गाँव के लोगों के सामने ये ऐलान किया की, "यदि इस लड़की से मेरा विवाह नहीं हुआ। तो मैं गाँव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाऊँगा। सलीम सिंह के इस ऐलान को सुनकर सभी गाँव वाले डर गए। अब गाँव वालों को गाँव की रक्षा करनी थी। या फिर लड़की की। लेकिन उन सभी गाँव वालों ने उस लड़की की रक्षा करने की सोची। और फिर उसी रात सभी ८४ गाँव के सभी लोग गाँव के एक मंदिर में इकक्ठा हुए, और ये फैसला किया। चाहें जो कुछ भी हो जाए। हम सलीम सिंह को अपनी लड़की नहीं देंगे। और फिर गाँव वालों ने गाँव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा।

The next day when Salim Singh went to the village, he looked empty to all the villages. Salim Singh saw each corner of the village. But no man's man appeared All villages had left the village. Salim Singh was surprised that due to a girl from the village, all the villagers left the village in the night and went away. Salim Singh tried to find the villagers, as well as the girl who loved Salim Singh. But Salim Singh could not find any.

अगले दिन जब सलीम सिंह गाँव में गया तो उसने सभी गाँव को खाली देखा। सलीम सिंह ने गाँव का एक-एक कोना देखा। लेकिन उसके कंही भी कोई आदमी दिखाई दिया। सभी गाँव वाले गाँव छोड़कर जा चुके थे। सलीम सिंह इस बात से हैरान था की, गाँव की एक लड़की की वजह से, सभी गाँव वाले रात में ही गाँव छोड़कर चले गए। सलीम सिंह ने गाँव वालों को ढूढ़ने की कोशिश की, और साथ ही उस लड़की को जिसे सलीम सिंह प्यार करता था। लेकिन सलीम सिंह को कोई भी नहीं मिला।

Curse of people living in the village

The curse of people living in the village of Paliwal is still on this village. And even today the curse of the villagers can be seen. If there is local people living in Jaisalmer, some villagers have tried to settle at this place many times, but no one succeeded. Even the local people living in Jaisalmer have to say that there are some families who have settled there but they have not come back till date. What happened to all those people, where did they all go, no one has known till date.

गाँव में रहने वाले लोगो का श्राप

पालीवाल के गाँव में रहने वाले लोगो का श्राप आज भी इस गाँव पर है। और आज भी गाँव वालों के श्राप को देखा जा सकता है। जैसलमेर में रह रहे वहाँ के स्थानीय लोगों की मानें तो कुछ गाँव वालों ने कई बार इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो सका। जैसलमेर में रह रहे वहाँ के स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां बसने गए जरूर लेकिन आज तक वापस लौटकर नहीं आए। उन सभी लोगों के साथ क्या हुआ, वे सभी लोग कहां गए, ये आज तक कोई भी नहीं जान पाया।

Even today the condition of this village is as it was when the villagers left it. Some people have said that when the villages with their villages were leaving. Then he was in such a hurry that he did not have much time to take all his precious things together. Because they have to hide from the eyes of Salim Singh Was there. So he hid all his precious things in his village, and left the village.

आज भी इस गाँव की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब गाँव के लोग इसे छोड़ कर गए थे। कुछ लोगों का कहेना है की, जब गाँव वाले गाँव छोड़कर जा रहे थे। तब इतनी जल्दी में थे की, उसके पास इतना समय नहीं था की, वो साथ अपना सारा कीमती सामान ले जा सके। क्योंकि उन्हें सलीम सिंह की नजरों से छिपते हुए जाना था। इसलिए उन्होंने अपने सारे कीमती सामानअपने गाँव में ही कंही छिपा दिए, और गाँव से चले गए।

Because of this, whoever comes to this village. In this village, it starts digging in place. Because of this, today the village gets inscribed from place to place. Many people who came to dig it on, heard some strange and poor acts here and also felt. To find out how much truth is there in this, a team of Paranormal Society, which is conducting research on ghosts and spirits, went to Delhi from Kuldhara village in May 2013.

इस वजह से जो भी इस गाँव आता है। इस गाँव में जगह-जगह खुदाई करना शुरू कर देता है। इस वजह से आज यह गाँव जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है। यह पर खुदाई करने आये बहुत से लोगों ने यहाँ पर कुछ अजीबों गरीब वारदातों को सुना और साथ ही महसूस भी किया। इस बात में कितनी सच्चाई है, ये पता करने के लिए, भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की एक टीम मई २०१३ में दिल्ली से कुलधरा गाँव में गई।

The team of Paranormal Society

The team of Paranormal Society, which has researched ghosts and spirits from Delhi, spent a night in Kuldhara village. As soon as the team from Delhi reached Kuldhra village, the team claimed something unusual in this village. A member of the team said that at times he felt a bit awkward at night. Someone put their hands on their shoulders, and when they looked back, there was no one there. Anshul Sharma, vice president of the Paranormal Society, told that we had a device named Gost Box. Through this Gost Box they ask questions to the souls living in those places. They did the same in Kuldhara too, and if there were some voices from some places, then the souls would also have given their names in unusual form. At night after work in Kuldhara village, when the team went back to their car to return to the house, they saw the marks of children's hands on their car glass. While the night of the team was not second to that area. When the team members roamed around Kuldhra village, the team members told the media.

पेरानार्मल सोसायटी की टीम

दिल्ली से आई भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा गाँव में एक रात बिताई। दिल्ली से आई टीम ने कुलधरा गाँव पहुँचते ही टीम ने इस गाँव में कुछ न कुछ असामान्य होने का दावा किया। टीम के एक सदस्य ने बताया रात में कई बार उन्होंने कुछ अजीब महसूस किया। जैसे किसी ने उनके कंधे पर हाथ रखा, और जब मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया था कि हमारे पास एक डिवाइस था जिसका नाम गोस्ट बॉक्स था। इस गोस्ट बॉक्स के माध्यम से वो ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी उन्होंने ऐसा ही किया, और ऐसा करते ही कुछ जगहों से कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। रात भर कुलधरा गाँव में काम के बाद जब सुबह टीम वापस जाने लिए अपनी कार के पास गई तो, उन्होंने देखा की उनकी कार के शीशे पर बच्चों के हाथ के निशान देखे। जबकि रात भर टीम के आलवा उस इलाके दूसरा नहीं था। टीम के सदस्य जब कुलधरा गाँव में घूमकर वापस लौटे तो, टीम के सदस्यों ने मीडिया को बताया।


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Chandi Devi Temple (Haridwar)

चंडी देवी मंदिर (हरिद्वार)-Chandi Devi Temple (Haridwar)

Chandi Devi Temple-Chandi Devi Temple is built on the Neel Mountain, at a height of about 9 500 feet above the temple complex. This temple is a Hindu temple dedicated to goddess Chandi Devi in Haridwar, the sacred city of Uttarakhand state.This temple of Chandi Devi in ​​Uttarakhand state of India is a very old temple, this temple of Chandi Devi was built in 1929 by Suchit Singh as the king of Kashmir. However, the main idol of Chandi Devi in ​​the temple has been established by Shankaracharya in the 8th century, which is one of the greatest priests of Hinduism. The temple is also known as Neel Parvat Tirtha, which is one of Panch Panchth (five shrines) situated within Haridwar.

चंडी देवी मंदिर -चंडी देवी मंदिर थल से करीब ९५०० फ़ीट की उचाई पर नील पर्वत पर बना हुआ है। यह मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के पवित्र शहर हरिद्वार में देवी चंडी देवी को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। भारत के उत्तराखंड राज्य में चंडी देवी का यह मंदिर बहुत ही पुराना मंदिर है चंडी देवी के इस मंदिर को 1929 में सुच्चत सिंह द्वारा कश्मीर के राजा के रूप में बनाया गया था। हालाँकि, मंदिर में चंडी देवी की मुख्य मूर्ति को 8 वीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया है, जो हिंदू धर्म के सबसे महान पुजारियों में से एक है। मंदिर को नील पर्वत तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के भीतर स्थित पंच तीर्थ (पांच तीर्थ) में से एक है।

Chandi Devi Temple is highly revered by devotees as a Siddh Peetha which is a place of worship where desires get fulfilled. It is one of three such Peethas located in Haridwar, the other two being Mansa Devi Temple and Maya Devi Temple.

चंडी देवी मंदिर भक्तों द्वारा एक सिद्ध पीठ के रूप में अत्यधिक पूजनीय है, जो एक ऐसा पूजा स्थल है जहाँ मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। यह हरिद्वार में स्थित तीन ऐसे पीठों में से एक है, अन्य दो मनसा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर हैं।

Chandi Temple is located 4 kilometers (2.5 miles) away from Haridwar Har Ki Pauri. To reach the temple, either to follow the three km trekking route from Chandighat and reach the temple by climbing several steps or ascending the Rop-Way (cable car) service that was recently started. For the benefit of the pilgrims, the Rope-Way service, known as Chandi Devi Udankhotla, was started and also brings pilgrims to nearby Mansa Devi temple. Rope-Way takes the pilgrims to Chandi Devi temple at the height of 2,900 meters (9,500 feet) from the lower station located near Gauri Shankar temple on Naziabad road. The total length of the ropeway route is approximately 740 meters (2,430 feet) and the height is 208 meters (682 feet). On the other side of the hill there are thick forests and Ropewe offers beautiful views of Ganga river and Haridwar.The temple is run by the mahant, who is the presiding officer of the temple. On a normal day, the temple is open between 6 o'clock in the morning. And closes at 8.00 in the evening. And the morning prayer starts at 6:30 in the temple. Leather goods, non-vegetarian food and alcoholic drinks are strictly prohibited in the temple premises.

चंडी का मंदिर हरिद्वार हर की पौड़ी से 4 किलोमीटर (2.5 मील) की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए या तो चंडीघाट से तीन किलोमीटर ट्रेकिंग मार्ग का अनुसरण करना पड़ता है और कई चरणों की चढ़ाई करके या हाल ही में शुरू की गई रोप-वे (केबल कार) सेवा पर चढ़कर मंदिर तक पहुँचते हैं। तीर्थयात्रियों के लाभ के लिए चंडी देवी उडनखटोला के नाम से जानी जाने वाली रोप-वे सेवा की शुरुआत की गई थी और यह तीर्थयात्रियों को पास के मनसा देवी मंदिर में भी पहुंचाती है। रोप-वे नाज़ियाबाद रोड पर गौरी शंकर मंदिर के पास स्थित निचले स्टेशन से तीर्थयात्रियों को 2,900 मीटर (9,500 फीट) की ऊँचाई पर स्थित चंडी देवी मंदिर तक ले जाता है। रोपवे मार्ग की कुल लंबाई लगभग 740 मीटर (2,430 फीट) और ऊंचाई 208 मीटर (682 फीट) है। पहाड़ी के दूसरी ओर घने जंगल हैं और रोपवे गंगा नदी और हरिद्वार के सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। मंदिर का संचालन महंत द्वारा किया जाता है जो मंदिर के पीठासीन हैं। एक सामान्य दिन पर, मंदिर सुबह 6 बजे के बीच खुला रहता है। और शाम 8.00 बजे बंद होता है। और मंदिर में सुबह की पुजा सुबह ६ .30 बजे शुरू होती है। मंदिर परिसर में चमड़े का सामान, मांसाहारी भोजन और मादक पेय सख्त वर्जित हैं।

Chandi's temple is one of the oldest temples of India. Thousands of devotees come to the temple, especially during the festivals of Chandi Chaudas and Navaratri and at Kumbh Mela in Haridwar, to take blessings of those gods and goddesses who are considered to fulfill their desires. The temple should definitely go for pilgrims going to Haridwar.Near the Chandi Devi temple, Hanumanji's mother Anjana's temple is located and devotees visiting Chandi Devi Temple also go to this temple. The Nileshwar Temple is also located on the bottom of the Nil Mountain. It is said that [citation:] Mansa and Chandi, two forms of Goddess Parvati are always close to each other. The temple of Mansa is on the other side of the hill opposite the Ganga river on Mount Bilvah. This belief can be found to be true in other cases as there is a Chandi temple located in Chandigarh, near Panchkula of Mata Mansa Devi, in Chandigarh.

चंडी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। हजारों भक्त मंदिर में आते हैं, खासकर चंडी चौदस और नवरात्र के त्योहारों के दौरान और हरिद्वार में कुंभ मेले में, उन देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए जिन्हें अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए माना जाता है। हरिद्वार जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए मंदिर अवश्य जाना चाहिए। चंडीदेवी मंदिर के पास, हनुमानजी की माता अंजना का मंदिर स्थित है और चंडी देवी मंदिर जाने वाले भक्त भी इस मंदिर में जाते हैं। नीलेश्वर मंदिर भी नील पर्वत के तल पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि [उद्धरण:] मनसा और चंडी, देवी पार्वती के दो रूप हमेशा एक दूसरे के करीब रहते हैं। मनसा का मंदिर बिल्व पर्वत पर गंगा नदी के विपरीत तट पर दूसरी ओर है। यह विश्वास अन्य मामलों में भी सत्य पाया जा सकता है क्योंकि हरियाणा के पंचकुला में माता मनसा देवी मंदिर के पास, चंडीगढ़ में एक चंडी मंदिर स्थित है।

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Manikarnika-Queen-of-Jhansi-Laxmibai


Manikarnika-Queen of Jhansi
The queen with her son

The Queen of Jhansi, Laxmibai, Lakshmibai was such a lady. For the end of British rule in India, Attend Indian freedom struggle and bravely fight. Queen Lakshmibai was a valet for the Indian independence struggle of 1857. Queen Laxmibai fought only with the army of the British Empire at the age of 29. And in the battlefield he became martyred while fighting the army of the British Empire.

झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, लक्ष्मीबाई एक ऐसी महिला थी। जिसने भारत में अंग्रेज़ हकूमत को ख़त्म करने के लिए। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और बहादुरी से लड़ाई की। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं। रानी लक्ष्मीबाई सिर्फ़ 29 साल की उम्र में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से लड़ाई की। और रणभूमि में वे अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से लड़ते हुए शहीद हो गई।

Queen of Jhansi, Laxmibai

Queen of Jhansi, Laxmibai was born on November 19, 1828 in Varanasi, India. Then there was the rule of East India Company in India, which came when India had to do business, but there was a rule over India. Although his childhood name was Manikarnika, he was said to be lovingly called Manu. His mother's name was Bhagirathibhai and father's name was Moropant Tambe. Queen of Jhansi, Lakshmibai when she was 5 years old, her mother died. Queen of Jhansi, Laxmibai father Moropant was a Marathi and Maratha Empire was in service of Bajirao.

झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई

झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी, भारत में हुआ था। तब भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का राज हुआ करता था, जो आई तो भारत व्यापार करने थी, लेकिन भारत पर राज थी। वैसे तो उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन उन्हें प्यार से मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई जब ५ साल की थी तब आचनक उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई पिता मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा साम्राज्य बाजीराव की सेवा में थे।

Because of mother's death, there was no one to take care of Manu in the house, so father started taking Manu along with Peshwa in the court of Bajirao. Where Queen Laxmibai learned arms training with the teachings of the scriptures in her childhood. Then in 1842, they were married to Maratha ruled king of Jhansi Gangadhar Rao Nevala and they became, Queen of Jhansi. After marrying Raja Gangadhar Rao Nevalkar, his name was Lakshmibai.

माँ की मृत्यु हो जाने के कारण घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ पर रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बचपन में ही शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। फिर सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे बन गई, झाँसी की रानी। फिर राजा गंगाधर राव नेवालकर से विवाह होने के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया था।

Jhansi Fort

In 1851

In 1851, Queen Laxmibai gave birth to a son. But in his four months only his son died suddenly. Due to which King Gangadhar Rao was very sad. And they started to be depressed. After some time, in 1853, the sudden health of Raja Gangadhar Rao started to worsen too much. That is why King Gangadhar Rao was advised to adopt adoptive son. This was conceded by Raja Gangadhar Rao. And a son adopted.

सन् 1851

सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने में ही उनके पुत्र की अचानक मृत्यु हो गयी। जिसके कारण राजा गंगाधर राव को बहुत दुःख हुआ। और वो उदास रहने लगे। फिर कुछ समय बाद सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का अचानक स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ने लगा। जिसके कारण राजा गंगाधर राव ने दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। राजा गंगाधर राव की इस बात को मान लिया गया। और एक पुत्र गोद ले लिया।

Raja Gangadhar Rao died

Raja Gangadhar Rao died on November 21, 1853 after adopting his son. The adopted son was named Damodar Rao.After the death of the Maharaja on 21 November 1853, his throne was to be his son Damodar Rao. But Damodar Rao was an adopted son, so under the British East India Company, Governor-General Lord Dalhousie, applied the Doctrine of Lapse, which rejected Damodar Rao's claim on the throne. When Queen Laxmibai was told about this, she cried, "I will not surrender my Jhansi". Then in March 1854, Queen Lakshmibai was given an annual pension of Rs 60,000. And ordered the palace and the fort to leave.

राजा गंगाधर राव की मृत्यु

पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। गोद लिए हुए पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। 21 नवंबर 1853 में महाराजा की मृत्यु के बाद, उनका सिंहासन उनके बेटे दामोदर राव का होना था। लेकिन दामोदर राव एक दत्तक पुत्र थे, इसलिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौज़ी के अधीन, डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स लागू किया, जिसने सिंहासन पर दामोदर राव के दावे को खारिज कर दिया। जब रानी लक्ष्मीबाई को इस बारे में बताया गया तो उसने रोते हुए कहा "मैं अपनी झाँसी को आत्मसमर्पण नहीं करुँगी"। इसके बाद मार्च 1854 में, रानी लक्ष्मीबाई को ६०,००० रुपये की वार्षिक पेंशन दी गई। और महल और किले को छोड़ने का आदेश दिया।

A Indian rebellion suddenly started in Meerut on May 10, 1857. And when the news of this battle reached Jhansi, Queen Lakshmibai asked the British political officer, Captain Alexander Skane, to allow the bodies of armed people to take their safety, Skane agreed to it. Then in the summer of 1857, Queen Laxmibai organized a turmeric Kumkum festival with all the women in Jhansi. And blamed the British for Indian rebellion.

10 मई 1857 को मेरठ में अचानक एक भारतीय विद्रोह शुरू हुआ। और जब इस लड़ाई की खबर झाँसी तक पहुँची, तो रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश राजनीतिक अधिकारी, कैप्टन अलेक्जेंडर स्केने से अपनी सुरक्षा के लिए सशस्त्र लोगों के शव को उठाने की अनुमति मांगी, स्केन इसके लिए सहमत हो गए। फिर रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 की गर्मियों में झांसी की सभी महिलाओं के सामने धूमधाम से हल्दी कुमकुम समारोह आयोजित किया। और भारतीय विद्रोह के लिए अंग्रेजों को दोषी ठहराया।

Jhansi became a major center for the struggle of 1857, where violence erupted. Queen Lakshmibai started protecting Jhansi and started the formation of an army. Women were recruited and trained in war in this army. The general public also supported the struggle. Jhalakshi Bai who gave Laxmibai's determination to give a prominent position in his army.

झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा करना शुरू कर दिया और उन्होंने एक सेना का गठन प्रारम्भ किया। उनकी इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी उसे अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।

For a while, Jhansi was in peace under the rule of the queen. Then the Queen joined her army and prepared her army to be free from slavery of British rule. It was that time. When the whole nation was ready to fight for independence. Somehow the British came to know of this fight, and then the British made an announcement, that some soldiers would be sent there to maintain control. The Queen was aware of the damage in the fight. Therefore, the Queen said to all her people, "If we are victorious, then we will enjoy the fruits of victory, if we are defeated and killed in the battlefield, we will surely be eternal." Glory and salvation "

कुछ समय तक तो रानी के शासन में झांसी शांति पर था। फिर रानी ने अपनी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन की गुलामी से आज़ाद होने के लिए अपनी सेना को तैयार किया। ये वो समय था। जब आज़ादी के लिए पूरा देश लड़ने के लिए तैयार हो गया था। किसी तरह अंग्रेजों को इस लड़ाई का पता चल गया, और फिर अंग्रेजों ने एक घोषणा की, कि नियंत्रण बनाए रखने के लिए कुछ सैनिकों को वहां भेजा जाएगा। रानी को लड़ाई में होने वाले नुकसान का पता था। इसलिए रानी ने अपने सभी लोगों कहा, , यदि हम विजयी हैं, तो हम जीत के फल का आनंद लेंगे, अगर युद्ध के मैदान में पराजित और मारे जाते हैं, तो हम निश्चित रूप से अनन्त होंगे। महिमा और मोक्ष। "

The same dangerous war started on March 24th. The Queen's army began to weaken. To help the queen only, Tatya Tope, an army of over 20,000, who was under the leadership of Tatya Tope, was sent to relieve the Jhansi. During the battle with Tatya Tope's forces, Part of the British Armed Forces continued the siege and by April 2, a decision was taken to launch an attack in the walls. The place from where Queen Laxmibai was riding on her horse. According to folklore, the British surrounded the fort all the way to the Queen Laxmibai. Queen Laxmibai was with her son Damodar Rao on her horse cloud. When the Queen felt that it is difficult to escape the British now, Queen Laxmibai jumped from the fort with her horse cloud, Damodar Rao and Queen Laxmibai were both on horseback. They were saved but the horse died.

24 मार्च को एक ही ख़तरनाक जंग शुरू हुई। रानी की सेना कमजोर पड़ने लगी थी। की तभी रानी की मदद के लिए, तात्या टोपे ने २०,००० से अधिक की एक सेना, जो तात्या टोपे के नेतृत्व में थी, उस सेना झांसी को राहत देने के लिए भेजा गया था।तात्या टोपे की सेनाओं के साथ लड़ाई के दौरान, ब्रिटिश सेनाओं के हिस्से ने घेराबंदी जारी रखी और 2 अप्रैल तक दीवारों में एक उल्लंघन करके हमला शुरू करने का निर्णय लिया गया। वह स्थान जहाँ से रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े पर सवार हुई थीं। लोककथाओं के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों ने उनके किले में चारों तरफ से घेर लिया। रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े बादल पर अपने बेटे दामोदर राव के साथ थी। जब रानी को लगा, की अब अंग्रेजों से बच पाना मुश्किल है, तो रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े बादल के साथ किले से कूद गई, दामोदर राव और रानी लक्ष्मीबाई दोनों घोड़े के पीठ पर थे। वे बच गए लेकिन घोड़ा मर गया।

17th of June Gwalior-

On 17 June 1858, Queen Lakshmibai fought against King Royal Irish, and took over the front of Gwalior frontier region, along with Queen Lakshmibai, along with her sevaks also joined her in this war. Queen Laxmibai's horse had already died, so the war of Queen Lakshmibai was new in this war, which also led to the fear of Queen Laxmibai in this war that it could also be the last battle of her life. They understood this situation, but still they continued to fight with bravery. During the war, Queen Laxmibai was in the man's apparel. Because of which only a few people were able to recognize Queen Lakshmibai.

The British knew that Queen Lakshmibai is not only in this war. In this war, 5,000 Indian soldiers were killed in the Indian Army. Many people died While fighting with the British, Queen Lakshmibai suffered a lot of injuries. Due to which Queen Laxmibai got injured and fell down from her horse. Only then did an Englishman recognize him. Queen Laxmibai, the first person identified them, shot the English bullet from the pistol. Queen Laxmibai was very hurt, so she was lying in the war land. Queen Laxmibai was wearing men's costume, so the British could not identify them and left the queen in the war land. After this the soldiers of the queen took them to the nearby Gangadas monastery and gave them the Ganges, after which Queen Laxmibai stated his last wish and said that "no Englishmen would not touch their body".

17 जून ग्वालियर

17 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ लड़ाई की, और ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई के साथ उनकी सेविकाओं ने भी उनका साथ दिया। रानी लक्ष्मीबाई का घोडा़ पहले ही मर चूका था, तो इस युद्द में रानी लक्ष्मीबाई का घोडा़ नया था जिसके कारण इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई को भी अंदेशा हो गया था कि ये उनके जीवन की आखिरी लड़ाई भी हो सकती है। वे इस स्थिति को समझ गई, लेकिन फिर भी वीरता के साथ युद्ध करती रहीं। युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मीबाई पुरुष की पोषाक में थी। जिसके कारण सिर्फ कुछ ही लोग रानी लक्ष्मीबाई को पहचान पा रहे थे।

अंग्रेज जानते थे की रानी लक्ष्मीबाई इस युद्ध में ही कंही न कंही है। इस युद्ध में भारतीय सेना में ५,००० भारतीय सैनिकों का कत्लेआम किया। बहुत से लोग मारे गए। अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए, रानी लक्ष्मीबाई को बहुत सी चोट लगी। जिसके कारण रानी लक्ष्मीबाई घायल होकर अपने घोड़े से नीचे गिर गई। तभी उन्हें एक अंग्रेज ने उन्हें पहचान लिया। पहले की कोई और उन्हें पहचाने रानी लक्ष्मीबाई ने पिस्तौल से उस अंग्रेज गोली चला दी। रानी लक्ष्मीबाई बहुत घायल थी इसलिए वो वंही युद्ध भूमि में ही पड़ी रही। रानी लक्ष्मीबाई पुरुष की पोषाक पहने हुए थे इसलिए अंग्रेज उन्हें पहचान नहीं पाए और रानी को युद्ध भूमि में छोड़ गए। इसके बाद रानी के सैनिक उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गए और उन्हें गंगाजल दिया जिसके बाद महारानी लक्ष्मी ने अपनी अंतिम इच्छा बताते हुए कहा कि ”कोई भी अंग्रेज उनके शरीर को हाथ नहीं लगाए ”।

The British captured the city of Gwalior after three days. In the British report of this battle, Hugh Rose commented that Queen Lakshmibai is "personable, clever and beautiful" and she is "the most dangerous of all Indian leaders". Rose reported that she had been buried "with great ceremony under a tamarind tree under the Rock of Gwalior, where I saw her bones and ashes". Her tomb is in the Phool Bagh area of Gwalior. Twenty years after her death Colonel Malleson wrote in the History of the Indian Mutiny, 1878 'Whatever her faults in British eyes may have been, her countrymen will ever remember that she was driven by ill-treatment into rebellion, and that she lived and died for her country, We cannot forget her contribution for India.

अंग्रेजों ने तीन दिन बाद ग्वालियर शहर पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई की ब्रिटिश रिपोर्ट में, ह्यूग रोज ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई "व्यक्तित्व, चतुर और सुंदर" हैं और वह "सभी भारतीय नेताओं में सबसे खतरनाक" हैं। रोज़ ने बताया कि उसे ग्वालियर के रॉक के नीचे एक इमली के पेड़ के नीचे बड़े समारोह के साथ दफनाया गया था, जहाँ मैंने उसकी अस्थियाँ और राख देखी थी। उसकी कब्र ग्वालियर के फूल बाग इलाके में है। उनकी मृत्यु के बीस साल बाद कर्नल मल्लेसन ने हिस्ट्री ऑफ़ द इंडियन म्यूटिनी में लिखा, 1878 'ब्रिटिश आंखों में जो भी दोष थे, उनके देशवासियों को कभी भी याद होगा कि वह विद्रोह में बीमार व्यवहार से प्रेरित था, और वह जीवित और मर गया था उसके देश के लिए, हम भारत के लिए उसके योगदान को नहीं भूल सकते।

Samadhi of Queen

In this way, on 17 June 1858, Queen Laxmibai, martyr in the Phulbag area of ​​Gwalior, near Sarai of Kota. Courageous Queen Laxmi Bai always defeated his enemies with bravery and courage and introduced bravery and gave them freedom to the country to get freedom. At the same time, Queen Laxmibai did not have a large army to fight for war, nor was there any great state, but still, the courage that Queen Laxmibai had shown in this freedom struggle was really complimentary. Queen Lakshmi Bai's bravery is praised by her enemies too. At the same time, India's head will always be proud of such heroines. With this, Queen Lakshmi Bai is an inspiration for the other women.

इस तरह 17 जून 1858 को कोटा के सराई के पास रानी लक्ष्मी बाई ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में शहीद हो गई। साहसी रानी लक्ष्मीबाई ने हमेशा बहादुरी और हिम्मत से अपने शत्रुओं को पराजित कर वीरता का परिचय किया और देश को स्वतंत्रता दिलवाने में उन्होनें अपनी जान तक न्यौछावर कर दी। वहीं युद्ध लड़ने के लिए रानी लक्ष्मीबाई के पास न तो बड़ी सेना थी और न ही कोई बहुत बड़ा राज्य था लेकिन फिर भी रानी लक्ष्मीबाई ने इस स्वतंत्रता संग्राम में जो साहस का परिचय दिया था, वो वाकई तारीफ- ए- काबिल है। रानी लक्ष्मी बाई की वीरता की प्रशंसा उनके दुश्मनों ने भी की है। वहीं ऐसी वीरांगनाओं से भारत का सिर हमेशा गर्व से ऊंचा रहेगा। इसके साथ ही रानी लक्ष्मी बाई बाकि महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं।


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Bhangarh Fort Rajasthan


Bhangarh-Fort-most haunted place in india

Fort of Bhangarh

Fort of Bhangarh-This fort was constructed in Rajasthan in the 17th century. This fort is surrounded by high mountains and forests from all sides. This fort is considered to be the most visited fort of all the forts of Rajasthan. While this fort has completely hit a Ruins. Some ghostly stories are heard about this fort, and according to those stories we find that this fort was turned into a single night in a ruins. All the people living in this fort suddenly disappeared in a single night.  The team of the Archaeological Survey of India (ASI) has described this fort as one of the most haunted forts of India, and it is forbidden to go inside the fort before the sun sets, and after sunlight.

भानगढ़ का किला-राजस्थान में १७वीं शताब्दी में इस भानगढ़ किले का निर्माण किया गया था। यह किला चारों तरफ से ऊँचे -ऊँचे पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। यह किला राजस्थान बने सभी किलों में से सबसे ज्यादा देखे जाने वाला किला माना जाता है। जबकि यह किला पूरी तरह से एक खंडर हुआ पड़ा है। इस किले के बारे कुछ भूतिया कहानी सुनाई जाती है, और उन कहानियों के अनुसार हमें यह पता चलता है की ये किला एक ही रात में खण्डार में बदल गया था। इस किले के अन्दर रहने वाले सारे लोग अचानक से एक ही रात में कंही गायब हो गए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने इस किले हो भारत के सबसे भूतिया किलों में से एक बताया है, और इस किले के अन्दर सूर्य निकलने से पहले, और सूर्य ढलने के बाद जाना मना है।

There are many such things in this fort, which tells this fort a ghost, like all the walls of this fort are completely broken, there are only a few buildings which are still left. But all the buildings worth seeing have broken. Malware is still lying on the debris of all broken buildings. All the buildings in this huge fort of Bhangarh are broken. While the fort remained in the fort, the 17th century temple is still safe.

इस किले में बहुत सी ऐसी चीजें है, जो इस किले को भूतिया बताती है, जैसे, इस किले की सभी दीवारें पूरी तरह से टूट गई है, कुछ ही ईमारत है जो अभी ही बची हुई है। लेकिन देखने लायक सभी ईमारत टूट गई है। किले की टूटी हुई सभी इमारतों का मलवा अभी भी वंही पर पड़ा हुआ है। भानगढ के इस विशाल किले में सभी इमारते टूटी है। जबकि किले में बने हुए, १७वीं शताब्दी के मंदिर आज भी सुरक्षित है।

Bhangarh Fort built-Bhangarh Fort was built in the 17th century by Man Singh I for his younger son, Madho Singh I. The structure of this fort is very amazing, the fort is on a mountain, and this high hill is all around the fort. Due to this the fort is protected from the attack of enemies from all sides. This fort has ancient temples. Which remained of the 17th century, and is still safe. There are five gates in this fort and together with one main wall. To build this fort, strong stones have been used which are lying in their condition from the very ancient times. Many kings ruled in this fort. The fort was celebrated for a long time, and then once again, everything changed in one night.

भानगढ़ किले का निर्माण-भानगढ़ किले का निर्माण १७वीं शताब्दी में मान सिंह प्रथम ने अपने छोटे बेटे माधो सिंह प्रथम के लिए बनवाया था। इस किले की बनावट बहुत ही अद्भुत है, यह किला एक पर्वत पर है, और इस किले के चारो तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ है। जिसके कारण यह किला चारों तरफ से दुस्मनों के आक्रमण से सुरक्षित है। इस किले में प्राचीन मंदिर है। जो १७वीं शताब्दी के बने हुए, और आज भी सुरक्षित है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्‍य दीवार है। इस किले को बनाने के लिए, मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये हैं। इस किले में बहुत से राजाओं ने राज किया। इस किले में एक लम्बे समय तक खुशियाँ मनाई गई, और फिर एक दिन, एक ही रात में सब कुछ बदल गया।

Princess Ratnavati- Princess Ratnavati was very beautiful, the beauty of Princess Ratnavati was discussed all over India. People from far and wide used to come to see the beauty of Princess Ratnavati. Due to which people came from all over India to marry Princess Ratnavati. One day Princess Ratnavati was walking in the market with one of her maids. A magician was also roaming in the same market, and his name was Singhiya. Singhiya had mastered black magic.

राजकुमारी रत्नावती-राजकुमारी रत्नावती बहुत ही खूबसूरत थी, राजकुमारी रत्नावती की खूबसूरती के चर्चे पुरे भारत में होते थे। दूर -दूर से लोग राजकुमारी रत्नावती की सुन्दरता को देखने के लिए आते थे। जिसके कारण राजकुमारी रत्नावती से शादी करने के लिए पुरे भारत से लोग आते थे। एक दिन राजकुमारी रत्नावती अपनी एक दासी के साथ बाजार में घूम रही थी। उसी बाजार में एक जादूगर भी घूम रहा था, और उसका नाम सिंघि‍या था। सिंघि‍या ने काले जादू में महारथ हासिल कर ली थी।

After wandering in the market for a long time, Princess Ratnavati saw a very beautiful perfume shop. Princess Ratnavati went to the shop with her maid, and started buying perfumes. To assess the fragrance of the perfume, Princess Ratnavati opened a bottle of perfume and began to take stock of the perfume smell. Suddenly, at the same time, the magician was passing near the shop containing the perfume. That was when the fragrance of his perfume came, and he stopped at the same time.

काफी देर तक बाजार में घूमने के बाद राजकुमारी रत्नावती को एक बहुत ही सुन्दर इत्रों की एक दुकान दिखाई दी। राजकुमारी रत्नावती अपनी दासी के साथ उस दुकान पर गई , और इत्रों को खरीदने लगी। इत्र की महक का जायजा लेने के लिए, राजकुमारी रत्नावती ने इत्र की एक बोतल को खोला और इत्र की महक का जायजा लेने लगी। तभी अचानक से उसी समय जादूगर सिंघि‍या इत्र वाली दुकान के पास से गुजार रहा था। की तभी उसके इत्र की महक आई, और वो उसी समय वंही पर रूक गया।

As soon as the magician Singhia smelled perfume, he saw that two girls standing at the side of the perfume shop. One of the girls is taking fragrance by opening the bottle of perfume. Magician Singhia went to that girl As soon as the magician Singhia saw the princess Ratnavati, the magician Singhja got in love with the beauty of the princess Ratnavati. Princess Rathnavati bought perfumes from the perfume shop, and then went back to the fort with her maid again. Seeing princess Ratnavati, Magician Singhia followed Princess Rattnavati. After chasing some for a while, Magician Singhia saw that both girls were going inside the fort. Magician Singhia also thought of going inside the fort but the soldiers standing at the fort's door stopped Magician Singha from outside. Like the magician Singhia madly, the mind was starting to love the princess. She wanted to get the princess in every condition.

जैसे ही जादूगर सिंघि‍या ने इत्र की महक सुंगी, तो उसने देखा की बगल वाली इत्र की दुकान पर दो लड़कियाँ खड़ी है। जिनमें से एक लड़की ने इत्र की बोतल को खोलकर उसकी महक जायजा ले रही है। जादूगर सिंघि‍या उस लड़की के पास गया। जैसी ही जादूगर सिंघि‍या ने राजकुमारी रत्नावती देखा तो, जादूगर सिंघि‍या को राजकुमारी रत्नावती की खूबसूरती से प्यार हो गया। राजकुमारी रत्नावती इत्रों वाली दुकान से इत्र ख़रीदे, और फिर वापस अपनी दासी के साथ किले की और जाने लगी। राजकुमारी रत्नावती को जाता देखकर जादूगर सिंघि‍या ने राजकुमारी रत्नावती का पीछा किया। कुछ देर तक पीछा करने के बाद, जादूगर सिंघि‍या ने देखा की वो दोनों लड़कियाँ किले के अन्दर जा रही है। जादूगर सिंघि‍या ने भी किले के अन्दर जाने की सोची लेकिन किले के दरवाजे पर खड़े सैनिकों ने जादूगर सिंघि‍या को बाहर ही रोक दिया। जादूगर सिंघि‍या पागलो की तरह मन ही मन राजकुमारी से प्रेम करने लगा था। वो हर हालत में राजकुमारी को पाना चाहता था।

Magician Singhia adopted a number of measures to achieve the princess Ratnavati. But magician Singha could not succeed But he came to know one thing, which he did not know before. The girl who is trying to get her is doing it. That girl is the princess of that state, in which state magician Singhia lives. As soon as the magician Singha came to know it, the magician Singha understood that the result of this act would be the result of the death. But the magician Singhja went crazy in the love of Princess Ratnavati. He did not even fear his own death.

जादूगर सिंघि‍या ने राजकुमारी रत्नावती को प्राप्त करने के लिए, बहुत से उपाए अपनाए। लेकिन जादूगर सिंघि‍या कामयाब ना हो सका। लेकिन उसे एक बात पता चली, जो उसे पहले नहीं पता थी। जिस लड़की को प्राप्त की कोशिश वो कर रहा है। वो लड़की उस राज्य की राजकुमारी है, जिस राज्य में जादूगर सिंघि‍या रहता है। जैसे ही जादूगर सिंघि‍या को यह पता चला, तो जादूगर सिंघि‍या समझ गया की, उसकी इस हरकत का नतीजा की मोत होगा। लेकिन जादूगर सिंघि‍या राजकुमारी रत्नावती के प्रेम में इतना पागल हो गया था। की उसको अपनी मोत का भी डर नहीं लगा।

Magician Scindia's grave-जादूगर सिंधिया की कब्र

इत्र की शीशी पर काला जादू

जादूगर सिंधिया ने अपनी एक छोटी सी कुटिया भानगढ़ के किले दाये ओर वाले ऊँचे पहाड़ पर बना रखी थी। जादूगर सिंधिया अपनी इस छोटी सी कुटिया में अपने काले जादू की तंत्र-मंत्र का अभ्यास करता था। एक दिन जादूगर सिंधिया बाजार में उसी दुकान पर गया, जहाँ से राजकुमारी रत्नावती ने अपने लिए इत्र ख़रीदा था। जादूगर सिंधिया ने उस इत्र वाली दुकान से वैसा ही इत्र ख़रीदा, जैसा राजकुमारी रत्नावती ने अपने लिए ख़रीदा था।

Black magic on perfume bottle

Magician Scindia had set up a small hut on the high mountain on the right side of the fort of Bhangarh. Magician Scindia used to practice the technique of his black magic in this small cottage. One day, the magician Scindia went to the same shop in the market where Princess Ratnavati bought her perfume. Magician Scindia bought the perfume as per the perfume shop, as princess Ratnawati bought for herself.

इत्र खरीदने के बाद जादूगर सिंधिया ने उस इत्र पर एक बहुत ही खतरनाक काला जादू किया, इस काले जादू की मदद से जादूगर सिंधिया राजकुमारी रत्नावती को प्राप्त कर सकता था। इत्र की शीशी पर जादू करने के बाद, जादूगर सिंधिया को इस शीशी को राजकुमारी रत्नावती देना था। लेकिन कैसे?

After buying perfume, Magician Scindia did a very dangerous black magic on that perfume, with the help of this dark magic, magician Scindia could get the princess Ratnavati. After spell on perfume bottle, the magician Scindia had to give this bottle of the princess ratnavati. But how?

जादूगर सिंधिया कोई रास्ता ही सोच था की, तभी अचानक से जादूगर सिंधिया ने राजकुमारी रत्नावती की उस दासी को देखा, जिसके साथ राजकुमारी रत्नावती इत्र खरीदने बाजारआई थी। राजकुमारी रत्नावती की दासी को बाजार में देखकर, जादूगर सिंधिया को एक रास्ता दिखाई दिया। जादूगर सिंधिया उस दासी के पास गया, और दासी पर काला जादू करके उसे अपने वश में कर लिया।

Magician Scindia was thinking of some way, that suddenly, the magician Scindia saw the maid of princess Ratnavati with whom the princess was buying the Ratnavati perfume. Seeing the princess Rattnavati's maid in the market, Magician Scindia has seen a path. Magician Scindia went to that maid, and black magic on her maiden made her subdue.

As soon as the princess took control of Rattnavati's maid, Magician Singhia gave her a bottle of perfume, and said, "Give this perfume to the princess Ratnawati." The maid took the perfume bottle and kept it in the room of Princess Ratnavati. Later, Princess Rattnavati came to her room and started making her appearance, and suddenly, the look of Princess Rattanavati fell on the perfume bottle, and Princess Rathnavati got the perfume bottle up.As soon as Princess Rattnavati thought of opening the bottle of perfume, then only Princess Rattanavati came to know about the black magic on that perfume bottle. Princess Ratnavati had a good knowledge of black magic.

राजकुमारी रत्नावती की दासी को वश में करते ही, जादूगर सिंघि‍या ने दासी को इत्र की शीशी दी, और कहा, " यह इत्र राजकुमारी रत्नावती को दे दो। दासी ने उस इत्र की शीशी को ले जाकर राजकुमारी रत्नावती के कमरे में रख दी। थोड़ी देर बाद राजकुमारी रत्नावती अपने कमरे में आई, और अपना शृंगार करने लगी। तभी अचानक से राजकुमारी रत्नावती की नज़र इत्र की शीशी पर पड़ी। राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र की शीशी को उठाया। जैसे ही राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र वाली शीशी को खोलने की सोची तभी राजकुमारी रत्नावती को उस इत्र की शीशी पर हुए काले जादू के बारे में पता चल गया। राजकुमारी रत्नावती को काले जादू का अच्छा ज्ञान था।

Knowing the magic of perfume bottle, Princess Ratnavati threw the perfume bottle out of her room window. Going through a bottle of perfume, it collided with a very big rock and broke. Due to which the whole perfume spread on that stone. Because of which the stone began to flutter, and the magician started moving towards Singhia.

इत्र की शीशी पर हुए काले जादू का पता चलते ही राजकुमारी रत्नावती ने अपने कमरे की खिड़की से उस इत्र की शीशी को बाहर फेक दिया। इत्र की शीशी जाकर एक बहुत बड़े पत्थर से जा टकराई, और टूट गई। जिसके कारण सारा इत्र उस पत्थर पर फैल गया। जिसके कारण वो पत्थर लुड़कने लगा, और जादूगर सिंघि‍या की ओर बढ़ने लगा।

Unaware of all things, the magician Singhia was waiting for the arrival of the princess Ratnavati, sitting in a deserted place away from the princess Rattnavati's fort. Then suddenly he saw a big stone coming towards him. Seeing the big stone coming towards you, the magician Singhia got ready to run away. But the magician Singhja could not run away much. And drowned under the stone and died

सभी बातों से अनजान, जादूगर सिंघि‍या राजकुमारी रत्नावती के किले से दूर एक सुनसान जगह पर बैठा राजकुमारी रत्नावती के आने का इंतजार कर रहा था। तभी अचानक से उसे अपनी ओर आता एक बड़ा सा पत्थर दिखाई दिया। अपनी ओर आते हुए बड़े से पत्थर को देखकर, जादूगर सिंघि‍या भागने के लिए तैयार हो गया। लेकिन जादूगर सिंघि‍या ज्यादा दूर नहीं भाग सका। और पत्थर के नीचे दबकर मर गया।

But before dying, magician Singhja knew that someone has done magic on this stone. The magician Singhja could save his life from the incantations. But magician Singhia did not have much time. So he united the power of all his dark magic. And gave a curse to Bhangarh all. After that today, Bhangarh will be broken down and it will never be able to return. Except only the temples, all of Bhangarh's buildings will be broken and scattered on the ground.

लेकिन मरने से पहले जादूगर सिंघि‍या ये जान गया था की , इस पत्थर पर किसी ने जादू किया है। जादूगर सिंघि‍या मंत्र से अपनी जान बचा सकता था। लेकिन जादूगर सिंघि‍या के पास इतना समय नहीं था। इसलिए उसने अपनी सारी काले जादू की शक्ति को एकतित्र किया। और पुरे भानगढ़ को एक शाप दिया। कि आज के बाद भानगढ़ टूट फुट कर ढेर हो जायेगा, और ये वापस कभी बस नहीं पाएगा। सिर्फ मंदिरों को छोड़कर, भानगढ़ की सभी इमारतें टूटकर जमीन पर बिखर जाएगी।

After some time Princess Rattanavati died. According to some old stories, it is said that the curse of Magician Singha is still on Bhangarh. There is a temple in the fort of Bhangarh, which is named after the princess Ratnavati. Wherever the princess arrives today, and makes her makeup.

कुछ समय बाद राजकुमारी रत्नावती की मौत हो गई। कुछ पुरानी कथाओं के अनुसार ये बताया जाता है की, जादूगर सिंघि‍या का शाप आज भी भानगढ़ पर है। भानगढ़ किले में एक मंदिर है, जो राजकुमारी रत्नावती के नाम पर है। जहाँ पर आज भी राजकुमारी आती है, और अपना शृंगार करती है।

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Xiahou Dun


Xiahou Dun great warrior

Xiahou-Dun great warrior

Many historians have told us about the great warriors and kings of history. Today we are going to tell about one of those great warriors and kings. And his name is xiahou dun. Xiahou Dun was born in a dynasty family in China. Xiahou Dun was a very brave and fearless warrior. Xiahou Dun was the commander of the army of Cao Cao. Xiahou Dun was one of Cao Cao's most trusted general.

बहुत से इतिहासकारों ने इतिहास के बहुत महान योद्धाओं और राजाओं के बारे में हमें बताया है। आज हम उन्हीं महान योद्धाओं और राजाओं में से एक बारे में बताने जा रहे है। और उसका नाम है xiahou dun. Xiahou Dun का जन्म चीन में एक राजवंश परिवार में हुआ था। Xiahou Dun एक बहुत ही बहादुर और निडर योद्धा था। Xiahou Dun काओ काओ नाम की सेना का सेनापति था। Xiahou Dun काओ काओ के सबसे भरोसेमंद सेनापति में से एक था।


Xiahou Dun fought a lot together with his army. And also win all the battles Xiahou Dun always fights in the midst of his enemies And kills them. Xiahou Dun fights with every battle madness. Because of which Xiahou Dun's many brave tales were famous while fighting their enemies.But what is the most famous about Xiahou Dun. That's it. .... At the time of a war, Xiahou Dun was always fighting between his enemies and fighting his enemies. Then suddenly an arrow came in the eyes of Xiahou Dun. At the time of fighting between the war, the army of Xiahou Dun was suddenly scared of seeing the arrows in Xiahou Dun's eye. Seeing Xiahou Dun's arrow in the eye, Xiahou Dun's enemy seemed to have conquered Xiahou Dun. Then Xiahou Dun tried to get out by catching an arrow in his own eye. But with the arrow, his eyes came out too. All were surprised to see this. Xiahou Dun swallowed his eye just before coming out of the eye. Seeing this, the enemy of Xiahou Dun was very scared. And Xiahou Dun became famous as the name of an eye warrior.

Xiahou Dun अपनी सेना के साथ मिलकर बहुत सी लड़ाई लड़ा। और सभी लड़ाइयों को भी जीता। Xiahou Dun हमेशा अपने दुश्मनों के बीच में जाकर लड़ता। और उन्हें मार देता। Xiahou Dun हर लड़ाई पागलपन के साथ लड़ता। जिसके कारण अपने दुश्मनों से लड़ते समय Xiahou Dun के बहुत से बहादुरी के किस्से मशहूर हुए । लेकिन Xiahou Dun के बारे में जो किस्सा सबसे महशूर है। वो ये है। .... एक युद्ध के समय Xiahou Dun हमेशा की तरह अपने दुश्मनो के बीच जाकर अपने दुश्मनो से लड़ रहा था। तभी अचानक से एक तीर Xiahou Dun की आँख में आकर लग गया। युद्ध के बीच में लड़ते समय अचानक से Xiahou Dun की आँख में लगे तीर को देखकर Xiahou Dun की सेना डर गई। Xiahou Dun के आँख में लगे तीर देखकर Xiahou Dun के दुश्मन को लग रहा था की उसने Xiahou Dun को मात दे दी है। तभी Xiahou Dun ने अपनी आँख में लगे तीर को अपने हाँथ से पकड़कर बाहर निकलने की कोशिश की। लेकिन तीर के साथ उसकी आँख भी बाहर निकल आई। ये देखकर सभी हैरान थे। आंख के बाहर निकलते ही Xiahou Dun अपने दुश्मन के सामने ही अपनी आँख को निगल गया। ये देखकर Xiahou Dun का दुश्मन बहुत डर गया। और Xiahou Dun एक आंख वाले योद्धा के नाम से महशूर हो गया।

After this incident, the fear of Xiahou Dun was spread among many opposing armies. Due to which many opposing forces started scared to fight with Xiahou Dun. And many of its armies refused defeat without fighting. Xiahou Dun was the commander of Cao Cao's army. Cao Cao died at the age of 220. After that Xiahou Dun was promoted as General-in-Chief. He died a few months later.

इस हादसे के बाद Xiahou Dun का डर बहुत सी विरोधी सेनाओं में फ़ैल गया। जिसके कारण बहुत सी विरोधी सेना Xiahou Dun के साथ युद्ध करने से डरने लगी। और जिसके बहुत सी सेनाओं ने बिना युद्ध किये हार मान ली। Xiahou Dun काओ काओ की सेना का सेनापति था। काओ काओ की 220 की उम्र में मृत्यु हो गई थी। उसके बाद Xiahou Dun को जनरल-इन-चीफ के रूप में पदोन्नत किया गया था। कुछ महीने बाद उनकी मृत्यु हो गई।

The Cao Man Zhuan and the Shiyu mentioned that Xiahou Dun once suggested to Cao Cao to eliminate Liu Bei first in order to force Sun Quan to surrender of his own accord, and then follow in the footsteps of the mythological rulers Shun and Yu by making Emperor Xian voluntarily abdicate the throne to him. Cao Cao accepted his proposal. After Cao Cao's death, Xiahou Dun regretted his words and fell sick and died. The historian Sun Sheng dismissed the Shiyu account as nonsense, saying that it did not match what was recorded in the main text of Xiahou Dun's biography in the Sanguozhi – Xiahou Dun felt ashamed of serving under the Han imperial court so he requested to serve in Cao Cao's vassal kingdom.

काओ मैन झुआन और शियू ने उल्लेख किया कि ज़ियाउओ डुन ने एक बार काओ काओ को सुझाव दिया था कि वह सन बीऊ को खत्म करने के लिए सबसे पहले सन क्वान को अपने स्वयं के आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करे, और फिर सम्राट शाऊन और यू को सम्राट बनाकर उनके नक्शेकदम पर चलें। जियान ने स्वेच्छा से सिंहासन को उसके लिए त्याग दिया। काओ काओ ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। काओ काओ की मृत्यु के बाद, Xiahou Dun ने अपने शब्दों पर पछतावा किया और बीमार पड़ गया और मर गया। इतिहासकार सन शेंग ने शियू खाते को बकवास बताते हुए कहा कि यह मेल नहीं खाता था कि सोंगोझी में शियाहो डुन की जीवनी के मुख्य पाठ में क्या दर्ज किया गया था - शियाओउ डुन को हनी शाही अदालत के तहत सेवा करने में शर्म महसूस हुई इसलिए उन्होंने काओ में सेवा करने का अनुरोध किया काओ का जागीरदार साम्राज्य।


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Gwalior-Fort


Gwalior Fort(ग्वालियर किला)



The city of Gwalior is known for many historical places. These are the names of historical places. Gwalior Fort, Sun temple, Tomb and Scindia palace are famous for Maharaj Bada and some other historical places. This is a small and well organized city. But the level of pollution is higher today.

ग्वालियर शहर बहुत से ऐतिहासिक स्थानों के लिए जाना जाता है। इन ऐतिहासिक स्थानों के नाम है। ग्वालियर किले, सूर्य मंदिर, मकबरे और सिंधिया महल, महराज बड़ा और कुछ और ऐतिहासिक स्थानों के लिए प्रसिद्ध है। यह छोटा और सुव्यवस्थित शहर है। लेकिन प्रदूषण का स्तर आजकल अधिक है।

The history of Gwalior was established in the 8th century AD. Many years ago when a major disease, known as Suraj Sen, was suffering from a fatal illness and was cured by a sadistic Saint Gwalipa. In the form of gratitude for that incident, he established this city by his name. The new city of Gwalior has existed for centuries.

ग्वालियर के इतिहास का पता 8 वीं शताब्दी ईस्वी में लगाया गया था। आज से कई सालों पहले जब सूरज सेन के रूप में जाना जाने वाला एक प्रमुख रोग एक घातक बीमारी से पीड़ित था और एक साधु संत ग्वालिपा द्वारा ठीक किया गया था। उस घटना के लिए आभार के रूप में, उन्होंने अपने नाम से इस शहर की स्थापना की। ग्वालियर का नया शहर सदियों से अस्तित्व में है।

Gwalior Fort is visible from every direction of Gwalior city. This fort of Gwalior is built on a very high mountain of fort. Like all the forts built in the world, this fort has its own history. Today, the mountain on which this fort is situated, a beautiful city has been located around that mountain.While going inside this fort, a beautiful idol made of Jain religion is seen on the walls of the fort. Which has become very old. But today it looks very beautiful.

ग्वालियर किला ग्वालियर शहर की हर दिशा से दिखाई देता है। ग्वालियर का यह किला की बहुत ही ऊँचे पहाड़ पर बना हुआ है। दुनियाँ में बने सभी किलों की तरह इस किले का भी अपना ही एक इतिहास है। आज जिस पहाड़ पर ये किला है, उस पहाड़ के चारों तरफ एक सूंदर शहर स्थित हो गया है। इस किले के भीतर जाते समय किले की दीवारों पर जैन धर्म की बनी सूंदर मूर्ति देखने को मिलती है। जो बहुत ही पूरानी हो चुकी है। लेकिन आज भी बहुत सूंदर दिखाई देती है।



It is said that these statues, made from cuttings from within the mountain, are up to 57 feet in length. Around 1500 statues can be found on this mountain. These are very artistic in seeing the idol. Most of these statues were constructed during the period (1341-1479). Most of the idols were made of tomar dynasty. Who used to rule this fort at that time.

बताया जाता है की पर्वत को भीतर से काटकर बनाई गई इन मूर्तियों की लम्बाई ५७ फ़ीट तक है। इस पर्वत पर लगभग १५०० मूर्तियाँ देखने को मिल सकती है। ये सभी मूर्ति देखने में बहुत ही कलात्मक हैं। इनमे से ज्यादातर मूर्तियों का निर्माण (1341-1479) के काल में हुआ था। और ज्यादातर मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश ने करवाया था। जो उस समय इस किले पर राज किया करते थे।

There is a very interesting story about these sculptures cut down hill cliffs. When Babar attacked this fort in 1527. Babur won this fort. After the fort, when Babar saw these statues made of cutting the mountain cliffs which were all around. Babar ordered his soldiers to break statues. According to Babar's orders Babar's soldiers started idols. The soldiers had started to break statues. Then there was such a miracle that due to which all the soldiers who had come to break statues had to run back. Even today the idols of the idols that were broken during the Mughals period, the broken pieces of those idols still appear spread all over the fort.

पहाड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई इन मूर्तियों के बारे में एक बहुत ही दिलचप कहानी सुनाई जाती है। जब १५२७ में बाबर ने इस किले पर हमला किया। बाबर ने इस किले को जीत लिया। किले को जितने के बाद जब बाबर ने पहाड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई इन मूर्तियों देखा जो की चारो तरफ थी। तो बाबर ने अपने सैनिकों को मूर्तियों को तोड़ने का आदेश दिया। बाबर के आदेश अनुसार बाबर के सैनिको ने मूर्तियों को शुरू कर दिया। सैनिको ने मूर्तियों को तोड़ना शुरू किया ही था। की तभी एक ऐसा चमत्कार हुआ जिसकी वजह से मूर्तियों को तोड़ना आये सभी सैनिको को वापस भागना पड़ा। आज भी मुगलों के काल में जिन मूर्तियों तोड़ दिया गया था, उन मूर्तियों के टूटे हुए टुकड़े आज भी किले में चारों तरफ फैले हुए दिखाई देते हैं।


Made up of the mountain. This fort is a very fine artisan sample. The area of this fort is about 3 kilometers. Due to which this fort has been divided into two parts. The first part was "Gujari Mahal" which was built only for Queen Mraganayani. And the second part is "Maan Mandir" The oldest documents related to "Zero" on this fort are found in the temple of the fort. Those who were more than 1500 years old.

पहाड़ के ऊपर बना हुआ। यह किला एक बहुत ही बेहतरीन कारीगिरी का नमूना है। इस किले का क्षेत्रफल लगभग ३ किलोमीटर है। जिसके कारण इस किले को दो भागों में बाँटा गया है। पहला भाग ” गुजरी महल” जो की सिर्फ रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गया था। और दूसरा भाग है “मान मंदिर” इसी किले पर “शून्य” से जुड़े हुए सबसे पुराने दस्तावेज किले के मंदिर में मिले। जो की करीब 1500 साल से भी ज्यादा पुराने थे।

On this fort many Rajput kings, Mughals and the British ruled this fort for a very long time. Because of this he built many new places in this fort. After all this, many changes were seen from time to time in this fort.

इस किले पर बहुत से राजपूत राजाओं, मुगलों और अंग्रेजों ने बहुत लम्बे समय तक इस किले पर राज किया है। जिसके कारण उन्होंने इस किले में बहुत से नए-नए स्थानों का निर्माण करवाया। इन सबके बाद भी इस किले में बहुत से बदलाव समय-समय पर देखने को मिलते रहे।

This fort was the first king. His name was Suraj Sen, an ancient 'Suraj Kund' in his name is located on the fort. It was constructed by Man Singh Tomar in the 8th century. Then as time went on. By the way, many kings went to rule this fort. There is a Gujari Mahal in this fort. Which is very much below the height of the fort. This palace was built for Queen Mraganayani.

इस किले के जो पहले राजा थे। उनका नाम सूरज सेन था, उनके नाम का एक प्राचीन 'सूरज कुण्ड' किले पर स्थित है। इसका निर्माण ८ वीं शताब्दी में मान सिंह तोमर ने किया था। फिर जैसे-जैसे समय बीतता गया। वैसे-वैसे बहुत से राजा इस किले पर राज करते चले गए। इस किले में एक गुजरी महल है। जो किले की ऊँचाई से बहुत नीचे बना हुआ है। इस महल का निर्माण रानी मृगनयनी के लिए कराया गया था।


Queen Mraganayani was the wife of Raja Man Singh. Which was a buzzword. Due to this the name of this palace was named Gujari Mahal. Gujri Mahal is one of the famous archaeological museums of India. This building was in a very beautiful palace in its real time. There are many galleries in this Gujari palace and more than 9000 artifacts. There are also many centenary works of art here. Apart from this, the centuries old monuments, gems, iron objects, weapons, statues, inscriptions, pottery, paintings, beautiful shapes made on stone etc. See here.

रानी मृगनयनी, राजा मान सिंह की पत्नी थी। जो एक गूजर थी। इस कारण इस महल का नाम गुजरी महल पड़ा। गुजरी महल भारत के प्रसिद्ध पुरातात्विक संग्रहालयों में से एक है। यह इमारत अपने वास्तविक समय में एक बहुत ही सूंदर महल में थी। इस गुजरी महल में बहुत सी गैलरियां और 9000 से भी ज्यादा कलाकृतियाँ हैं। यहाँ पर कई शताब्दी कलाकृतियाँ भी हैं। इसके अलावा यहाँ पर शताब्दी पुराने मूल्यवान पत्थर, रत्न, लोहे की वस्तुएं, हथियार, मूर्तियाँ, शिलालेख, मिट्टी के बर्तन,पेंटिंग्स, पत्थर पर बनाई गई सुन्दर आकृतियाँ आदि। यहाँ पर देखने को मिलते है।


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Buland-Darwaza

BULAND DARWAZA (Fatehpur Sikri)AGRA

Buland Darwaza- Buland Darwaza is located 36km from Agra in Fatehpur Sikri, earlier this place was named Vijay Shekri. Akbar achieved this in 1569, and then it was changed from Vijay Sikri to Fatehpur Sikri.

बुलंद दरवाजा- बुलंद दरवाजा आगरा से ३६ किलो मीटर दूर फतेहपुर सीकरी में स्थित है पहले इस जगह का नाम विजय पुर सिकरी था १५६९ में ने अकबर ने इसे हासिल किया और फिर इसका विजय पुर सिकरी से बदलकर फतेहपुर सीकरी रख दिया गया

Buland Darwaza-Buland Darwaza is Asia's largest door, this gate is 176 feet high and its width is 35 feet. The door is about 100 years old from Taj Mahal. This door was built by Akbar in 1602. There is a very heart-breaking story behind this door.

बुलंद दरवाजा-बुलंद दरवाजा एशिया का सबसे बड़ा दरवाजा है इस दरवाजे की ऊँची 176 फ़ीट है और इसकी चौड़ाई 35 फ़ीट है यहाँ दरवाजा ताज महल से करीब 100 साल पुराना है इस दरवाजे को अकबर ने १६०२ में बनवाया था। इस दरवाजे को बनवाने की पीछे एक बहुत ही दिल चस्प किस्सा है।

Akbar-Jalal-ud-Din Mohammed Akbar, the third ruler of the Mughal dynasty, Akbar Akbar-e-Azam (ie Akbar the Great), Emperor Akbar, Mahabali is also known as the King's name, Akbar emperors of the Mughal Empire as a king, Both the Hindu Muslim got equal love and respect. He established a religion called Din-i-Elahi in order to reduce distances between Hindu-Muslim sects. The people of India had honored Akbar for his successful and efficient rule. In Arabic, the word Akbar means "great" or bigger.

अकबर-जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर, मुगल वंश का तीसरा शासक था, अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है, मुगल साम्राज्य के बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की, भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है।

There were three queens of Akbar, but Akbar did not get any offspring from the three queens, After the wedding was Akbar none of children from three wives if Akbar had very many years had passed a miserable marriage but Akbar not have any children to.

अकबर की तीन रानियां थी, लेकिन तीनों रानियों से अकबर को कोई भी औलाद नहीं हुई, जब शादी के बाद अकबर को तीनों रानियों से कोई भी औलाद नही मिली तो अकबर बहुत ही दुखी हो गए शादी के कई साल बीत गए लेकिन अकबर को कोई भी औलाद नही मिली.

Then one day Akbar came to know about a Sufi saint who lived in Fatepur, whose name was Salim Chishti, When Akbar met Salim Chishti, Akbar fell into his feet and sought help from him.

फिर एक दिन अकबर को एक सूफी संत के बारे में पता चला जो फत्तेपुर में रहते थे जिनका नाम था सलीम चिश्ती, जब अकबर सलीम चिश्ती से मिले तो अकबर उनके पैरो में गिर पड़े और उनसे मदद मांगने लगे,


Akbar had a son with the blessings of Salim Chishti, Akbar named his son as Salim because of the blessings of Akbar's son Salim Chishti, and Akbar later created a dargah for Salim Chishti in the joy of his son, where Salim Chishti Could pray.

सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर को एक बेटा हुआ, अकबर ने अपने बेटे का नाम सलीम रखा क्योकि अकबर का बेटा सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से हुआ था और फिर अकबर ने अपने बेटे की खुशी में सलीम चिश्ती के लिए एक दरगा बनवाई जहाँ पर सलीम चिश्ती इबादत कर सके.

Akbar's capital was Agra. But when Akbar achieved Fatehpur Sikri, he thought of making it his capital. And then in Fatehpur Sikri huge and beautiful buildings began to be formed. 156 9 to 1585 Fatehpur Sikri remained the capital of Akbar.

अकबर की राजधानी आगरा थी। लेकिन जब अकबर ने फतेहपुर सीकरी को हासिल किया तो इसे अपनी राजधानी बनाने की सोची। और फिर फतेहपुर सीकरी में विशाल और सुन्दर इमारतों का बनना शुरू हुआ। १५६९ से १५८५ तक फतेहपुर सीकरी अकबर की राजधानी बनी रही।.


Buland Darwaza - There are 54 stairs to reach the bulldog door. Buland Darwaza is the largest door of Asia this door is high 176 feet and its width is 35 feet on the door of nearly 100 years of Taj Mahal.

बुलंद दरवाजा - बुलंद दरवाजे तक पहुँचने के लिए ५४ सीढ़ियाँ है बुलंद दरवाजा एशिया का सबसे बड़ा दरवाजा है इस दरवाजे की ऊँची 176 फ़ीट है और इसकी चौड़ाई 35 फ़ीट है यहाँ दरवाजा ताज महल से करीब 100 साल पुराना है.

Buland Darwaza - Made of red sandstone and this door has been decorated with various colours which are still seen today. There are some rectangles of the Quran above this door and it is written at this door. There are some lines related to Jesus Christ on the porch of the door which are as follows "Mary, the son of Mary, said: This world is like a bridge, pass it on, but do not build your house on it. One who has hope for a day can hope for a long time, It is only for the whole, so spend your time in prayer because everything else is invisible Akbar is considered to be a symbol of religious tolerance to the presence of these lines of the Bible on the elevated door.

बुलंद दरवाजा-लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है और इस दरवाजे को अनेकों रंग के पत्थर से सजाया गया है जो आज भी देखने को मिलती है इस दरवाजे के ऊपर कुरन की कुछ आयतें भी लिखी हुई है और इस दरवाजे पर दरवाजे़ के तोरण पर ईसा मसीह से संबंधित कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं जो इस प्रकार हैं, मरियम के पुत्र यीशु ने कहा, "यह संसार एक पुल के समान है, इस पर से गुज़रो अवश्य, लेकिन इस पर अपना घर मत बना लो। जो एक दिन की आशा रखता है वह चिरकाल तक आशा रख सकता है, जबकि यह संसार घंटे भर के लिये ही टिकता है, इसलिये अपना समय प्रार्थना में बिताओ क्योंकि उसके सिवा सब कुछ अदृश्य है" बुलंद दरवाज़े पर बाइबिल की इन पंक्तियों की उपस्थिति को अकबर को धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है,

Jodha Bai-Jodha Bai's palace is the largest and most important part of Imperial Harem, having all facilities, provisions and safeguards. The name Jodha Bai palace is a misnomer in itself. It is most widely accepted that the building was for Raniwas or Zenani-Dyodhi. The palace building consists of a rectangular block with a single magnificent gateway on eastern side, which was protected by guard rooms, having triangular ceiling and other apartments. Several Hindu motifs have been used in the building, which confirms that occupant of the building was a Hindu lady.The architecture of Jodha Bai's palace can still be seen today. This palace of Jodha Bai is made of red sandstone.

जोधाबाई-जोधाबाई का महल इंपीरियल हरेम का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें सभी सुविधाएं, प्रावधान और सुरक्षा उपाय हैं। जोधाबाई महल नाम अपने आप में एक मिथ्या नाम है। यह सबसे अधिक व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि इमारत रानीवास या ज़नानी-दयोधी के लिए थी। महल की इमारत में पूर्वी तरफ एक शानदार गेटवे के साथ एक आयताकार ब्लॉक होता है, जिसे गार्ड रूम द्वारा संरक्षित किया जाता था, जिसमें त्रिकोणीय छत और अन्य अपार्टमेंट होते थे। इमारत में कई हिंदू रूपांकनों का उपयोग किया गया है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि इमारत में रहने वाली एक हिंदू महिला थी। जोधा बाई के महल की वास्तुकला को आज भी देखा जा सकता है। जोधा बाई का ये महल लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है।


Panch Mahal-Panch Mahal is a five-story building in Fatehpur Sikri. This building was constructed by Akbar. This five-storey building is very famous for its exceptional architecture. This building of five-storey was used for recreation and relaxation. This is one of the most important buildings of Fatehpur Sikri. It is an extraordinary structure that employs design elements of the Buddhist temple.

पंच महल-पंच महल फतेहपुर सीकरी में एक पाँच मंजिला इमारत है। इस इमारत का निर्माण अकबर ने करवाया था। पाँच मंजिला की ये इमारत अपनी असाधारण वास्तुकला के लिए बहुत प्रसिद्ध है। पाँच मंजिला की इस इमारत मनोरंजन और विश्राम के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह फतेहपुर सीकरी की सबसे महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है। यह एक असाधारण संरचना है जो बौद्ध मंदिर के डिजाइन तत्वों को नियोजित करती है।

Birbal-Birbal was commander in the court of Akbar. Birbal was a Hindu Brahmin. Nevertheless he was the chief adviser to Mughal Emperor Akbar's court. Birbal was very clever with his intelligence. Due to that, he is known mostly for folk tales in the Indian subcontinent, which is centered on his intelligence. Birbal had a close relationship with Emperor Akbar and he was one of his most important courtiers. Birbal, the religion established by Akbar, was the only Hindu who adopted Din-i-Elahi.

बीरबल-बीरबल, अकबर के दरबार में उनके मुखिया सेनापति थे। बीरबल, एक हिंदू ब्राह्मण थे। फिर भी वो मुगल सम्राट, अकबर के दरबार में उनके मुखिया सलाहकार थे। बीरबल अपनी बुद्धि से बहुत ही चालाक थे। जिसके कारण उन्हें ज्यादातर भारतीय उपमहाद्वीप में लोक कथाओं के लिए जाना जाता है जो उनकी बुद्धि पर केंद्रित हैं। बीरबल का सम्राट अकबर के साथ घनिष्ठ संबंध था और वह उनके सबसे महत्वपूर्ण दरबारियों में से एक थे। बीरबल, अकबर द्वारा स्थापित धर्म दीन-ए इलाही को अपनाने वाला एकमात्र हिंदू था।

Birbal was born in 1528 as Mahesh Das, in a Hindu Brahmin family, in District Sidhi, Madhya Pradesh, India. According to folklore, it was in Tikwanpur along the river Yamuna. Birbal was educated in Hindi, Sanskrit and Persian. Birbal served in the Rajput court of King Ram Chandra. After that Birbal's economic and social status improved when he married the daughter of a respected and wealthy family. After that Birbal served in the imperial court of Mughal Emperor Akbar.

बीरबल का जन्म 1528 में महेश दास के रूप में, एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जिला सीधी, मध्य प्रदेश, भारत में हुआ था। लोककथाओं के अनुसार, यह यमुना नदी के किनारे टिकवनपुर में था। बीरबल हिंदी, संस्कृत और फारसी में शिक्षित थे। बीरबल ने राजा राम चंद्र के राजपूत दरबार में सेवा की। उसके बाद बीरबल की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ जब उन्होंने एक सम्मानित और अमीर परिवार की बेटी से शादी की। उसके बाद बीरबल ने मुगल सम्राट अकबर के शाही दरबार में अपनी सेवाएं दी।


Birbal's palace-Birbal's palace was used more as accommodation for Akbar's senior queens. Rukayya Begum and Salima Sultan Begum. Although a Hindu Brahmin was built, Birbal's house was inspired by Persian and Mughal architecture. Birbal's house is near the north-west corner of Jodha Bai's palace. The palace of Birbal was built in 1571.

बीरबल महल-बीरबल के महल का उपयोग अकबर की वरिष्ठ रानियों के लिए आवास के रूप में अधिक किया जाता था। रूकय्या बेगम और सलीमा सुल्तान बेगम। हालांकि एक हिंदू ब्राह्मण के लिए बनाया गया था, बीरबल का घर फारसी और मुगल वास्तुकला से प्रेरित था। बीरबल का घर जोधाबाई के महल के उत्तर-पश्चिम कोने के पास है। बीरबल का महल 1571 में बनाया गया था।

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