RED FORT DELHI

लाल किला (RED FORT)

लाल किला (RED FORT)

The Red Fort is a large fort built in Delhi, the capital of India. This fort is made of red stones, this fort is 33 meters high. Being made of red stones, this fort has been named Red Fort. This fort is in the middle of the capital of India. The vastness of this fort and its strength can be gauged from outside the fort.

लाल किला भारत की राजधानी दिल्ली में बना हुआ एक विशाल किला है। यह किला लाल पत्थरों से बना हुआ है, यह किला 33 मीटर ऊँचा है। लाल पत्थरों से बने होने के कारण इस किले को लाल किला (Red Fort) नाम दिया गया है। यह किला भारत की राजधानी के बीचों बिच में है। इस किले की विशालता और इसकी मजबूती का अंदाजा इसे बाहर से ही देखकर लगाया जा सकता है।

दिल्ली दरवाजा (Delhi door)

There are five doors in this fort, Delhi door is to the south of this fort. Which opens towards the Jama-Majid. The king used to go to Majid from this door. In 1903, Lord Curzon erected stone elephants on both sides of this door. Lahori Darwaza is the main door of the five gates of the fort. After going in through this door, the hive market starts. In the time of Emperor, this market sold all the goods in the world.

इस किले में पांच दरवाजे है इस किले के दक्षिण में दिल्ली दरवाजा है। जो जमा मजीद की ओर खुलता है। बादशाह इस दरवाजे से जमा मजीद जाया करते थे सन १९०३ में लार्ड कर्ज़न ने इस दरवाजे की दोनों ओर पत्थर के हाथी खड़े करवा दिए। किले के पांचो दरवाजो में से मुख्या दरवाजा लाहोरी दरवाजा है। इस दरवाजे से अंदर जाने के बाद छत्ता बाजार शुरू हो जाता है। बादशाह के समय में इस बाजार में दुनिया की सभी वस्तुए बिका करती थी।

लाहोरी दरवाजा (Lahori door)

Lahori is seen on the building of Nakkar Khana as soon as it leaves the door. This building is two floors, Jahandar Shah and Farrukhsiyar were killed in this Nakkar Khana.

लाहोरी दरवाजे से निकलते ही नजर पड़ती है नक्कार खाना की ईमारत पर। ये ईमारत दो मंजिल है इसी नक्कार खाना में जहाँदार शाह और फरुखसियर का क़त्ल किया गया था।


दीवाने ए खास (Diwane-a-aam)

After leaving Nakkar Khana, it is seen right in front of the Diwane aam. Diwane aam was decorated with gold and precious stones from place to place. But when the British captured the fort, they removed all the gold and precious stones in the Diwane aam. Diwane aam is 40 feet in length, 60 feet in width and the height of the roof is 30 feet. The pillar in the Diwane aam has beautiful carvings, which are still seen today. In the middle of this Diwane aam is a throne made of 21 feet wide marble on which the emperor used to sit. A beautiful beauty is seen on this throne.

नक्कार खाना से निकलने के बाद ठीक सामने नजर जाती है दीवाने ए खास की ओर। दीवाने आम को जगह-जगह सोने और कीमती पथरो से सजाया गया था। लेकिन जब अंग्रेजो ने किले पर कब्जा किया तब उन्होंने दीवाने आम में लगे सभी सोने और कीमती पथरो को निकल लिया। दीवाने आम की लम्बाई ८० फुट , चौड़ाई ४० फुट और छत की ऊंचाई ३० फुट है। दीवाने आम में लगे खम्बो पर सूंदर नक्काशी की गई है जो आज भी देखने को मिलती है। इस दीवाने आम के बीचों बीच एक २१ फ़ीट चौड़ा संगमरमर से बना एक सिंघासन है जिस पर बादशाह बैठा करते थे। इस सिंघासन पर बहुत ही सूंदर कारीगिरी देखने को मिलती है।

दीवाने ए खास(Diwane-a-khas)

It comes after the diwane aam. Deewane e Khas

The walls of Diwane-e-Khas are made of white marble, its length is 90 feet and the width is 66 feet. Deewane A Khas had a silver roof. It is said that Diwane used to flow a canal in the middle of A Khas. What used to be called Canal A Bahisht and in this Canal A Bahisht there used to be fountains at different places. It is written in Deewane e Khas. If the earth is heaven then it is here. It is here

दीवाने आम के बाद बारी आती है। दीवाने ए खास- दीवाने ए खास की दीवारे सफ़ेद संगमरमर की बनी हुई है इसकी लम्बाई ९० फ़ीट है और चौड़ाई ६६ फ़ीट है। दीवाने ए खास की छत चांदी की हुआ करती थी। कहा जाता है की दीवाने ए खास के बीचों बीच एक नहर बह करती थी। जिसे नहर ए बहिश्त कहते थे और इस नहर ए बहिश्त में जगह-जगह फवारे चलते थे। इस दीवाने ए खास में लिखा है। अगर पृथ्वी स्वर्ग है तो यहीं है। यहीं है।


The turn comes after Diwane e Khas. Shahi-Hammam (Royal Bathroom, The Shahi-Hammam (royal bathroom) has three large rooms. The walls and floor of the Shahi-Hammam (royal bathroom) were covered with precious stones. It is said that a canal flowed in the Shahi-Hammam (royal bathroom). 100 pieces of wood were used to heat the canal water.

दीवाने ए खास के बाद बारी आती है। शाही-हम्माम (शाही बाथरूम), शाही-हम्माम(शाही बाथरूम) में तीन बड़े कमरे है शाही-हम्माम (शाही बाथरूम) की दीवारों और फर्श को कीमती रंग बिरंगे पथरो से जाया गया था। ऐसा कहा जाता है की शाही-हम्माम (शाही बाथरूम) में एक नहर बहती थी नहर के पानी को गर्म करने के लिए १०० मन लकडिया जलाई जाती थी।


Just a short distance from Shahi-Hammam is the Hira Mahal built by Bahadur Shah, it was built in 1726. Aurangzeb built Moti Majid in the Red Fort built by Shahjahan, which is a very beautiful building made of white marble. It was built for Majid Badshah and his begums.

शाही-हम्माम से कुछ ही दुरी पर बहादुर शाह का बनवाया हुआ हिरा महल है इसे १८२४ में बनवाया गया था। शाहजंहा के बनवाये गए लाल किले में औरंगजेब ने मोती माजिद का निर्माण करवाया जो सफ़ेद संगमरमर की बनी एक बहुत खुबशुरत ईमारत है। यह माजिद बादशाह और उनकी बेगमों के लिए बनवाई गई थी।


A scale is made on a wall of Diwan-e-Khas and there it is written Mijane Adl (Scales of Justice).There are stars around this scale and a moon emanating from these stars can also be seen.

दीवान ए खास की एक दिवार पर एक तराजू बना हुआ है और वहाँ लिखा है मिजाने अद्ल (न्याय का तराजू) इस तराजू के चारो तरफ सितारे बने हुए है और इन सितारों में से निकलता हुआ एक चाँद को भी देखा जा सकता है।

One can see a magnificent specimen of Hindu and Muslim architecture at this fort. The construction of this Red Fort started in 1639 and it was completed on 6 April 1648 as a fort. This fort is built on 250 acres of land, this fort was ruled by the rulers of the Mughal dynasty for nearly 200 years. This fort is one of the best and grand forts in the world, built by the Mughal ruler Shah Jahan, who was a keen lover of literature and art.

इस किले पर हिन्दू और मुस्लिम वास्तुकला का एक शानदार नमूना देख सकते है। इस लाल किले का निर्माण 1639 में शुरू हुआ था और 6 अप्रैल 1648 को यह किला बन कर तैयार हुआ था। यह किला 250 एकड़ जमीन में बना हुआ है इस किले पर करीब 200 सालों तक मुगल वंश के शासकों का राज रहा। यह किला दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और भव्य किलों में से एक है, जिसे साहित्य और कला के गूढ़ प्रेमी रहे मुगल शासक शाहजहां द्धारा बनवाया गया था।

On 15 August 1947, when India became free from the slavery of the British, India's first Prime Minister Jawaharlal Nehru waved the Indian national flag above the Lahore Gate (Red Fort). Every Independence Day thereafter, the Prime Minister of India waving the national flag at the Red Fort.

15 अगस्त 1947 को, जब भारत अंगेजो की गुलामी से आजाद हुआ तो भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर गेट (लाल किला) के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया। इसके बाद हर स्वतंत्रता दिवस पर, भारत के प्रधान मंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज को लहराते है।

This huge historical artwork made of Indian and Mughal architecture, located in the capital of India, Delhi, was built by Shah Jahan, the fifth Mughal ruler. This magnificent fort is situated on the banks of the Yamuna River in the center of Delhi, surrounded by the Yamuna River on all three sides, which is seen in its amazing beauty and attractiveness. It is included in the list of World Heritage. The construction of this magnificent Red Fort of India lasted from 1639 to 1648 AD. All the buildings built by Mughal emperor Shah Jahan have their own different historical significance. While the Taj Mahal built by him has been named among the seven wonders of the world because of its beauty and attractiveness, the Red Fort of Delhi has gained worldwide fame.

भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित भारतीय और मुगल वास्तुशैली से बने इस विशाल ऐतिहासिक कलाकृति का निर्माण पांचवे मुगल शासक शाहजहां ने करवाया था। यह शानदार किला दिल्ली के केन्द्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है, जो कि तीनों तरफ से यमुना नदीं से घिरा हुआ है, जिसके अद्भुत सौंदर्य और आर्कषण को देखते ही बनता है। विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है। भारत के इस भव्य लाल किले का निर्माण का काम 1639 से 1648 ईसवी तक चला। मुगल बादशाह शाहजहां के द्धारा बनवाई गई सभी इमारतों का अपना-अपना अलग-अलग ऐतिहासिक महत्व है। जबकि उनके द्धारा बनवाया गया ताजमहल को उसके सौंदर्य और आर्कषण की वजह से जिस तरह दुनिया के सात अजूबों में शुमार किया गया है, उसी तरह दिल्ली के लाल किला को विश्व भर में शोहरत मिली है।

Due to the construction of this huge fort, Delhi, the capital of India, was also called Shahjahanabad, along with it is considered to be a creativity example of Shah Jahan's reign. After Mughal emperor Shah Jahan, his son Aurangzeb also built Moti Masjid in this fort. Then in the 17th century, Jahandar Shah captured the Red Fort, then the Red Fort remained without a ruler for almost 30 years. Shortly thereafter, Nadir Shah took possession of the Red Fort and ruled it, and then the Sikhs also ruled this fort for some time.

इस विशाल किले के बनने की वजह से भारत की राजधानी दिल्ली को शाहजहांनाबाद भी कहा जाता था, साथ ही यह शाहजहां के शासनकाल की रचनात्मकता मिसाल माना जाता है। मुगल सम्राट शाहजहां के बाद उसके बेटे औरंगजेब ने इस किले में मोती-मस्जिद (Moti Masjid) का भी निर्माण करवाया था। फिर 17वीं शताब्दी में जहंदर शाह ने लाल किले पर कब्जा कर लिया, तब करीब 30 साल तक लाल किले बिना शासक का रहा था। इसके कुछ समय बाद नादिर शाह ने लाल किले पर कब्ज़ा कर लिया और अपना शासन चलाया और फिर कुछ समय तक इस किले पर सिखों का भी शासन रहा।

Then came the time which gradually enslaved all the people of India, and it was the time of 18th century. This was the time when the British came to India to trade. When the British came to trade India, they thought of running their rule here. And then gradually the British started ruling India under the name of East India Company. The British ruled India for nearly 200 years.

फिर वो समय आया जिसने भारत के सभी लोग धीरे-धीरे गुलाम बना दिया, और यह समय था 18वीं सदी का। यह वो समय था जब अंग्रेजों भारत व्यापार करने आये थे। जब अंग्रेजों भारत व्यापार करने आये तो उन्होंने यहाँ पर अपना शासन चलाने की सोची। और फिर धीरे-धीरे अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से भारत पर राज करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने करीब २०० सालों तक भारत पर राज किया।


There was a time when the British ruled this Red Fort. The British used to meet in the Red Fort itself. The British kept plundering India for years. He took all the precious things of India with him to England. He even took the Kohinoor diamond with him. One of the world's largest cut diamonds, weighing 105.6 carats, and part of the British Crown Jewels. Probably mined in Golconda, India, but there is no record of its original weight, but the earliest well attested weight is 186 carats.

एक समय ऐसा भी आया था जब इस लाल किले पर अंग्रेजों का राज हो गया था। अंग्रेजों की मीटिंग लाल किले में ही हुआ करती थी। सालों तक अंग्रेज भारत को लुटते रहे। वो भारत की सभी कीमती वस्तुएं अपने साथ इग्लैंड ले गए। यहाँ तक की वो अपने साथ कोहिनूर हीरे को भी ले गए। जो दुनिया के सबसे बड़े कट हीरे में से एक है, जिसका वज़न 105.6 कैरेट है, और ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है। संभवतः भारत के गोलकोंडा में खनन किया गया है, लेकिन इसके मूल वजन का कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन जल्द से जल्द अच्छी तरह से अटेस्टेड वजन 186 कैरेट है।

After the years of prolonged slavery of the British, on 15 August 1947, when India became free from the slavery of the British, India's first Prime Minister Jawaharlal Nehru waved the Indian national flag above the Lahore Gate (Red Fort). Every Independence Day thereafter, the Prime Minister of India waving the national flag at the Red Fort. After Independence, the Red Fort was used for military training and then it became a major tourist destination, while due to its attractiveness and grandeur it was included in the list of World Heritage in 2007 and today it People from every corner of the world go to Delhi to see the beauty.

अंग्रेजों की सालों तक की लम्बी गुलामी के बाद जब 15 अगस्त 1947 को, भारत अंगेजो की गुलामी से आजाद हुआ तो भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर गेट (लाल किला) के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया। इसके बाद हर स्वतंत्रता दिवस पर, भारत के प्रधान मंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज को लहराते है। आजादी के बाद लाल किले का इस्तेमाल सैनिक प्रशिक्षण के लिए किया जाने लगा और फिर यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रुप में मशहूर हुआ, वहीं इसके आर्कषण और भव्यता की वजह से इसे 2007 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया था और आज इसकी खूबसूरती को देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे देखने दिल्ली जाते हैं।

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Qutub Minar

Qutub Minar (कुतुब मीनार)
Qutub Minar (कुतुब मीनार)

The most visited monuments in the capital of India are Qutub Minar, Khan-e-Khana, Tughlaqabad Fort, Kotla Feroz Shah, Safdar Jung's Tomb, Red Fort, Humayun's Tomb, Purana Quila.

भारत की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्मारक कुतुबमीनार, खान-ए-खाना, तुगलकाबाद फोर्ट, कोटला फिरोज शाह, सफदर जंग का मकबरा, लाल किला, हुमायूं का मकबरा, पुराना किला है।

Today we are going to tell you about the Qutub Minar. The construction of Qutub Minar was started by Qutubuddin Aibak (قطب الدین ایبک۔) in 1193. Shortly after the construction of Qutub Minar began, Qutbuddin Aibak (قطب الدین ایبک۔) died suddenly. After the death, the construction of the Kutub Minar was stopped. Then after some time the construction work of Qutub Minar started again. This construction was started by Iltutmish (الٹٹومیش). Who sat on Delhi's throne after the death of Qutubuddin Aibak,

आज हम आपको कुतुब मीनार के बारे में बताने जा रहे है। कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९३ में शुरू करवाया था। कुतुबमीनार के निर्माण कार्य शुरू होने के कुछ समय बाद अचानक कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई। और उनकी मृत्यु के बाद कुतुबमीनार का निर्माण कार्य रूक गया। फिर कुछ समय बाद कुतुबमीनार का निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ। इस निर्माण को इल्तुतमिश ने शुरू करवाया। जो कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा,


Qutub Minar is the world's highest tower made of brick. It is 72.5 meters (237.86 ft) in height and 14.3 meters in diameter, which rises to 2.75 meters (9.02 ft) at the summit. It has 379 steps. Qutubuddin Aibak, the first Muslim ruler of Delhi, started the construction of Qutub Minar in 1193, inspired by Afghanistan's desire to move ahead of the Jam Minar of Afghanistan.

कुतुब मीनार, ईंट से बनी हुई दुनिया की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर (237.86 फुट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फुट) हो जाता है। इसमें 379 सीढियाँ हैं। इस मीनार को अफ़गानिस्तान की जाम मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, ने कुतुब मीनार का निर्माण सन 1193 में आरम्भ करवाया,

Iltutmish (الٹٹومیش), who sat on the throne of Delhi after the Aibak, added three floors to it. Then after some time passed, there was a sudden fire in Qutub Minar. After the fire in Qutub Minar, it was rebuilt in 1368, during the reign of Firoz Shah Tughlaq. Firoz Shah Tughlaq built the fifth and final floor. A change in architectural and architectural style from Aibak to Tughlaq can be seen in this tower. The tower is made of red stone, on which finely carved verses of Quran and flower bells are carved.

इल्तुतमिश ने जो ऐबक के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा, उसने इसमें तीन मंजिलें जुड़वाईं। फिर कुछ समय बीत जाने के बाद कुतुबमीनार में आचनक आग लग गई। कुतुबमीनार में आग लगने के बाद उसका पुनर्निर्माण सन 1368 में फिरोज शाह तुगलक के समय हुआ। फिरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अन्तिम मंजिल बनवाई। इस मीनार में ऐबक से तुगलक तक के स्थापत्य एवं वास्तु शैली में बदलाव को देखा जा सकता है। मीनार को लाल पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है।


It is believed by historians that the Qutub Minar was used as the minaret of the nearby Kuwawat-ul-Islam Mosque and was given azaan from here. It is also said that Islam emerged as a symbol of victory over Delhi. Some archaeologists believe that it was named after the first turk Sultan Qutbuddin Aibak (عثمانی سلطان قطب الدین ایبک۔), while some believe that it is named after the famous saint Qutubuddin Bakhtiar Kaki of Baghdad, who came to live in India. The inscription here says that it was repaired by Firoz Shah Tughlaq (فیروز شاہ تغلق۔) (1351 to 1388) and Sikandar Lodhi (سکندر لودھی۔ ) (1489–1517). It was renovated in 1829 by Major R. Smith.

इतिहासकारों के द्वारा माना जाता है कि कुतुब मीनार का इस्तेमाल पास ही में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की मीनार के रूप में होता था और यहां से अजान दी जाती थी। यह भी कहते हैं कि इस्लाम की दिल्ली पर विजय के प्रतीक रूप में बनी। कुछ पुरातत्व शास्त्री मानते हैं कि इसका नाम पहले तुर्क सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर पडा, वहीं कुछ यह मानते हैं कि इसका नाम बग़दाद के प्रसिद्ध सन्त कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर है, जो भारत में रहने आए थे। यहाँ लगे शिलालेख में लिखा है कि इसकी मरम्मत फ़िरोज शाह तुगलक ने (1351-88) और सिकंदर लोधी (1489-1517) ने करवाई। मेजर आर.स्मिथ ने इसका जीर्णोद्धार 1829 में करवाया था।

There are many fine specimens of Indian art built around the Kubut Minar, many of which date back to 1193 AD or earlier. Among them, the first mosque in India, Quvvat-ul-Islam, built by Qutubuddin Aibak, the fourth-century lunar iron pillar (iron pillar), Alai Darwaza, Iltutmish's tomb (1235 AD). The specialty of the iron Pillar is that it has been standing in the open sky for a long time since 1700 years. Sunshine, rain and dust have been falling over it for years, but even then it has not rusted.

कुबुत मीनार के चारों ओर बनी भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1193 या और पहले के हैं। इनमें कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई भारत की पहली मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम, चौथी सदी का चंद्र लोह स्तम्भ (आयरन पिलर), अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा (1235 इसवी) प्रमुख हैं। लोह स्तम्भ की खासियत यह है कि 1700 साल के लंबे अर्से से यह खुले आसमान में खड़ा है। इसके ऊपर सालों से धूप, बारिश और धूल गिरती रही है, लेकिन इसके बावजूद भी इस पर जंग नहीं लगा है।


incomplete tower

Another tower was started near Qutub Minar. It is called Alai Minar. It was started by Alauddin Khilji ( علاؤالدین خلجی۔). He wanted to build a tower twice as big as the Qutub Minar. Apart from the foundation of this tower, work was done up to a height of about 80 feet, but after the death of Alauddin in 1316, this work remained incomplete. It is said that if this incomplete tower were a full tower, then the huge tower would not have been anywhere in the world. This can be seen by looking at this incomplete tower.

अधूरी मीनार

कुतुब मीनार के पास ही एक और मीनार बनाने की शुरूआत की गई थी। इसे अलाई मीनार कहते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने इसका निर्णाण शुरू कराया था। वे कुतुब मीनार से दुगनी ऊँची मीनार बनाना चाहते थे। इस मीनार की बुनियाद के अलावा करीब 80 फुट की ऊँचाई तक काम हो गया था, पर सन 1316 में अलाउद्दीन की मौत के बाद यह काम अधूरा रह गया। ऐसा कहा जाता है की ये अधूरी मीनार यदि पूरी मीनार होती तो इससे विशाल मीनार दुनिया में कंही भी ना होती। इस बात का अंदजा इस अधूरी मीनार को देखकर लगया जा सकता है।

Qutub Minar is attracting foreign tourists a lot. This information has been received from the Archaeological Survey of India (ASI). According to ASI Delhi Circle, foreign tourists visit Qutub Minar most. At the same time, most Indian tourists arrive in Lal Qila. In the year 2016-17, 3.2 million tourists visited Qutub Minar. Of these, the number of domestic tourists was about 2.9 million and the number of foreign tourists was 2.5 million. At the same time, 3 million tourists visited Lal Quila, out of which 2.9 million domestic and foreign tourists were around one lakh.

कुतुबमीनार विदेशी पर्यटकों को काफी लुभा रहा है। इस बात की जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से मिली है। एएसआई दिल्ली सर्किल के मुताबिक, विदेशी पर्यटक सबसे ज्यादा कुतुबमीनार देखने पहुंचते हैं। वहीं लालकिला में सबसे अधिक भारतीय पर्यटक पहुंचते हैं। साल 2016-17 में कुतुबमीनार देखने 32 लाख पर्यटक पहुंचे। इनमें देसी पर्यटकों की संख्या लगभग 29 लाख और विदेशी पर्यटकों की संख्या ढ़ाई लाख रही। वहीं लालकिला देखने कुल 30 लाख पर्यटक पहुंचे इसमें देसी 29 लाख और विदेशी पर्यटकों की संख्या एक लाख के आसपास रही।

According to ASI, a lot of work has been done here. Some time ago, Qutub Minar received the award for being favorable to the Divyang in the country. It is known for Indo-Islamic architecture. After the lighting work, the number of tourists has increased here. ASI has earned about 21 million in the year 2016-17 from Qutub Minar. In comparison, the Red Fort has earned Rs 14.25 million. In the year 2017-18, this revenue from Qutub Minar increased to Rs 23.5 million. However, the earnings from Lal Qila stood at 14.5 million.

एएसआई के अनुसार, यहां काफी काम किया गया है। कुछ समय पहले कुतुबमीनार को देश में दिव्यांगों के अनुकुल होने का पुरस्कार मिला था। यह इंडो इस्लामिक वास्तुकला के लिए जाना जाता है। लाइटिंग का काम होने के बाद यहां पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ है। एएसआई को कुतुबमीनार से वर्ष 2016-17 में लगभग 21 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। इसकी तुलना में लालकिला से 14.25 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। साल 2017-18 में कुतुबमीनार से यह कमाई बढ़कर साढ़े 23 करोड़ रुपए हो गई। जबकि, लालकिला से होने वाली कमाई का आंकड़ा 14.5 करोड़ रहा।

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