Qutub Minar

Qutub Minar (कुतुब मीनार)
Qutub Minar (कुतुब मीनार)

The most visited monuments in the capital of India are Qutub Minar, Khan-e-Khana, Tughlaqabad Fort, Kotla Feroz Shah, Safdar Jung's Tomb, Red Fort, Humayun's Tomb, Purana Quila.

भारत की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्मारक कुतुबमीनार, खान-ए-खाना, तुगलकाबाद फोर्ट, कोटला फिरोज शाह, सफदर जंग का मकबरा, लाल किला, हुमायूं का मकबरा, पुराना किला है।

Today we are going to tell you about the Qutub Minar. The construction of Qutub Minar was started by Qutubuddin Aibak (قطب الدین ایبک۔) in 1193. Shortly after the construction of Qutub Minar began, Qutbuddin Aibak (قطب الدین ایبک۔) died suddenly. After the death, the construction of the Kutub Minar was stopped. Then after some time the construction work of Qutub Minar started again. This construction was started by Iltutmish (الٹٹومیش). Who sat on Delhi's throne after the death of Qutubuddin Aibak,

आज हम आपको कुतुब मीनार के बारे में बताने जा रहे है। कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९३ में शुरू करवाया था। कुतुबमीनार के निर्माण कार्य शुरू होने के कुछ समय बाद अचानक कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई। और उनकी मृत्यु के बाद कुतुबमीनार का निर्माण कार्य रूक गया। फिर कुछ समय बाद कुतुबमीनार का निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ। इस निर्माण को इल्तुतमिश ने शुरू करवाया। जो कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा,


Qutub Minar is the world's highest tower made of brick. It is 72.5 meters (237.86 ft) in height and 14.3 meters in diameter, which rises to 2.75 meters (9.02 ft) at the summit. It has 379 steps. Qutubuddin Aibak, the first Muslim ruler of Delhi, started the construction of Qutub Minar in 1193, inspired by Afghanistan's desire to move ahead of the Jam Minar of Afghanistan.

कुतुब मीनार, ईंट से बनी हुई दुनिया की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर (237.86 फुट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फुट) हो जाता है। इसमें 379 सीढियाँ हैं। इस मीनार को अफ़गानिस्तान की जाम मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, ने कुतुब मीनार का निर्माण सन 1193 में आरम्भ करवाया,

Iltutmish (الٹٹومیش), who sat on the throne of Delhi after the Aibak, added three floors to it. Then after some time passed, there was a sudden fire in Qutub Minar. After the fire in Qutub Minar, it was rebuilt in 1368, during the reign of Firoz Shah Tughlaq. Firoz Shah Tughlaq built the fifth and final floor. A change in architectural and architectural style from Aibak to Tughlaq can be seen in this tower. The tower is made of red stone, on which finely carved verses of Quran and flower bells are carved.

इल्तुतमिश ने जो ऐबक के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा, उसने इसमें तीन मंजिलें जुड़वाईं। फिर कुछ समय बीत जाने के बाद कुतुबमीनार में आचनक आग लग गई। कुतुबमीनार में आग लगने के बाद उसका पुनर्निर्माण सन 1368 में फिरोज शाह तुगलक के समय हुआ। फिरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अन्तिम मंजिल बनवाई। इस मीनार में ऐबक से तुगलक तक के स्थापत्य एवं वास्तु शैली में बदलाव को देखा जा सकता है। मीनार को लाल पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है।


It is believed by historians that the Qutub Minar was used as the minaret of the nearby Kuwawat-ul-Islam Mosque and was given azaan from here. It is also said that Islam emerged as a symbol of victory over Delhi. Some archaeologists believe that it was named after the first turk Sultan Qutbuddin Aibak (عثمانی سلطان قطب الدین ایبک۔), while some believe that it is named after the famous saint Qutubuddin Bakhtiar Kaki of Baghdad, who came to live in India. The inscription here says that it was repaired by Firoz Shah Tughlaq (فیروز شاہ تغلق۔) (1351 to 1388) and Sikandar Lodhi (سکندر لودھی۔ ) (1489–1517). It was renovated in 1829 by Major R. Smith.

इतिहासकारों के द्वारा माना जाता है कि कुतुब मीनार का इस्तेमाल पास ही में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की मीनार के रूप में होता था और यहां से अजान दी जाती थी। यह भी कहते हैं कि इस्लाम की दिल्ली पर विजय के प्रतीक रूप में बनी। कुछ पुरातत्व शास्त्री मानते हैं कि इसका नाम पहले तुर्क सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर पडा, वहीं कुछ यह मानते हैं कि इसका नाम बग़दाद के प्रसिद्ध सन्त कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर है, जो भारत में रहने आए थे। यहाँ लगे शिलालेख में लिखा है कि इसकी मरम्मत फ़िरोज शाह तुगलक ने (1351-88) और सिकंदर लोधी (1489-1517) ने करवाई। मेजर आर.स्मिथ ने इसका जीर्णोद्धार 1829 में करवाया था।

There are many fine specimens of Indian art built around the Kubut Minar, many of which date back to 1193 AD or earlier. Among them, the first mosque in India, Quvvat-ul-Islam, built by Qutubuddin Aibak, the fourth-century lunar iron pillar (iron pillar), Alai Darwaza, Iltutmish's tomb (1235 AD). The specialty of the iron Pillar is that it has been standing in the open sky for a long time since 1700 years. Sunshine, rain and dust have been falling over it for years, but even then it has not rusted.

कुबुत मीनार के चारों ओर बनी भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1193 या और पहले के हैं। इनमें कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई भारत की पहली मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम, चौथी सदी का चंद्र लोह स्तम्भ (आयरन पिलर), अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा (1235 इसवी) प्रमुख हैं। लोह स्तम्भ की खासियत यह है कि 1700 साल के लंबे अर्से से यह खुले आसमान में खड़ा है। इसके ऊपर सालों से धूप, बारिश और धूल गिरती रही है, लेकिन इसके बावजूद भी इस पर जंग नहीं लगा है।


incomplete tower

Another tower was started near Qutub Minar. It is called Alai Minar. It was started by Alauddin Khilji ( علاؤالدین خلجی۔). He wanted to build a tower twice as big as the Qutub Minar. Apart from the foundation of this tower, work was done up to a height of about 80 feet, but after the death of Alauddin in 1316, this work remained incomplete. It is said that if this incomplete tower were a full tower, then the huge tower would not have been anywhere in the world. This can be seen by looking at this incomplete tower.

अधूरी मीनार

कुतुब मीनार के पास ही एक और मीनार बनाने की शुरूआत की गई थी। इसे अलाई मीनार कहते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने इसका निर्णाण शुरू कराया था। वे कुतुब मीनार से दुगनी ऊँची मीनार बनाना चाहते थे। इस मीनार की बुनियाद के अलावा करीब 80 फुट की ऊँचाई तक काम हो गया था, पर सन 1316 में अलाउद्दीन की मौत के बाद यह काम अधूरा रह गया। ऐसा कहा जाता है की ये अधूरी मीनार यदि पूरी मीनार होती तो इससे विशाल मीनार दुनिया में कंही भी ना होती। इस बात का अंदजा इस अधूरी मीनार को देखकर लगया जा सकता है।

Qutub Minar is attracting foreign tourists a lot. This information has been received from the Archaeological Survey of India (ASI). According to ASI Delhi Circle, foreign tourists visit Qutub Minar most. At the same time, most Indian tourists arrive in Lal Qila. In the year 2016-17, 3.2 million tourists visited Qutub Minar. Of these, the number of domestic tourists was about 2.9 million and the number of foreign tourists was 2.5 million. At the same time, 3 million tourists visited Lal Quila, out of which 2.9 million domestic and foreign tourists were around one lakh.

कुतुबमीनार विदेशी पर्यटकों को काफी लुभा रहा है। इस बात की जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से मिली है। एएसआई दिल्ली सर्किल के मुताबिक, विदेशी पर्यटक सबसे ज्यादा कुतुबमीनार देखने पहुंचते हैं। वहीं लालकिला में सबसे अधिक भारतीय पर्यटक पहुंचते हैं। साल 2016-17 में कुतुबमीनार देखने 32 लाख पर्यटक पहुंचे। इनमें देसी पर्यटकों की संख्या लगभग 29 लाख और विदेशी पर्यटकों की संख्या ढ़ाई लाख रही। वहीं लालकिला देखने कुल 30 लाख पर्यटक पहुंचे इसमें देसी 29 लाख और विदेशी पर्यटकों की संख्या एक लाख के आसपास रही।

According to ASI, a lot of work has been done here. Some time ago, Qutub Minar received the award for being favorable to the Divyang in the country. It is known for Indo-Islamic architecture. After the lighting work, the number of tourists has increased here. ASI has earned about 21 million in the year 2016-17 from Qutub Minar. In comparison, the Red Fort has earned Rs 14.25 million. In the year 2017-18, this revenue from Qutub Minar increased to Rs 23.5 million. However, the earnings from Lal Qila stood at 14.5 million.

एएसआई के अनुसार, यहां काफी काम किया गया है। कुछ समय पहले कुतुबमीनार को देश में दिव्यांगों के अनुकुल होने का पुरस्कार मिला था। यह इंडो इस्लामिक वास्तुकला के लिए जाना जाता है। लाइटिंग का काम होने के बाद यहां पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ है। एएसआई को कुतुबमीनार से वर्ष 2016-17 में लगभग 21 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। इसकी तुलना में लालकिला से 14.25 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। साल 2017-18 में कुतुबमीनार से यह कमाई बढ़कर साढ़े 23 करोड़ रुपए हो गई। जबकि, लालकिला से होने वाली कमाई का आंकड़ा 14.5 करोड़ रहा।

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