Deepawali or Diwali meaning "festival of lights" is an ancient Hindu festival celebrated every year in the autumn. Diwali is one of the biggest and brightest festivals in India. This festival spiritually marks the victory of light over darkness. Deepawali has great importance both socially and religiously in all the festivals celebrated in India. It is also called Deepotsav. 'Tamaso ma jyotirgamay' means 'go from darkness to light' that is the command of the Upanishads. It is also celebrated by people of Sikh, Buddhist and Jainism. People of Jainism celebrate it as the salvation day of Mahavira. And the Sikh community celebrates it as Bandi Chhod Day.
दीपावली या दीवाली मतलब "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ मतलब ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
Fairs are held at various places in India on the day of Deepawali. Deepawali is not a day festival but a group of festivals. It is only after Dussehra that preparations for Deepawali begin. On the day of Deepawali, people sew new clothes. The festival of Dhanteras comes two days before Deepawali. On this day, people gather around the markets. Special furnishings and crowds are seen at the shops of The vessel. Buying utensils on the day of Dhanteras is considered auspicious.
दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं। दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। दीपावली के दिन लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है।
Hence each family makes some purchase according to their needs. On this day a lamp is lit at the Tulsi or gate of the house. This leads to Narak Chaturdashi or small Diwali the next day. On this day lamps are lit for Yama Puja. The next day comes Diwali. On this day, different types of dishes are prepared in the houses since morning. Kheel-Batashe, sweets, khand toys, idols of Lord Lakshmi-Ganesh etc. start being sold in the markets. Fireworks and firecrackers are decorated at different places. Right from morning people start distributing sweets and gifts to relatives, friends, relatives and relatives.
अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, भगवान लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं।
Lord Lakshmi and Ganesha are worshiped on the evening of Deepawali. After worship, people keep lamps and candles lit outside their homes. The glowing lamps all around look very beautiful. Markets and streets sparkle with colorful electric bulbs. Children enjoy different types of firecrackers and fireworks. People of every age enjoy the burning of colorful sparklers, fireworks and pomegranates. Till late night, dark night of Karthik appears even more light than full moon day. The next day from Diwali, Govardhan Parvat was raised on his finger and made the Brajwasis drowned by the anger of Lord Indra. On this day, people decorate their cattle and make a mountain of cow dung and worship it.
दीपावली की शाम को भगवान लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर भगवन इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं।
The next day is the festival of Bhai Dooj. Bhai Dooj or Bhaiya Dwij is also called Yama II. On this day, brother and sister tie a knot and go to the Yamuna river to have a bath, as according to the rituals. On this day, the sister applies tilak on her brother's forehead and wishes him Mars and the brother also presents him in response. On the second day of Deepawali, traders change their old books. They worship Lakshmi at shops. They believe that by doing this, Lakshmi, the goddess of wealth, will have special compassion on them. This festival has special significance for the farming class. The barn of farmers becomes rich after the kharif crop is ripened and prepared. Farmers' society celebrates this festival of their prosperity with joy.
अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है।भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहिन गांठ जोड़ कर यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।
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