Kumbh

कुम्भ मेला-Kumbh festivals

कुम्भ मेला-कुम्भ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है ये एक ऐसा त्योहार जो एक ही जगह पर एक साथ हजारों लोग मनाते है, कुम्भ मेला भारत में लगने वाला सबसे बड़ा मेला है यह मेला भारत के चार मुख्य जगहों पर लगाया जाता है और यह मेला ३ साल में एक बार लगाया जाता है प्राचीन कथाओ के अनुसार भारत की जिन ४ जगहों पर यह कुम्भ मेला लगाया जाता है वहाँ पर अमृत की कुछ बुँदे स्वर्ग से गिरी थी और ये जगह है, हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक

Kumbh festivals-Kumbh festivals is an important festival of Hinduism, a festival that celebrates thousands of people together in one place. Kumbh fair is the biggest fair to be held in India. This fair is leased to four main places of India and this fair is organized once in three years, according to the ancient legend, the four places where this Kumbh fair is being organized. Some of the nectar was dropped from heaven and this place is Haridwar, Prayag, Ujjain and Nashik.

खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को कुम्भ स्नान-योग कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है।

According to astronomical calculations this fair begins on the day of Makar Sankranti, when the sun and moon enter into zodiac sign and zodiac sign, Aries. This Yoga is known as Aquarius bath-yoga, and this day is considered a special manga, because it is believed that on this day the doors of high seas from the earth open on this day and thus by bathing on this day The soul gets the realization of high seasons with ease. Bathing here is considered as a paradise paradise.

पौराणिक विश्वास जो कुछ भी हो ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी(हरिद्वार) स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनीअंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है। हालाँकि सभी हिंदू त्योहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते है, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है।

Whatever the mythological belief, according to astrologers, the extraordinary significance of Aquarius is connected with Jupiter's entry into the Aquarius and entering the Aries of the Sun. The position of the planetary center is on the banks of the Ganga, on the banks of the Ganges, on the location of Pauri (Haridwar), the Ganga water medicines and it becomes nectar in those days. That is why millions of pilgrims come here to take holy baths to purify their inner soul. From the spiritual point of view, the position of the planets in the period of semi-Aquarius is excellent for concentration and meditation. However, all Hindu festivals are of equal reverence and devotion Are celebrated together, but here are the highest number of tourists visiting the Kumbh and Kumbh festivals.


कुंभ मेला के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र जयंत अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा।

तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं।अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है। जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है,उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ मेला होता है।

Two or three mythological stories are prevalent in organizing the Kumbh festivals, the most of which is the deviation from nectar drops falling from the elixir of Aquarius received from sea monk by the devout demons. According to this legend, when Indra and other deities became weak due to the curse of Maharishi Durvasa, then the demons invaded the Gods and defeated them. Then all the gods went to Lord Vishnu and told him the whole story. Then Lord Vishnu, with his demons, chanted Kshirsagar and advised to remove nectar. On such saying of Lord Vishnu, the entire deity was engaged in a treaty with the demons and tried to remove the nectar. As soon as the emperor kumbh leaves, Indrutant Jayant flew into the sky about Amrut-kalash. After that, according to the order of Dainikguru Shukracharya, the monks take back the nectar

Followed Jayant and after the hard work, he caught Jayant in the middle of the road. Thereafter, there was an uninterrupted war for twelve days in the Dev-Demons for empowerment of Amrit kalash. During this mutual encounter, drops of nectar dropped from four zones of the earth (Prayag, Haridwar, Ujjain, Nashik). At that time, due to the decline of the moon, the sun began to decline, the master kept abducting the demons, and Saturn defended the fear of Devendra. To calm the quarrels, God took the form of Mohini and distributed the nectar to everyone and gave him a drink. Thus the war of dev-demon war was ended. There was an ongoing battle for twelve days between Dev-demons for achieving peace. Twelve days of the gods are equivalent to twelve years of human being. And then Aquarius also consists of twelve. Four of them are on earth and the remaining eight are Aquarius Devlok is there, only those who can attain Deogan, humans can not get there. At the time when Chandradesiks had protected the kalash, when the moon and sun-planet that protects the present zodiac signs of that time, the sum of the kumbh is in that period, in which year the amount of sun, moon and Jupiter is a coincidence. In the same year, in the sum of the same zodiac, wherever the nectar drops, there is Kumbh festivals.

कुम्भ मेले में पुरे भारत से और देश विदेश से बहुत से लोग अपने परिवारों के साथ यहाँ आते है कुम्भ के इस मेले में पुरे भारत बहुत से बहुत से साधू भी इस मेले में आते है

Many people from all over India and abroad from the Kumbh festivals come here with their families. In this festivals of Kumbh, a lot of India's many sadhus also come to this festivals .

कुम्भ मेला और साधु-वेदों और पुराणों के अनुसार हिंदू धर्म में कई प्रकार के साधु होते हैं नागा साधु और अघोरी बाबा। देखने में इनकी वेशभूषा एक जैसी लगती है। मगर इनके साधु बनने की प्रक्रिया और रहन-सहन और तप-साधना में काफी अंतर होता है। नागा साधु कुंभ में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं, लेकिन अघोरी बाबा कुंभ में नहीं जाते।

According to Kumbh festivals and Sage-Vedas and Puranas, there are many types of monks in Hinduism: Naga Sadhu and Agori Baba Seeing their costumes look the same. But there is a great difference between the process of becoming a monk and living and chastity. Naga sadhus take part in the kumbh, but the aghori Baba does not go to Kumbh festivals.


श्‍मशान में बनते हैं अघोरी-नागा और अघोरी साधु बनने के लिए काफी कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। दोनों ही प्रकार के साधु बनने की प्रक्रिय में करीब 12 वर्ष का समय लगता है। मगर इनकी प्रक्रिया काफी अलग होती है। नागा-साधु बनने के लिए अखाड़ों में दीक्षा लेनी पड़ती है, जबकि अघोरी बनने के लिए श्‍मशान में जिंदगी के कई साल काफी कठिनता के साथ श्‍मशान में गुजारने पड़ते हैं।

In the crematorium, it has to undergo a very difficult test to become aghori-naga and aghori monk. It takes about 12 years to process both types of monks. But their process is quite different. In order to become a Naga-sage, initiation has to be initiated in the akhaas, but in order to become an awakening, many years of life have to spend in the crematorium with great difficulty.

नागा साधु के होते हैं गुरु-नागा साधु बनने की प्रक्रिया में अखाडे़ के प्रमुख को अपना गुरु मानना पड़ता है और फिर उसकी शिक्षा-दीक्षा में नागा साधु बनने की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। वहीं अघोरियों के गुरु स्वयं भगवान शिव होते हैं। अघोरियों को भगवान शिव का ही पांचवां अवतार माना जाता है। अघोरी श्मशान में मुर्दे के पास बैठकर अपनी तपस्या करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उन्हें दैवीय शक्तियों की प्राप्ति होती है।

The Naga Sages are of the Guru-In the process of becoming a Naga Sage, the head of the akaday has to be regarded as his guru and then the process of becoming a Naga sadhu is completed in his education. At the same time, the master of the ghagoris themselves are Lord Shiva. Agaris are considered to be the fifth incarnation of Lord Shiva. Atghori crematoriums sit near the idol and perform their penance. It is believed that by doing so he gets the divine powers.


नागा और अघोरी करते हैं ऐसा भोजन-नागा और अघोरी दोनों ही मांसाहारी होते हैं। हालांकि नागाओं में कुछ शाकाहार भी करते हैं। किंतु अघोरी शाकाहारी नहीं होते, माना जाता है कि ये न केवल जानवरों का मांस खाते हैं, बल्कि ये इंसानों के मांस का भी भक्षण करते हैं। ये श्मशान में मुर्दों के मांस का भक्षण करते हैं।

Naga and Aghori do such food-Both Naga and Aghori are carnivores. Although some vegetarians also do in Nagas But the non-vegetarians are not considered vegetarian, they not only eat the meat of animals, but they also feed the human flesh. They feed the flesh of the dead in cremation grounds.

नागा और अघोरी बाबा के पहनावे-नागा और अघोरी बाबा के पहनावे-ओढ़ावे में भी काफी अंतर होता है नागा साधु बिना कपड़ों के रहते हैं। जबकि अघोरी ऐसे नहीं रहते। भगवान शिव के ये सच्चे भक्त उन्हीं की तरह ही जानवरों की से अपने तन का निचला हिस्सा ढकते हैं।

Naga and Aghori baba's clothes-There is a great difference in the dress and necklace of Naga and Aghori Baba, Naga Sadhus live without clothes. Whereas, do not live like this. Like these, these true devotees of Lord Shiva cover the lower part of their body with animals.

जीवित रहते हुए भी कर देते हैं, अपना अंतिम संस्कार। नागा और अघोरी दोनों ही पूरे तरीके से परिवार से दूर रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। नागा और अघोरी। इन दोनों को ही साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले अपना अंतिम संस्कार करना होता है। और इस वक्त ये अपने परिवार को भी त्याग देने का प्रण लेते हैं। परिजनों और बाकी दुनिया के लिए भी ये मृत हो जाते हैं।और अपनी तपस्या को पूरा करने के लिए। वह फिर कभी भी अपने परिवार वालों से नहीं मिलते।

Even after living, do your funeral. Both Naga and Aghori abstain from family and follow complete Brahmacharya. Naga and Aghori In the process of becoming a monk, both of them have to do their last rites first. And at the same time, they also want to sacrifice their family. They also become dead for the family and the rest of the world. And to complete their penance. He never meets his family members again.

अघोरी सदैव श्मशान में ही बिताते हैं वक्त- नागा साधुओं के दर्शन अक्सर हो जाया करते हैं, मगर अघोरी कहीं भी नजर नहीं आते। ये केवन श्मशान में ही वास करते हैं। जबकि नागा साधु कुंभ जैसे धार्मिक समारोह में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और उसके बाद यह वापस हिमालय की ओर चले जाते हैं। मान्यता है कि नागा साधु के दर्शन करने के बाद अघोरी के दर्शन करना भगवान शिव के दर्शन करने के बराबर होता है।

Agghori always spend time in the crematorium- The philosophy of Naga sadhus is often done, but the arrogance is not seen anywhere. These poets reside in cremation grounds. While the Nagas take part in religious ceremonies like Sadhu Kumbha and after that they go back to the Himalaya. It is believed that after seeing Naga Sadhu Lord is equal to seeing Lord Shiva.


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