जंतर मंतर - Jantar Mantar

जंतर मंतर - Jantar Mantar

जंतर मंतर - Jantar Mantar

Jantar Mantar is located in Pink City, Jaipur. Jantar Mantar of Jaipur is an astronomical observatory built by Sawai Jaisingh between 1826 and 1834. It is included in UNESCO's 'World Heritage List'. There are 14 major instruments in this observatory, which are helpful in measuring time, predicting eclipses, knowing the speed and position of a star, knowing the problems of planets in the solar system, etc. Looking at these instruments shows that the people of India had such deep knowledge of complex concepts of mathematics and astronomy that they could form these concepts into an 'educational observatory' so that anyone could know them and enjoy them. Could take.

जंतर मंतर पिंक सिटी जयपुर में स्थित है। जयपुर का जन्तर मन्तर सवाई जयसिंह द्वारा 1826 से 1834 के बीच निर्मित एक खगोलीय वेधशाला है। यह यूनेस्को के 'विश्व धरोहर सूची' में सम्मिलित है। इस वेधशाला में 14 प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने, सौर मण्डल के ग्रहों के दिक्पात जानने आदि में सहायक हैं। इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि भारत के लोगों को गणित एवं खगोलिकी के जटिल संकल्पनाओं (कॉंसेप्ट्स) का इतना गहन ज्ञान था कि वे इन संकल्पनाओं को एक 'शैक्षणिक वेधशाला' का रूप दे सके ताकि कोई भी उन्हें जान सके और उसका आनन्द ले सके।

Jantar Mantar is an amazing medieval achievement associated with the old palace 'Chandramahal' in Jaipur. The world-renowned observatory for analyzing and accurately predicting astrological and astronomical events through ancient astronomical instruments and complex mathematical structures was built by King Sawai Jai Singh (II) of Amber, the founder of Jaipur city, under his personal supervision in 1728 Started, which was completed in 1734.

जयपुर में पुराने राजमहल 'चन्द्रमहल' से जुडी एक आश्चर्यजनक मध्यकालीन उपलब्धि है- जंतर मंतर! प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध इस अप्रतिम वेधशाला का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक आमेर के राजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने 1728 में अपनी निजी देखरेख में शुरू करवाया था, जो सन 1734में पूरा हुआ था।


Sawai Jai Singh was also an astrophysicist, whose contribution and personality has been praised by Jawaharlal Nehru in his famous book 'Discovery of India' ('India: a discovery'). Before the construction of this observatory, Sawai Jai Singh had sent his cultural envoys to many countries of the world and asked for manuscripts of ancient and important texts of astronomy from there and preserved them in his pothikhana (library) and translated them for his study. Had it done. Maharaja Sawai Jai Singh II built five observatories across the country on the basis of Hindu astronomy. These observatories were built in Jaipur, Delhi, Ujjain, Benaras and Mathura. He took the help of eminent astronomers of the time in building these observatories. First Maharaja Sawai Jai Singh (II) built the emperor Yantra in Ujjain, followed by the Observatory (Jantar Mantar) in Delhi and Jantar Mantar in Jaipur ten years later. Jaipur observatory is the largest among all the five observatories in the country. Work was started in 1724 for the construction of this observatory and in 1734 this construction was completed. It is huge in size with the rest of the Jantar Mantras, it does not have much competition from the point of view of crafts and instruments. Of the five observatories built by Sawai Jai Singh, today only Jantar Mantar of Delhi and Jaipur are left, the rest are in the cheek of time.

सवाई जयसिंह एक खगोल वैज्ञानिक भी थे, जिनके योगदान और व्यक्तित्व की प्रशंसा जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ('भारत : एक खोज') में सम्मानपूर्वक की है। सवाई जयसिंह ने इस वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के कई देशों में अपने सांस्कृतिक दूत भेज कर वहां से खगोल-विज्ञान के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियाँ मंगवाईं थीं और उन्हें अपने पोथीखाने (पुस्तकालय) में संरक्षित कर अपने अध्ययन के लिए उनका अनुवाद भी करवाया था। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने हिन्दू खगोलशास्त्र में आधार पर देश भर में पांच वेधशालाओं का निर्माण कराया था। ये वेधशालाएं जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बनवाई गई। इन वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उस समय के प्रख्यात खगोशास्त्रियों की मदद ली थी। सबसे पहले महारजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने उज्जैन में सम्राट यन्त्र का निर्माण करवाया, उसके बाद दिल्ली स्थित वेधशाला (जंतर-मंतर) और उसके दस वर्षों बाद जयपुर में जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था। देश की सभी पांच वेधशालाओं में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी है। इस वेधशाला के निर्माण के लिए 1724 में कार्य प्रारम्भ किया गया और 1734 में यह निर्माण कार्य पूरा हुआ। यह बाकी के जंतर मंत्रों से आकार में तो विशाल है ही, शिल्प और यंत्रों की दृष्टि से भी इसका कई मुकाबला नहीं है। सवाई जयसिंह निर्मित पांच वेधशालाओं में आज केवल दिल्ली और जयपुर के जंतर मंतर ही शेष बचे हैं, बाकी काल के गाल में समा गए हैं।

Jaipur, also known as Pink City, is the capital of Rajasthan. As Amer, it has also been the capital of the famous ancient (Rajwada | Rajwada) by the name of Jaipur. The city was founded in 1728 by Maharaja Jai ​​Singh II of Amer. Jaipur is famous for its rich building-tradition, Saras-culture and historical significance. The city is surrounded by the Aravalli ranges on three sides. The city of Jaipur is identified with the pink dholpuri stones in its palaces and old houses, which is a specialty of its architecture. In 1876, the then Maharaja Sawai Ramsingh decorated the entire city with pink color to welcome the Prince of Wales Crown Prince Albert, the Queen of England. The city has been named Pink City since then. According to the 2011 census Jaipur is the tenth most populous city in India. The city was named Jaipur after the name of Raja Jai ​​Singh II. Jaipur is also a part of India's Golden Triangle. In this Golden Triangle, Delhi, Agra and Jaipur come. In July 2019, Jaipur has been given the status of World Heritage City. The distance from the capital Delhi to Jaipur is 280 kilometers.

जयपुर जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन (रजवाड़ा| रजवाड़े) की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना 1728 में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। 1876 में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर भारत का दसवां सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली ,आगरा और जयपुर आते हैं जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है। राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है।

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जयगढ़ क़िला-Jaigarh Fort

जयगढ़ क़िला-Jaigarh Fort

जयगढ़ क़िला-Jaigarh Fort


Jaigarh Fort is situated on the eagle mound on the Aravalli hills in Jaipur, Rajasthan. This fort was built by Maharaja Jai ​​Singh in the 18th century. This fort is surrounded by high walls and forests from all sides, this Jaigad fort is also called the fort of victory. This fort is located in Amber in Jaipur city limits. This fort is considered to be the biggest cannon of Asia which is placed on top of this fort. It is one of the largest cannons in the country.

जयगढ़ क़िला राजस्थान के जयपुर में अरावली की पहाडि़यों पर चील की टीला पर स्थित है। यह किला महाराजा जय सिंह ने 18वीं सदी में बनवाया था। यह किला चारों तरफ से ऊँची-ऊँची दीवारों और जंगलों से घिरा हुआ है इस जयगढ़ किले को जीत का किला भी कहा जाता है। यह किला जयपुर शहर सीमा में आमेर में स्थित है । इसी किले में एशिया की सबसे बड़ी मानी जाने वाली तोप है जो इस किले के ऊपर रखी हुई है। यह देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है।

The fort here is located just a short distance from the Amer Fort. And this fort has been built in the shape of Amber Fort. It is 3 kilometers (1.9 m) in length and 1 km (0.62 m) in width from north-south. This fort is also known as "Jaiwan".

यहाँ किला आमेर किले से कुछ ही दुरी पर स्थित है। और इस किले को आमेर किले के आकार में ही बनाया गया है। उत्तर-दक्षिण से इसकी लम्बाई 3 किलोमीटर (1.9 मीटर) और चौड़ाई 1 किलोमीटर (0.62 मीटर) है। इस किले को “जयवैन” के नाम से भी जाना जाता है।

Like all other forts, Jaigad Fort also has its own history. Jaigad Fort was 150 miles from the capital during the Mughal period. During the Mughal period, this fort was looked after by Dara Shikoh, at that time Aurangzeb attacked this fort due to which he won but after losing to Aurangzeb, this fort came under the rule of Jai Singh and he rebuilt it.

बाकी सभी किलों की तरह जयगढ़ किले के का भी अपना एक इतिहास है। मुगल काल में जयगढ़ किला राजधानी से 150 मील दूर था। मुगल काल समय में इस किले की देखरेख दारा शिकोह करते थे, उस समय औरंगज़ेब ने इस किले पर हमला किया था जिसके कारण वो जीत गया था लेकिन औरंगज़ेब से हारने के बाद यह किला जय सिंह के शासन में आ गया और उन्होंने इसका पुनर्निमाण करवाया।

Being situated on the top of the mountain, a panoramic view of Jaipur can be seen from this fort. The outer walls of this fort are made of red sandstone and the inner layout is also very interesting. There is a beautiful square garden in its center. It has very large durbars and halls with curtained windows. This huge palace houses the Lakshmi Vilas, the Vilas Temple, the Lalit Temple and the Aram Temple that the royal family used to live in during the rule. The attraction of this fort is further enhanced by two old temples, one of which is the 10th century Ram Harihar Temple and the 12th century Kaal Bhairava Temple. Due to its large walls, this fort is well protected from all sides. There is an armory and a museum with a hall for warriors, which contains old clothes, manuscripts, weapons and artifacts of Rajputs. There is a watch tower in the middle of it, which gives a beautiful view of the surroundings. The nearby Amber Fort is connected to the Jaigad Fort via a secret passage. It was designed to evacuate women and children in an emergency. Amer Fort also has a reservoir at its center for water supply.

पहाड़ की चोटी पर स्थित होने के कारण इस किले से जयपुर का मनोरम नज़ारा देखा जा सकता है। इस किले की बाहरी दीवारें लाल बलुआ पत्थरों से बनी हैं और भीतरी लेआउट भी बहुत रोचक है। इसके केंद्र में एक खूबसूरत वर्गाकार बाग मौजूद है। इसमें बड़े बड़े दरबार और हाॅल हैं जिनमें पर्देदार खिड़कियां हैं। इस विशाल महल में लक्ष्मी विलास, विलास मंदिर, ललित मंदिर और अराम मंदिर हैं जो शासन के दौरान शाही परिवार रहने पर इस्तेमाल करते थे। दो पुराने मंदिरों के कारण इस किले का आकर्षण और बढ़ जाता है, जिसमें से एक 10वीं सदी का राम हरिहर मंदिर और 12वीं सदी का काल भैरव मंदिर है। बड़ी बड़ी दीवारों के कारण यह किला हर ओर से अच्छी तरह सुरक्षित है। यहां एक शस्त्रागार और योद्धाओं के लिए एक हाॅल के साथ एक संग्रहालय है जिसमें पुराने कपड़े, पांडुलिपियां, हथियार और राजपूतों की कलाकृतियां हैं। इसके मध्य में एक वाॅच टाॅवर है जिससे आसपास का खूबसूरत नज़ारा दिखता है। पास ही में स्थित आमेर किला जयगढ़ किले से एक गुप्त मार्ग के ज़रिए जुड़ा है। इसे आपातकाल में महिलाओं और बच्चों को निकालने के लिए बनाया गया था। आमेर किले में पानी की आपूर्ति के लिए इसके केंद्र में एक जलाशय भी है।




Jaivana Cannon

This cannon placed on Jaigad Fort is considered to be the largest cannon in Asia. Its size is estimated from the fact that its shell formed a pond in a village 35 km from the city. Even today this pond exists and is quenching the thirst of the people of the village.
This cannon is placed on the dungar door of Jaigad Fort. The length of the end of the cannon is 31 feet 3 inches. When the Jaiban cannon was first mounted for test-firing, a pond was formed by falling into a town called Chaksu, about 35 km from Jaipur. The weight of this cannon is 50 tons. This cannon has the facility to hold 8 meter long barrels. It is the most famous cannon among the canons found worldwide. To fire this cannon that was to hit 35 km, 100 kg gun powder was needed to fire once. Due to its excess weight it was not taken out of the fort nor was it ever used in battle.

जयगढ़ किले पर रखी यह तोप एशिया में सबसे बड़ी तोप मानी जाती है। इसके साइज का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि इसके गोले से शहर से 35 किलोमीटर दूर एक गांव में तालाब बन गया था। आज भी यह तालाब मौजूद है और गांव के लोगों की प्यास बुझा रहा है।
यह तोप जयगढ़ किले के डूंगर दरवाजे पर रखी है। तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। जब जयबाण तोप को पहली बार टेस्ट-फायरिंग के लिए चलाया गया था तो जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित चाकसू नामक कस्बे में गोला गिरने से एक तालाब बन गया था। इस तोप का वजन 50 टन है। इस तोप में 8 मीटर लंबे बैरल रखने की सुविधा है। यह दुनिया भर में पाई जाने वाली तोपों के बीच सबसे ज्‍यादा प्रसिद्ध तोप है। 35 किलोमीटर तक मार करने वाले इस तोप को एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर की जरूरत होती थी। अधिक वजन के कारण इसे किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था।

जयगढ़ किला का खजाना-Jaigarh Fort Treasury

Jaigad Fort of Jaipur is said to have immense wealth in this fort. It is believed that Raja Man Singh I of Jaipur saved his treasure from Emperor Akbar and hid it in the fort of Jaigarh. However, so far no confirmed information has been received about whether Mansingh had a treasure or not and if it was there, is it still hidden in the fort of Jaigarh or was it removed. Even today, evidence is found in the fort of Jaigad which indicates that there is a treasure house of billions and trillions still hidden in the secret cellars of the fort.

History mentions a treaty between Raja Man Singh and Akbar. According to which Raja Man Singh will conquer Akbar in whichever area he conquers but Raja Man Singh will have the right over the treasury and property found from there. It is said that the entire treasure found by the victory of the battle was hidden by Raja Man Singh in the basement of the fort. When the then Prime Minister of the country Indira Gandhi got the news of this treasure, she put all her strength to find this treasure. For nearly six months, the treasure hidden in the fort of Jaigarh was discovered. Apart from the army, a lot of government machinery was also used to find the treasure. But no one has found out whether the treasure was found or not.

जयपुर का जयगढ़ किला कहते हैं इस किले में बेशुमार दौलत है। ऐसा माना जाता है जयपुर के राजा मान सिंह प्रथम ने अपना अकूत खज़ाना सम्राट अकबर से बचाकर जयगढ़ के क़िले में छिपा दिया था। हांलाकि अभी तक इस बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिली है कि मानसिंह का खज़ाना था भी या नहीं और अगर था तो क्या ये अभी भी जयगढ़ के किले में ही छिपा है या फिर उसे निकाल लिया गया। जयगढ़ के किले में आज भी ऐसे प्रमाण मिलते हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि किले के गुप्त तहख़ानों में आज भी अरबों-खरबों का खज़ाना छिपा हुआ है।

इतिहास में राजा मान सिंह और अकबर के बीच हुई एक संधि का ज़िक्र आता है। जिसके मुताबिक़ राजा मान सिंह जिस भी इलाके को फतह करेंगे वहां अकबर का राज होगा लेकिन वहां से मिले खज़ाने और संपत्ति पर राजा मान सिंह का हक़ होगा। ऐसा कहा जाता है कि जंग की जीत से मिले पूरे खजाने को राजा मान सिंह ने किले के तहखाने में छुपा कर रखा था। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जब इस खज़ाने की ख़बर मिली तो उन्होंने इस ख़ज़ाने को ढूंढने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। तकरीबन छह महीने तक जयगढ़ के किले में छिपे खजाने की खोज की गई। खज़ाने को तलाशने के लिए आर्मी के अलावा अच्छी खासी सरकारी मशीनरी का भी इस्तेमाल हुआ। लेकिन ख़ज़ाना मिला या नहीं इसका पता आज तक किसी को नहीं चला।

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हवा महल - Hawa Mahal

हवा महल-Hawa Mahal

हवा महल - Hawa Mahal


Hawa Mahal is a palace located in the city of Jaipur, India. It was named Hawa Mahal because it has high walls for women in the palace so that they can easily observe and see the festival happening outside the palace. This palace is made of red and pink sandstone. The palace is situated on the edge of the City Palace.

हवा महल भारत के जयपुर शहर में स्थित एक महल है। इसका नाम हवा महल इसलिये रखा गया क्योकि महल में महिलाओ के लिये ऊँची दीवारे बनी हुई है ताकि वे आसानी से महल के बाहर हो रहे उत्सवो का अवलोकन कर सके और उन्हें देख सके। यह महल लाल और गुलाबी बलुआ पत्थरो से बना हुआ है। यह महल सिटी पैलेस के किनारे पर ही बना हुआ है।

This Hawa Mahal was built by Maharaja Sawai Pratap Singh in 1799. It was designed by Lal Chand Ustad as the crown of the Hindu god Krishna. This Hawa Mahal also has honeycomb of the same size outside the five-storey building and the palace also has 953 small windows called Jharokhas and these jharokhas are also decorated with very fine artifacts. And all these windows have different colored glass.

इस हवा महल का निर्माण 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। हिन्दू भगवान कृष्णा के मुकुट के रूप में ही लाल चंद उस्ताद ने इसे डिज़ाइन किया था। इस हवा महल में पाँच मंजिला ईमारत के बाहर समान आकर के शहद के छत्ते भी लगे हुए है और महल में 953 छोटी खिड़कियां भी है जिन्हें झरोखा कहा जाता है और इन झरोखो को बहुत ही बारीक़ कलाकृतियों से सजाया भी गया है। और इन सभी खिडकियों में अलग-अलग रंग के कांच लगे हुए है।

There was a time when women used to go out of the palace to see a festival, then it was mandatory for women to cover the "curtain" in the face. It is said that with the help of these nets, he used to feel cold air and his face was cold even in the scorching sun. In this palace, there are high walls for women so that they can easily observe and see the happening outside the palace. This palace has 953 small windows that are impossible to see from outside.

एक समय था जब महिलाये महल से बाहर किसी उत्सव को देखने निकला करती थी तो उस समय महिलाओ को चेहरे पर “परदा” ढकना अनिवार्य होता था। कहा जाता है की इन जालियों की मदद से उन्हें चेहरे को ठंडी हवा भी लगती थी और तपती धुप में भी उनका चेहरा ठंडा रहता था। इस महल में महिलाओ के लिये ऊँची दीवारे बनी हुई है ताकि वे आसानी से महल के बाहर हो रहे उत्सवो का अवलोकन कर सके और उन्हें देख सके। इस महल में 953 छोटी खिड़कियां है जिन्हें बाहर से देखना नामुंकिन है।

Interesting facts about Hawa Mahal - हवा महल के बारे में रोचक तथ्य

This palace built without any base is the tallest palace in the world.
बिना किसी आधार के बना यह महल विश्व का सबसे ऊँचा महल है।

There is no entrance to the front of the wind. If you want to go in, you will have to go through the previous part.
हवा के सामने की तरफ कोई प्रवेश द्वार नही है। यदि आपको अंदर जाना है तो आपको पिछले भाग से जाना होंगा।

Hawa Mahal has a total of five storeys and even today, this palace successfully stands in an 87 degree angle in its place.
हवा महल में कुल पाँच मंजिले है और आज भी यह महल सफलता से अपनी जगह पर 87 डिग्री के एंगल में खड़ा है।

Hawa Mahal is also known as "Palace of Winds".
हवा महल “पैलेस ऑफ़ विंड्स” के नाम से भी जाना जाता है।

Hawa Mahal has five floors in total.
हवा महल में कुल पाँच मंजिले है।

Hawa Mahal has a total of 953 windows which keeps the palace cool.
हवा महल में कुल 953 खिड़कियाँ है जो महल को ठंडा रखती है।

All the royal people of Jaipur use this palace as a summer resort.
जयपुर के सभी शाही लोग ईस महल का उपयोग गर्मियों में आश्रयस्थल की तरह करते है।

Hawa Mahal was designed by Lal Chand Ustad.
हवा महल को लाल चंद उस्ताद ने डिज़ाइन किया था।

This palace was specially built for the royal women of Jaipur.
यह महल विशेषतः जयपुर की शाही महिलाओ के लिये बनवाया गया था।

The purpose of constructing this palace was to show the royal women the market and the festival happening outside the palace.
इस महल को बनाने का उद्देश्य शाही महिलाओ को बाज़ार और महल के बाहर हो रहे उत्सवो को दिखाना था।

The only such palace which is built in Mughal and Rajput architectural style.
एक एकमात्र ऐसा महल है जो मुगल और राजपूत आर्किटेक्चरल स्टाइल में बना हुआ है।

The palace remains a favorite shooting spot for Indian and international films from Bahot.
यह महल बहोत से भारतीयो और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मो का पसंदीदा शूटिंग स्पॉट बना हुआ है।

In Hawa Mahal there is only a sloping path to go to the upper floor, there is no ladder to go up there.
हवा महाल में ऊपरी मंजिल में जाने के लिए केवल ढालू रास्ता है, वहाँ ऊपर जाने के लिये कोई सीढ़ी नही बनी है।

Hawa Mahal was built in 1799 by Maharaja Sawai Pratap Singh.
महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने 1799 में हवा महल को बनवाया था।

Its five storey is built in the shape of a pyramid which is 50 feet larger than its tall base.
इसकी पाँच मंजिले पिरामिड के आकार में बनी हुई है जो उसकी ऊँचे आधार से 50 फ़ीट बड़ी है।

The wind worked as a curtain on the lattice faces of the palace windows.
हवा महल के खिड़कियों की जाली चेहरे पर लगे परदे का काम करती थी।

Hawa Mahal is made of pink and red colored stones.
हवा महल गुलाबी और लाल रंग के पत्थरो से बनाया गया है।

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भारत में मुग़ल शासन-Mughal rule in India

Mughal rule in India-भारत में मुग़ल शासन

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर-Zahir-ud-din Muhammad Babur

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर-Zahir-ud-din Muhammad Babur

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था. जिनका मूल मध्य एशिया था। भारत में मुग़ल राजवंशीय की शुरुआत ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर ने की, बाबर भारत में उत्तर की ओर से आया था। ऐसा कहा जाता है की वो तैमूर लंग का परपोता था, और ऐसा विश्वास रखता था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश का पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है। 1504 ई.काबुल तथा 1507 ई में कंधार को जीता था तथा बादशाह (शाहों का शाह) की उपाधि धारण की 1519 से 1526 ई. तक भारत पर उसने 5 बार आक्रमण किया तथा सफल हुआ 1526 में उसने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी उसने 1527 में खानवा 1528 मैं चंदेरी तथा 1529 में आगरा जीतकर अपने राज्य को सफल बना दिया और फिर 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

Zahir-ud-din Muhammad Babur (14 February 1483 - 26 December 1530), popularly known as Babur, was a Mughal ruler. Whose origin was Central Asia. The Mughal dynasty started in India by Muhammad Babur on Zahir-ud-din, Babur came from the north side in India. It is said that he was the great-grandson of Timur Lung, and believed that Genghis Khan was the ancestor of his dynasty. Babur is believed to be the creator of the verse style called Mubaiyan. Kakhar was conquered in 1504 AD and 1507 AD and held the title of Badshah (Shah of Shahas), he invaded India 5 times from 1519 to 1526 AD and succeeded in 1526. He made the last of the Delhi Sultanate in the plains of Panipat. After defeating Sultan Ibrahim Lodi, he laid the foundation of the Mughal dynasty. He succeeded his kingdom by winning Khanwa 1528 i Chanderi in 1527 and Agra in 1529 and then died in 1530 AD.

Humayun-हुमायूँ

हमायूँ का मकबरा-Humayun's Tomb

हुमायूँ एक मुगल शासक था। प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ (६ मार्च १५०८ – २२ फरवरी, १५५६) थे। उन के पास साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, पर मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का भी योगदान है। बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने १५३० में भारत की राजगद्दी संभाली और उनके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले लिया। बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर दोनों भाइयों में लड़ाई न हो। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी बने। हुमायूँ का शासन अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों पर १५३०-१५४० और फिर १५५५-१५५६ तक रहा।

Humayun was a Mughal ruler. The first Mughal emperor was Babur's son Naseeruddin Humayun (7 March 1507 - 22 February, 1557). They did not have an empire for many years, but Humayun also contributed to the foundation of the Mughal Empire. After Babur's death, Humayun took over the throne of India in 1530 and his half-brother Kamran Mirza took the rule of Kabul and Lahore. Babur divided the kingdom before he died so that the two brothers would not fight later. Kamran later became Humayun's tough opponent. Humayun ruled over Afghanistan, Pakistan and parts of North India from 1530–1560 and then 1555–1558.

भारत में उन्होने शेरशाह सूरी शेरशाह ने इसे बेलग्राम के युद्ध में पराजित कर दिया था तथा उससे बात से निर्वासित होना पड़ा उसने निर्वासन का कुछ समय काबुल सिंध अमरकोट में बिताया अंत में ईरान के शासक तहमास्य के पास शरण ली । ईरान के शासक की मदद से उसने काबुल कंधार में मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। उसने 1555 ई० में शेरशाह के अधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली आगरा पर अधिकार कर लिया। इसके बाद अचानक1556 में उसकी मृत्यु हो गई इस के साथ ही, मुग़ल दरबार की संस्कृति भी मध्य एशियन से इरानी होती चली गयी।

In India, he was defeated by Sher Shah Suri Sher Shah in the Battle of Belgram and had to be exiled. He spent some time of exile in Kabul Sindh Amarkot. Finally he took refuge with Iran's ruler Thamasya. With the help of the ruler of Iran, he conquered the regions of Central Asia in Kabul Kandahar. In 1555, he defeated Sher Shah's officers and once again took control of Delhi Agra. After this, he died suddenly in 1556, with this, the culture of the Mughal court also went from Central Asian to Iranian.

Jalaluddin Muhammad Akbar.-जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर

अकबर का मकबरा-Akbar's tomb

हुमायूँ की अचानक मृत्यु हो जाने से इकलौता पुत्र बहुत ही छोटी सी उम्र में राजगद्दी पर बैठा। हुमायूँ के बेटे का नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। हुमायूं की मृत्यु के समय उसका इकलौता पुत्र अकबर पंजाब के कलानौर में था। उसे वहीं पर शासक घोषित कर दिया गया।

After the sudden death of Humayun, the only son sat on the throne at a very young age. Humayun's son's name was Jalaluddin Muhammad Akbar. At the time of Humayun's death, his only son Akbar was in Kalanaur, Punjab. He was declared the ruler there.

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (उर्दू: جلال الدین محمد اکبر) (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था।

Jalal Uddin Mohammed Akbar (Urdu: جلال الدین محمد اکبر) (October 15, 1572 - October 26, 1805) was the third ruler of the Mughal dynasty of the Timurid lineage. Akbar is also known as Akbar-i-Azam (ie Akbar the Great), Emperor Akbar, Mahabali emperor. Emperor Akbar was the grandson of Zaheeruddin Muhammad Babur, the founder of the Mughal Empire, and the son of Nasiruddin Humayun and Hamida Bano.

अकबर ने अपने शासनकाल में ताँबें, चाँदी एवं सोनें की मुद्राएँ प्रचलित की। इन मुद्राओं के पृष्ठ भाग में सुंदर इस्लामिक छपाई हुआ करती थी। अकबर ने अपने काल की मुद्राओ में कई बदलाव किए। उसने एक खुली टकसाल व्यवस्था की शुरुआत की जिसके अन्दर कोई भी व्यक्ति अगर टकसाल शुल्क देने मे सक्षम था तो वह किसी दूसरी मुद्रा अथवा सोने से अकबर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकता था। अकबर चाहता था कि उसके पूरे साम्राज्य में समान मुद्रा चले।

Akbar introduced copper, silver and gold currencies during his reign. There was beautiful Islamic printing on the back of these postures. Akbar made many changes in the postures of his era. He introduced an open mint system under which if any person was able to pay the mint fee, he could change the currency of Akbar from another currency or gold. Akbar wanted the same currency to prevail throughout his empire.

अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं संप्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बदती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये।

Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religions and sects. As the age of Akbar changed, so did his interest in religion. He is particularly known for his fondness for Hinduism. He married many Hindu princesses, unlike his ancestors. Apart from this, Akbar also held Hindus in various princely positions in his state which was not done by any former Muslim ruler. He had come to know that in order to rule India for a long time, he should give proper and equal place to the original inhabitants here.

अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को हुई। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया।

Akbar died on 27 October 1605. On the death of such a great emperor, his funeral was done without any rites soon. According to tradition, a passage was made by breaking the wall in the fort and his body was quietly buried in the tomb of Sikandra.

जहाँगीर-Jahangir


जहाँगीर महल- janhagir Palace

मुगल सम्राट जहांगीर का जन्म 31 अगस्त, 1569 को मुगल सम्राट अकबर के बेटे के रुप में फतेहपुर सीकरी शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से हुआ था। जहांगीर की माता का नाम मरियम उज्जमानी था। सलीम से पहले अकबर की कोई भी संतान नहीं थी। अकबर को अपनी किसी भी रानी के कोई भी संतान प्राप्त नहीं हो रही थी। फिर एक दिन अकबर को शेख सलीम चिश्ती के बारे में पता चला। जो एक बहुत बड़े से संत थे। उन्होंने अकबर को आशीर्वाद दिया की जल्द ही उसको अपनी रानी मरियम से एक संतान प्राप्त होगी। जब अकबर को संतान प्राप्र्त हुई तो उसने अपने बेटे का नाम सलीम रखा। क्योंकि शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से ही सलीम का जन्म हुआ था शेख सलीम चिश्ती ने अकबर के बेटे सलीम को आशीर्वाद देते हुआ कहा था, की भविष्य में सलीम जहाँगीर के नाम से जाना जाएगा ।

The Mughal Emperor Jahangir was born on 31 August 1569 as the son of Mughal Emperor Akbar with the blessings of Fatehpur Sikri Sheikh Salim Chishti. Jahangir's mother's name was Maryam Ujjmani. Akbar did not have any children before Salim. Akbar was not receiving any children of any of his queens. Then one day Akbar came to know about Sheikh Salim Chishti. Who was a very saint. He blessed Akbar that he would soon get a child from his queen Maryam. When Akbar had children, he named his son Salim. Because Salim was born with the blessings of Sheikh Salim Chishti, Sheikh Salim Chishti while blessing Akbar's son Salim said that in future, Salim will be known as Jahangir.

साल 1627 में जब मुगल सम्राट जहांगीर कश्मीर से वापस लौट रहा था, तभी रास्ते में लाहौर (पाकिस्तान) में तबीयत बिगड़ने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, जहांगीर के मृत शरीर को अस्थायी रूप से लाहौर में रावी नदी के किनारे बने बागसर के किले में दफनाया गया था। फिर बाद में वहां जहांगीर की बेगम नूरजहां द्धारा जहांगीर का भव्य मकबरा बनवाया गया, जो आज भी लाहौर में पर्यटकों के आर्कषण का मुख्य केन्द्र है। वहीं जहांगीर की मौत के बाद उसका बेटा खुर्रम (शाहजहां) मुगल सिंहासन का उत्तराधिकारी बना।

In 1627, when the Mughal emperor Jahangir was returning from Kashmir, he died due to deteriorating health in Lahore (Pakistan) on the way. Subsequently, Jahangir's dead body was temporarily buried in the fort of Bagsar built on the banks of the Ravi river in Lahore.Then later there was built a grand mausoleum of Jahangir by Jahangir's Begum Noor Jahan, which is still the main attraction of tourists in Lahore. At the same time, after the death of Jahangir, his son Khurram (Shah Jahan) succeeded the Mughal throne.

Shah Jahan-शाहजहाँ

Taj-Mahal-ताज-महल -True love story(Agra)

first winner of the World's New 7 Wonders (2000-2007).

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 लाहौर पाकिस्तान में हुआ था। शाहजहाँ का पूरा नाम एला आज़ाद अबुल मुजफ्फर शहाब उद-दिन मोहम्मद शाहजहाँ था। उनके पिता का नाम मिर्ज़ा नूर-उद-दीन बेग मुहम्मद खान सलीम जिन्हें उनके शाही नाम से जाना जाता है, जहाँगीर। जहाँगीर चौथे मुग़ल सम्राट थे, जिन्होंने 1605 से 1627 तक अपनी मृत्यु तक शासन किया। 1627 में अपने पिता जहाँगीर की मौत के बाद शाहजहाँ को छोटी सी उम्र में ही उन्हें मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी चुन लिया गया।

Shah Jahan was born on January 5, 1592 in Lahore. Shahjahan's full name was Ella Azad Abul Muzaffar Shahab Ud-Din Mohammed Shah Jahan. His father's name was Mirza noor-ud-Din Beg Muhammad Khan Salim, who is known by his royal name, Jahangir, Jahangir was the fourth Mughal emperor who ruled from 1605 to 1627 until his death in 1627, after the death of his father Jahangir, Shahjahan at the young age, The successor of the throne was chosen.

शाहजहाँ के मुग़ल सम्राट बनते ही, शाहजहाँ ने तेजी के साथ अपने सम्राज्य का विकास करना शुरू कर दिया। इस दौरान शाहजहाँ की कई शादियाँ हुई। और शाहजहाँ अपनी सभी पत्नियों के साथ भी रहे। लेकिन आज उनका नाम सिर्फ एक के साथ ही लिया जाता है। और वो नाम है, मुमताज़। मुमताज़ का पूरा नाम था अरजुमंद बानो बेगम। मुमताज़ ने १९ साल में १४ बच्चों को जन्म दिया और फिर ४० साल की उम्र में मुमताज़ की मौत हो गई। 17 जून 1631 को मुमताज़ की मौत हो गई। शाहजहाँ अपनी पत्नी मुमताज़ से बहुत ही प्रेम करते थे। मुमताज़ की मौत ने शाहजहां के दिल को अंदर से तोड़ दिया।

As Shahjahan's Mughal Emperor was formed, Shah Jahan started developing his empire with speed. During this time there were many marriages of Shahjahan. And Shah Jahan also stayed with all his wives. But today his name is taken only with one. And that's the name, Mumtaz. Mumtaz's full name was Arjumand Bano Begum. Mumtaz gave birth to 14 children in 19 years and then Mumtaz died at the age of 40. Mumtaz died on June 17, 1631. Shah Jahan loved his wife Mumtaz very much. Mumtaz's death broke Shahjahan's heart inside.

जिसके कारण शाहजहाँ उदास रहने लगे। जैसे-जैसे दिन बीतते गए। शाहजहाँ अंधेरे की ओर जाने लगे। और धीरे-धीरे वो बूढ़े होने लगे, फिर एक दिन शाहजहाँ ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज़ की याद में एक बहुत ही खूबसूरत मकबरा बनाने की सोची।

Because of which Shahjahan started to be depressed. As the days passed. Shahjahan started going towards darkness And gradually he started getting old, then one day Shah Jahan thought of making a very beautiful tomb in memory of his dear wife Mumtaz.

ताजमहल को बनाने के लिए देश-विदेश से कारीगरों को बुलवाया गया। ताजमहल को बनाने के लिए। कुल 20,000 कारीगर लगे थे। और 1000 हाथी जो बोझा ढोने का काम करते थे, ताजमहल को सबसे अनोखा बनाने के लिए। इसमें २८ अलग-अलग तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, ये पत्थर राजस्थान, बगदाद, तिबत , ईरान, मिस्र, आफगानिस्तान, इत्यादि, अलग-अलग जगहों से लाये गए थे। ताजमहल को बनाने में २२ साल लगे। शायद यंही वजह है की ताजमहल दुनिया के ७ आजूबो में से एक है। फिर कुछ सालों बाद शाहजहाँ की 22 जनवरी 1666 को मौत हो गई। शाहजहाँ की मौत के बाद उसका बेटा औरंगज़ेब मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी बना।

Artisans were called from abroad to build the Taj Mahal. To build the Taj Mahal. A total of 20,000 artisans were engaged. And 1000 elephants who used to carry the burden to make the Taj Mahal the most unique. In this, 24 different types of stones have been used, these stones were brought from different places in Rajasthan, Baghdad, Tibet, Iran, Egypt, Afghanistan, etc. The Taj Mahal took 22 years to build. Perhaps this is the reason that Taj Mahal is one of the 7 wonders of the world. Then a few years later Shah Jahan died on 22 January 1666. After Shah Jahan's death, his son Aurangzeb succeeded the Mughal throne.

आज, लगभग एक वर्ष में 3 मिलियन लोग( एक दिन में लगभग 45,000) ताजमहल का दौरा करते हैं। 2007 में इसे विश्व के न्यू 7 वंडर्स (2000-2007) पहला विजेता घोषित किया गया।

Today, in almost a year, 3 million people (about 45,000 in a day) visit the Taj Mahal. In 2007, it was declared the first winner of the World's New 7 Wonders (2000-2007).

Aurangzeb-औरंगज़ेब


औरंगज़ेब का जन्म 3 नवम्बर १६१८ को दाहोद, गुजरात में हुआ था। वो शाहजहाँ और मुमताज़ महल की छठी संतान और तीसरा बेटा था। अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था औरंगज़ेब भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा।

Aurangzeb was born on 3 November 1816 in Dahod, Gujarat. He was the sixth child of Shah Jahan and Mumtaz Mahal and the third son. Abul Muzaffar Muhiuddin Muhammad Aurangzeb Alamgir, commonly known as Aurangzeb or Alamgir (the royal name given by the people, meaning world conqueror), Aurangzeb, the sixth Mughal ruler to rule India. Was. His reign lasted from 1858 until his death in 1808. Aurangzeb ruled the Indian subcontinent for more than half a century. He was the longest reigning Mughal ruler after Akbar. During his lifetime he tried his best to expand the Mughal Empire in Southern India, but after his death, the Mughal Empire started shrinking.

अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था।

He was perhaps the wealthiest and the most powerful person of his time, who through his conquests in South India, spread the Mughal Empire in two and a half million square miles and ruled over 15 crore people, which was 1/4 of the world's population.

औरंगज़ेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का ज़ोर बहुत बढ़ गया था। उन्हें दबाने में शाही सेना को सफलता नहीं मिल रही थी। इसलिए सन 1683 में औरंगज़ेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण गया। वह राजधानी से दूर रहता हुआ, अपने शासन−काल के लगभग अंतिम 25 वर्ष तक उसी अभियान में रहा। 50 वर्ष तक शासन करने के बाद उसकी मृत्यु दक्षिण के अहमदनगर में 3 मार्च सन 1707 ई. में हो गई। दौलताबाद में स्थित फ़कीर बुरुहानुद्दीन की क़ब्र के अहाते में उसे दफना दिया गया। उसकी नीति ने इतने विरोधी पैदा कर दिये, जिस कारण मुग़ल साम्राज्य का अंत ही हो गया।

During the last time of Aurangzeb, the emphasis of Marathas in the south was greatly increased. The imperial army was not getting success in suppressing them. So in 1683 Aurangzeb himself went south with the army. He stayed away from the capital, in the same campaign for the last 25 years of his reign. After ruling for 50 years, he died in Ahmednagar in the south on 3 March 1707 AD. He was buried in the compound of the tomb of Fakir Buruhanuddin in Daulatabad. His policy created so many opponents, due to which the Mughal Empire itself came to an end.

बहादुर शाह जफर- Bahadur Shah Zafar- بہادر شاہ ظفر

बहादुर शाह ज़फर (1775-1862)-बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था. उनका पूरा नाम मिर्ज़ा अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जाफर था. जफर का जन्म भले एक मुगल घराने में हुआ था लेकिन उनकी माँ हिन्दू महिला थी. भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू के माने हुए शायर थे। उन्होंने १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई।

Bahadur Shah Zafar (1775-1862) Bahadur Shah Zafar was born on 24 October 1775. His full name was Mirza Abu Zafar Siraj-ud-din Muhammad Bahadur Shah Jafar. Although Zafar was born in a Mughal household, his mother was a Hindu woman. He was the last emperor of the Mughal Empire in India and a noted poet of Urdu. He led the Indian soldiers in the first Indian independence struggle of 1857. After the defeat in the war, the British sent him to Burma (now Myanmar) where he died.

1857 में ब्रिटिशों ने तकरीबन पूरे भारत पर कब्जा जमा लिया था. ब्रिटिशों के आक्रमण से तिलमिलाए विद्रोही सैनिक और राजा-महाराजाओं को एक केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत थी, जो उन्हें बहादुर शाह जफर में दिखा. बहादुर शाह जफर ने भी ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई में नेतृत्व स्वीकार कर लिया. लेकिन 82 वर्ष के बूढ़े शाह जफर अंततः जंग हार गए और अपने जीवन के आखिरी वर्ष उन्हें अंग्रेजों की कैद में गुजारने पड़े।

ऐसा कहा जाता है कि तबीयत से वो कवि थे और दिल से बहादुर शाह जफर शेरो - शायरी के मुरीद थे और उनके दरबार के दो शीर्ष शायर मोहम्मद गालिब और जौक आज भी शायरों के लिए आदर्श हैं. जफर खुद बेहतरीन शायर थे. दर्द में डूबे उनकी शायरी में मानव जीवन की गहरी सच्चाइयां और भावनाओं की दुनिया बसती थी. रंगून में अंग्रेजों की कैद में रहते हुए भी उन्होंने ढेरों गजलें लिखीं. बतौर कैदी उन्हें कलम तक नहीं दी गई थी, लेकिन सूफी संत की उपाधि वाले बादशाह जफर ने जली हुई तीलियों से दीवार पर गजलें लिखीं।

In 1857, the British had captured almost all of India. The rebellious soldiers and kings and emperors, stung by the British invasion, needed a central leadership, which showed them in Bahadur Shah Zafar. Bahadur Shah Zafar also accepted leadership in the fight against the British. But 82-year-old Shah Zafar eventually lost the battle and had to spend the last year of his life in British captivity.

It is said that he was a poet from health and heartily Bahadur Shah Zafar was a poet of Shero-Shayari and two of the top poets of his court, Mohammad Ghalib and Jauk are still ideal for poets. Zafar himself was an excellent poet. His poetry, steeped in pain, contained a world of deep truths and emotions in human life. Even while being imprisoned by the British in Rangoon, he wrote a lot of ghazals. As a prisoner, he was not even given a pen, but Zafar, the emperor of the Sufi saint, wrote ghazals on the wall with burnt matchsticks.

अंग्रेजों की कैद में ही 7 नवंबर, 1862 को सुबह बहादुर शाह जफर की मौत हो गई. उन्हें उसी दिन जेल के पास ही श्वेडागोन पैगोडा के नजदीक दफना दिया गया. इतना ही नहीं उनकी कब्र के चारों ओर बांस की बाड़ लगा दी गई और कब्र को पत्तों से ढंक दिया गया। उस समय जफर के अंतिम संस्कार की देखरेख कर रहे ब्रिटिश अधिकारी डेविस ने भी लिखा है कि जफर को दफनाते वक्त कोई 100 लोग वहां मौजूद थे और यह वैसी ही भीड़ थी, जैसे घुड़दौड़ देखने वाली. जफर की मौत के 132 साल बाद साल 1991 में एक स्मारक कक्ष की आधारशिला रखने के लिए की गई खुदाई के दौरान एक भूमिगत कब्र का पता चला. 3.5 फुट की गहराई में बादशाह जफर की निशानी और अवशेष मिले, जिसकी जांच के बाद यह पुष्टि हुई की वह जफर की ही हैं। आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मौत 1862 में 87 साल की उम्र में बर्मा (अब म्यांमार) की तत्कालीन राजधानी रंगून (अब यांगून) की एक जेल में हुई थी, लेकिन उनकी दरगाह 132 साल बाद 1994 में बनी. इस दरगाह की एक-एक ईंट में आखिरी बादशाह की जिंदगी के इतिहास की महक आती है. इस दरगाह में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रार्थना करने की जगह बनी है।

Bahadur Shah Zafar died in the British prison on 7 November 1862 in the morning. He was buried the same day near the prison near the Shvedagon Pagoda. Not only this, a bamboo fence was put around his grave and the grave was covered with leaves. At that time, the British officer, who was overseeing Zafar's funeral, also wrote that some 100 people were present there during the burial of Zafar and it was the same crowd as that of horse racing. 132 years after Zafar's death, an underground tomb was unearthed during an excavation in 1991 to lay the foundation stone of a memorial hall. At a depth of 3.5 feet, the emblem and remains of Emperor Zafar were found, after investigation, it was confirmed that it was from Zafar. The last Mughal emperor Bahadur Shah Zafar died in 1862 at the age of 87 in a prison in the then capital of Burma (now Myanmar), Rangoon (now Yangon), but his dargah was built in 1994 after 132 years. Every brick of this dargah smells of history of the life of the last emperor. This dargah has a separate place of prayer for women and men.

बहादुर शाह जफर की लिखी एक शायरी।-A poetry written by Bahadur Shah Zafar.

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में

किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में

बुलबुल को पासबाँ से न सैयाद से गिला

क़िस्मत में क़ैद लिखी थी फ़स्ल-ए-बहार में


कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें

इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में

इक शाख़-ए-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमाँ

काँटे बिछा दिये हैं दिल-ए-लालाज़ार में

उम्र-ए-दराज़ माँगके लाए थे चार दिन

दो आरज़ू में कट गए, दो इन्तज़ार में


दिन ज़िन्दगी के ख़त्म हुए शाम हो गई

फैला के पाँव सोएँगे कुंज-ए-मज़ार में


कितना है बदनसीब “ज़फ़र″ दफ़्न के लिए

दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में


My heart has no repose in this despoiled land
Who has ever felt fulfilled in this futile world?


The nightingale complains about neither the sentinel nor the hunter
Fate had decreed imprisonment during the harvest of spring


Tell these longings to go dwell elsewhere
What space is there for them in this besmirched heart?


Sitting on a branch of flowers, the nightingale rejoices
It has strewn thorns in the garden of my heart


I asked for a long life, I received four days
Two passed in desire, two in waiting.


The days of life are over, evening has fallen
I shall sleep, legs outstretched, in my tomb


How unfortunate is Zafar! For his burial
Not even two yards of land were to be had, in t


'

لگتا نہیں ہے جی مِرا اُجڑے دیار میں

کس کی بنی ہے عالمِ ناپائیدار میں
بُلبُل کو پاسباں سے نہ صیاد سے گلہ


قسمت میں قید لکھی تھی فصلِ بہار میں


کہہ دو اِن حسرتوں سے کہیں اور جا بسی


اتنی جگہ کہاں ہے دلِ داغدار میں


اِک شاخِ گل پہ بیٹھ کے بُلبُل ہے شادماں


کانٹے بِچھا دیتے ہیں دلِ لالہ زار میں


عمرِ دراز مانگ کے لائے تھے چار دِن


دو آرزو میں کٹ گئے، دو اِنتظار میں


دِن زندگی کے ختم ہوئے شام ہوگئی


پھیلا کے پائوں سوئیں گے کنج مزار میں


کتنا ہے بدنصیب ظفر دفن کے لئے


دو گز زمین بھی نہ
ملی کوئے یار میں


Bahadur Shah Zafar -بہادر شاہ ظفر

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diwali

Diwali-दिवाली
Diwali-दिवाली

Deepawali or Diwali meaning "festival of lights" is an ancient Hindu festival celebrated every year in the autumn. Diwali is one of the biggest and brightest festivals in India. This festival spiritually marks the victory of light over darkness. Deepawali has great importance both socially and religiously in all the festivals celebrated in India. It is also called Deepotsav. 'Tamaso ma jyotirgamay' means 'go from darkness to light' that is the command of the Upanishads. It is also celebrated by people of Sikh, Buddhist and Jainism. People of Jainism celebrate it as the salvation day of Mahavira. And the Sikh community celebrates it as Bandi Chhod Day.

दीपावली या दीवाली मतलब "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ मतलब ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।

Fairs are held at various places in India on the day of Deepawali. Deepawali is not a day festival but a group of festivals. It is only after Dussehra that preparations for Deepawali begin. On the day of Deepawali, people sew new clothes. The festival of Dhanteras comes two days before Deepawali. On this day, people gather around the markets. Special furnishings and crowds are seen at the shops of The vessel. Buying utensils on the day of Dhanteras is considered auspicious.

दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं। दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। दीपावली के दिन लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है।


Hence each family makes some purchase according to their needs. On this day a lamp is lit at the Tulsi or gate of the house. This leads to Narak Chaturdashi or small Diwali the next day. On this day lamps are lit for Yama Puja. The next day comes Diwali. On this day, different types of dishes are prepared in the houses since morning. Kheel-Batashe, sweets, khand toys, idols of Lord Lakshmi-Ganesh etc. start being sold in the markets. Fireworks and firecrackers are decorated at different places. Right from morning people start distributing sweets and gifts to relatives, friends, relatives and relatives.

अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, भगवान लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं।

Lord Lakshmi and Ganesha are worshiped on the evening of Deepawali. After worship, people keep lamps and candles lit outside their homes. The glowing lamps all around look very beautiful. Markets and streets sparkle with colorful electric bulbs. Children enjoy different types of firecrackers and fireworks. People of every age enjoy the burning of colorful sparklers, fireworks and pomegranates. Till late night, dark night of Karthik appears even more light than full moon day. The next day from Diwali, Govardhan Parvat was raised on his finger and made the Brajwasis drowned by the anger of Lord Indra. On this day, people decorate their cattle and make a mountain of cow dung and worship it.

दीपावली की शाम को भगवान लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर भगवन इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं।


The next day is the festival of Bhai Dooj. Bhai Dooj or Bhaiya Dwij is also called Yama II. On this day, brother and sister tie a knot and go to the Yamuna river to have a bath, as according to the rituals. On this day, the sister applies tilak on her brother's forehead and wishes him Mars and the brother also presents him in response. On the second day of Deepawali, traders change their old books. They worship Lakshmi at shops. They believe that by doing this, Lakshmi, the goddess of wealth, will have special compassion on them. This festival has special significance for the farming class. The barn of farmers becomes rich after the kharif crop is ripened and prepared. Farmers' society celebrates this festival of their prosperity with joy.

अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है।भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहिन गांठ जोड़ कर यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

prem mandir

प्रेम मंदिर (prem mandir)

वैसे तो भारत की प्राचीन संस्कृत और भारत के प्राचीन मंदिरो की कहानी सदियों पुरानी है। भारत के सभी प्राचीन मंदिरो की भारत वासियो के जीवन में एक अहम स्थान रखते है। भारत के सभी मंदिरो में से आज हम जिस मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे है। वो मंदिर है प्रेम मंदिर (prem mandir)

By the way, the story of ancient Sanskrit of India and ancient temples of India is centuries old. All the ancient temples of India have an important place in the lives of the people of India. Of all the temples in India, the temple we are going to tell you today. That temple is Prem Mandir

प्रेम मंदिर (prem mandir) वृंदावन(भारत) में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है। मंदिर को बाहर और अन्दर से भारतीय शिल्पकला से बहुत ही अद्भुत तरीके से सजाया गया है। जिसके कारण बाहर से देखने में यह जितना भव्य लगता है, उतना ही अंदर से भी देखने में लगता है। इस मंदिर को सफेद इटालियन संगमरमर से बनाया गया है। इस मंदिर को सुंदरता से सजाने के लिए मंदिर के अंदर और बाहर प्राचीन भारतीय शिल्पकला की कलाओं का प्रयोग किया गया है।

Prem Mandir (prem mandir) is located in Vrindavan (India). It has been built by Jagadguru Kripalu Maharaj as the temple of Lord Krishna and Radha. The temple is decorated in a very amazing way with Indian artistry from outside and inside. Due to which it looks as grand as it looks from outside, it is also seen from inside. This temple is made of white Italian marble. The art of ancient Indian sculpture has been used inside and outside the temple to decorate this temple with beauty.

यहाँ पूरा मन्दिर 56 एकड़ में बना है इसमें मंदिर की ऊँचाई 125 फुट, लम्बाई 122 फुट तथा चौड़ाई 115 फुट है। इसमें फव्वारे, राधा-कृष्ण की मनोहर झाँकियाँ, श्री गोवर्धन लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीला की झाँकियाँ उद्यानों के बीच सजायी गयी है। यह मन्दिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। सभी वर्ण, जाति, देश के लोगों के लिये खुले मन्दिर के लिए द्वार सभी दिशाओं में खुलते है। मुख्य प्रवेश द्वारों पर आठ मयूरों के नक्काशीदार तोरण हैं तथा पूरे मन्दिर की बाहरी दीवारों पर राधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पांकित किया गया है। इसी प्रकार मन्दिर की भीतरी दीवारों पर राधाकृष्ण और कृपालुजी महाराज की विविध झाँकियों का भी अंकन हुआ है। मन्दिर में कुल 94 स्तम्भ हैं जो राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से सजाये गये हैं। अधिकांश स्तम्भों पर गोपियों की मूर्तियाँ अंकित हैं, जो सजीव जान पड़ती है। मन्दिर के गर्भगृह के बाहर और अन्दर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट पच्चीकारी और नक्काशी की गयी है तथा संगमरमर की शिलाओं पर राधा गोविन्द गीत सरल भाषा में लिखे गये हैं। मंदिर परिसर में गोवर्धन पर्वत की सजीव झाँकी बनायी गयी है।

The entire temple here is built on 56 acres, the height of the temple is 125 feet, 122 feet in length and 115 feet in width. It has fountains, beautiful tableaux of Radha-Krishna, Shri Govardhan Leela, Kalia Nag Daman Leela, Jhulan Leela are decorated among the gardens. This temple realizes divine love through architecture. The gates open in all directions for the temple to be open to people of all varna, caste and country. The main entrance has eight peacocks with carved archways and Radha-Krishna pastimes are carved on the outer walls of the entire temple. Similarly, various tableaux of Radhakrishna and Kripaluji Maharaj have also been marked on the inner walls of the temple. There are a total of 94 pillars in the temple which are decorated with various pastimes of Radha-Krishna. Most of the pillars have inscriptions of gopis, which appear to be alive. Outside and inside the sanctum sanctorum of the temple are exquisite mosaics and carvings of ancient Indian architecture and Radha Govind songs are written in simple language on the marble rocks. A live tableau of Govardhan Parvat has been made in the temple premises.


मंदिर के अंदर और मंदिर के बाहर की बाहरी दीवारों पर श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पकारों ने मूर्त रूप दिया है। ये मंदिर वृंदावन के सभी मंदिरो में से सबसे ज्यादा सूंदर और अद्भुत है।मंदिर की दीवारे 3.25 ft. मोटी है. मंदिर की गर्भ गृह की दीवार की मोटाई 8 ft है जिस पर एक विशाल शिखर, एक स्वर्ण कलश और एक ध्वज रखा गया है. मंदिर की बाहरी परिसर में 84 स्तंभ है जो श्री कृष्ण की लीलाओं को प्रदर्शित करते है जिनका उल्लेख श्रीमद भगवद में किया गया है.ये मंदिर वृंदावन की एक अद्वितीय आध्यात्मिक संरचना है.मंदिर में लगाये गये पैनल को श्रीमद् भगवत गीता से लिया गया है।जैसे ही आप मंदिर के अंदर अपने कदमों को रखते हैं तो आप को एक अलग सा प्रतीत होता है चारों तरफ राधा कृष्णा और उनकी दिव्य छवियाँ आकर्षित करती है जहां उनके बचपन के बारे में दर्शया गया है, माँ यशोदा नंदबाबा ग्वाल बाल सखियों के साथ अद्भुत प्रतिमाये है।इस मन्दिर के अन्दर श्री कृष्ण भगवान की गोपियों के साथ रासलीला करते हुए और जब बाल कृष्ण ने गोवर्धन को अपने कनिष्ठ उंगली पर उठाया था और सभी ब्रज वासियो की इंद्र भगवन के कोप से रक्षा की थी उसकी भी अद्भुत दृश्य को दर्शया गया है।

Craftsmen have embodied the pastimes of Shriradha-Krishna on the inside and outside walls of the temple. This temple is the most beautiful and amazing of all the temples of Vrindavan. The temple walls are 3.25 ft. Is thick The thickness of the wall of the sanctum sanctorum of the temple is 8 ft, on which a huge shikhara, a golden urn and a flag are placed. The outer complex of the temple has 84 pillars which depict the pastimes of Shri Krishna which are mentioned in the Srimad Bhagavad. This temple is a unique spiritual structure of Vrindavan. The panel installed in the temple is taken from the Srimad Bhagavad Gita. As soon as you place your steps inside the temple, you seem to be a bit different, Radha attracts Krishna and her divine images all around. Childhood is depicted, Maa Yashoda Nandababa Gwal is a wonderful idol with child-bearers. Inside this temple Sri Krishna is playing with Gods gopis and when Bal Krishna raised Govardhan on his inferior finger and all Braj Vasio was protected from the wrath of Indra Bhagwan by his wonderful scene.


इस मन्दिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय और लगभग 100 करोड़ रुपए की धन राशि लगी है। इसमें इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है और इसे राजस्थान और उत्तरप्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया है। इस मन्दिर का शिलान्यास 14 जनवरी 2001 को कृपालुजी महाराज द्वारा किया गया था। ग्यारह वर्ष के बाद तैयार हुआ यह भव्य प्रेम मन्दिर सफेद इटालियन करारा संगमरमर से तराशा गया है। मन्दिर दिल्ली – आगरा – कोलकाता के राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर छटीकरा से लगभग 3 किलोमीटर दूर वृंदावन की ओर भक्तिवेदान्त स्वामी मार्ग पर स्थित है। यह मन्दिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है।

The construction of this temple has taken 11 years and money amounting to about 100 crores. Italian Carrara marble has been used in it and it has been prepared by 1000 artisans from Rajasthan and Uttar Pradesh. The foundation stone of this temple was done by Kripaluji Maharaj on 14 January 2001. This grand love temple, completed after eleven years, is carved with white Italian beige marble. The temple is located on Bhaktivedanta Swami Marg, about 3 kilometers from Chhatikara on Delhi-Agra-Kolkata National Highway 2 towards Vrindavan. This temple is a specimen of the renaissance of ancient Indian sculpture.

प्रेम मंदिर के खुलने का समय 5.30 बजे है और बंद होने का समय 8.30 बजे है। मंदिर के अंदर विभिन्न आरती का प्रदर्शन किया जाता है। आरती के समय मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त इकट्ठे होते हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है और प्रवेश सभी के लिए पूरी तरह से नि: शुल्क है। पूरे मंदिर को कवर करने के लिए कम से कम दो घंटे की आवश्यकता है।

The opening time of Prem Mandir is 5.30 PM and closing time is 8.30 PM. Various aartis are performed inside the temple. A large number of devotees gather in the temple during the Aarti. There is no entrance fee to enter inside the temple and entry is completely free for all. A minimum of two hours is required to cover the entire temple.

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RED FORT DELHI

लाल किला (RED FORT)

लाल किला (RED FORT)

The Red Fort is a large fort built in Delhi, the capital of India. This fort is made of red stones, this fort is 33 meters high. Being made of red stones, this fort has been named Red Fort. This fort is in the middle of the capital of India. The vastness of this fort and its strength can be gauged from outside the fort.

लाल किला भारत की राजधानी दिल्ली में बना हुआ एक विशाल किला है। यह किला लाल पत्थरों से बना हुआ है, यह किला 33 मीटर ऊँचा है। लाल पत्थरों से बने होने के कारण इस किले को लाल किला (Red Fort) नाम दिया गया है। यह किला भारत की राजधानी के बीचों बिच में है। इस किले की विशालता और इसकी मजबूती का अंदाजा इसे बाहर से ही देखकर लगाया जा सकता है।

दिल्ली दरवाजा (Delhi door)

There are five doors in this fort, Delhi door is to the south of this fort. Which opens towards the Jama-Majid. The king used to go to Majid from this door. In 1903, Lord Curzon erected stone elephants on both sides of this door. Lahori Darwaza is the main door of the five gates of the fort. After going in through this door, the hive market starts. In the time of Emperor, this market sold all the goods in the world.

इस किले में पांच दरवाजे है इस किले के दक्षिण में दिल्ली दरवाजा है। जो जमा मजीद की ओर खुलता है। बादशाह इस दरवाजे से जमा मजीद जाया करते थे सन १९०३ में लार्ड कर्ज़न ने इस दरवाजे की दोनों ओर पत्थर के हाथी खड़े करवा दिए। किले के पांचो दरवाजो में से मुख्या दरवाजा लाहोरी दरवाजा है। इस दरवाजे से अंदर जाने के बाद छत्ता बाजार शुरू हो जाता है। बादशाह के समय में इस बाजार में दुनिया की सभी वस्तुए बिका करती थी।

लाहोरी दरवाजा (Lahori door)

Lahori is seen on the building of Nakkar Khana as soon as it leaves the door. This building is two floors, Jahandar Shah and Farrukhsiyar were killed in this Nakkar Khana.

लाहोरी दरवाजे से निकलते ही नजर पड़ती है नक्कार खाना की ईमारत पर। ये ईमारत दो मंजिल है इसी नक्कार खाना में जहाँदार शाह और फरुखसियर का क़त्ल किया गया था।


दीवाने ए खास (Diwane-a-aam)

After leaving Nakkar Khana, it is seen right in front of the Diwane aam. Diwane aam was decorated with gold and precious stones from place to place. But when the British captured the fort, they removed all the gold and precious stones in the Diwane aam. Diwane aam is 40 feet in length, 60 feet in width and the height of the roof is 30 feet. The pillar in the Diwane aam has beautiful carvings, which are still seen today. In the middle of this Diwane aam is a throne made of 21 feet wide marble on which the emperor used to sit. A beautiful beauty is seen on this throne.

नक्कार खाना से निकलने के बाद ठीक सामने नजर जाती है दीवाने ए खास की ओर। दीवाने आम को जगह-जगह सोने और कीमती पथरो से सजाया गया था। लेकिन जब अंग्रेजो ने किले पर कब्जा किया तब उन्होंने दीवाने आम में लगे सभी सोने और कीमती पथरो को निकल लिया। दीवाने आम की लम्बाई ८० फुट , चौड़ाई ४० फुट और छत की ऊंचाई ३० फुट है। दीवाने आम में लगे खम्बो पर सूंदर नक्काशी की गई है जो आज भी देखने को मिलती है। इस दीवाने आम के बीचों बीच एक २१ फ़ीट चौड़ा संगमरमर से बना एक सिंघासन है जिस पर बादशाह बैठा करते थे। इस सिंघासन पर बहुत ही सूंदर कारीगिरी देखने को मिलती है।

दीवाने ए खास(Diwane-a-khas)

It comes after the diwane aam. Deewane e Khas

The walls of Diwane-e-Khas are made of white marble, its length is 90 feet and the width is 66 feet. Deewane A Khas had a silver roof. It is said that Diwane used to flow a canal in the middle of A Khas. What used to be called Canal A Bahisht and in this Canal A Bahisht there used to be fountains at different places. It is written in Deewane e Khas. If the earth is heaven then it is here. It is here

दीवाने आम के बाद बारी आती है। दीवाने ए खास- दीवाने ए खास की दीवारे सफ़ेद संगमरमर की बनी हुई है इसकी लम्बाई ९० फ़ीट है और चौड़ाई ६६ फ़ीट है। दीवाने ए खास की छत चांदी की हुआ करती थी। कहा जाता है की दीवाने ए खास के बीचों बीच एक नहर बह करती थी। जिसे नहर ए बहिश्त कहते थे और इस नहर ए बहिश्त में जगह-जगह फवारे चलते थे। इस दीवाने ए खास में लिखा है। अगर पृथ्वी स्वर्ग है तो यहीं है। यहीं है।


The turn comes after Diwane e Khas. Shahi-Hammam (Royal Bathroom, The Shahi-Hammam (royal bathroom) has three large rooms. The walls and floor of the Shahi-Hammam (royal bathroom) were covered with precious stones. It is said that a canal flowed in the Shahi-Hammam (royal bathroom). 100 pieces of wood were used to heat the canal water.

दीवाने ए खास के बाद बारी आती है। शाही-हम्माम (शाही बाथरूम), शाही-हम्माम(शाही बाथरूम) में तीन बड़े कमरे है शाही-हम्माम (शाही बाथरूम) की दीवारों और फर्श को कीमती रंग बिरंगे पथरो से जाया गया था। ऐसा कहा जाता है की शाही-हम्माम (शाही बाथरूम) में एक नहर बहती थी नहर के पानी को गर्म करने के लिए १०० मन लकडिया जलाई जाती थी।


Just a short distance from Shahi-Hammam is the Hira Mahal built by Bahadur Shah, it was built in 1726. Aurangzeb built Moti Majid in the Red Fort built by Shahjahan, which is a very beautiful building made of white marble. It was built for Majid Badshah and his begums.

शाही-हम्माम से कुछ ही दुरी पर बहादुर शाह का बनवाया हुआ हिरा महल है इसे १८२४ में बनवाया गया था। शाहजंहा के बनवाये गए लाल किले में औरंगजेब ने मोती माजिद का निर्माण करवाया जो सफ़ेद संगमरमर की बनी एक बहुत खुबशुरत ईमारत है। यह माजिद बादशाह और उनकी बेगमों के लिए बनवाई गई थी।


A scale is made on a wall of Diwan-e-Khas and there it is written Mijane Adl (Scales of Justice).There are stars around this scale and a moon emanating from these stars can also be seen.

दीवान ए खास की एक दिवार पर एक तराजू बना हुआ है और वहाँ लिखा है मिजाने अद्ल (न्याय का तराजू) इस तराजू के चारो तरफ सितारे बने हुए है और इन सितारों में से निकलता हुआ एक चाँद को भी देखा जा सकता है।

One can see a magnificent specimen of Hindu and Muslim architecture at this fort. The construction of this Red Fort started in 1639 and it was completed on 6 April 1648 as a fort. This fort is built on 250 acres of land, this fort was ruled by the rulers of the Mughal dynasty for nearly 200 years. This fort is one of the best and grand forts in the world, built by the Mughal ruler Shah Jahan, who was a keen lover of literature and art.

इस किले पर हिन्दू और मुस्लिम वास्तुकला का एक शानदार नमूना देख सकते है। इस लाल किले का निर्माण 1639 में शुरू हुआ था और 6 अप्रैल 1648 को यह किला बन कर तैयार हुआ था। यह किला 250 एकड़ जमीन में बना हुआ है इस किले पर करीब 200 सालों तक मुगल वंश के शासकों का राज रहा। यह किला दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और भव्य किलों में से एक है, जिसे साहित्य और कला के गूढ़ प्रेमी रहे मुगल शासक शाहजहां द्धारा बनवाया गया था।

On 15 August 1947, when India became free from the slavery of the British, India's first Prime Minister Jawaharlal Nehru waved the Indian national flag above the Lahore Gate (Red Fort). Every Independence Day thereafter, the Prime Minister of India waving the national flag at the Red Fort.

15 अगस्त 1947 को, जब भारत अंगेजो की गुलामी से आजाद हुआ तो भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर गेट (लाल किला) के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया। इसके बाद हर स्वतंत्रता दिवस पर, भारत के प्रधान मंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज को लहराते है।

This huge historical artwork made of Indian and Mughal architecture, located in the capital of India, Delhi, was built by Shah Jahan, the fifth Mughal ruler. This magnificent fort is situated on the banks of the Yamuna River in the center of Delhi, surrounded by the Yamuna River on all three sides, which is seen in its amazing beauty and attractiveness. It is included in the list of World Heritage. The construction of this magnificent Red Fort of India lasted from 1639 to 1648 AD. All the buildings built by Mughal emperor Shah Jahan have their own different historical significance. While the Taj Mahal built by him has been named among the seven wonders of the world because of its beauty and attractiveness, the Red Fort of Delhi has gained worldwide fame.

भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित भारतीय और मुगल वास्तुशैली से बने इस विशाल ऐतिहासिक कलाकृति का निर्माण पांचवे मुगल शासक शाहजहां ने करवाया था। यह शानदार किला दिल्ली के केन्द्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है, जो कि तीनों तरफ से यमुना नदीं से घिरा हुआ है, जिसके अद्भुत सौंदर्य और आर्कषण को देखते ही बनता है। विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है। भारत के इस भव्य लाल किले का निर्माण का काम 1639 से 1648 ईसवी तक चला। मुगल बादशाह शाहजहां के द्धारा बनवाई गई सभी इमारतों का अपना-अपना अलग-अलग ऐतिहासिक महत्व है। जबकि उनके द्धारा बनवाया गया ताजमहल को उसके सौंदर्य और आर्कषण की वजह से जिस तरह दुनिया के सात अजूबों में शुमार किया गया है, उसी तरह दिल्ली के लाल किला को विश्व भर में शोहरत मिली है।

Due to the construction of this huge fort, Delhi, the capital of India, was also called Shahjahanabad, along with it is considered to be a creativity example of Shah Jahan's reign. After Mughal emperor Shah Jahan, his son Aurangzeb also built Moti Masjid in this fort. Then in the 17th century, Jahandar Shah captured the Red Fort, then the Red Fort remained without a ruler for almost 30 years. Shortly thereafter, Nadir Shah took possession of the Red Fort and ruled it, and then the Sikhs also ruled this fort for some time.

इस विशाल किले के बनने की वजह से भारत की राजधानी दिल्ली को शाहजहांनाबाद भी कहा जाता था, साथ ही यह शाहजहां के शासनकाल की रचनात्मकता मिसाल माना जाता है। मुगल सम्राट शाहजहां के बाद उसके बेटे औरंगजेब ने इस किले में मोती-मस्जिद (Moti Masjid) का भी निर्माण करवाया था। फिर 17वीं शताब्दी में जहंदर शाह ने लाल किले पर कब्जा कर लिया, तब करीब 30 साल तक लाल किले बिना शासक का रहा था। इसके कुछ समय बाद नादिर शाह ने लाल किले पर कब्ज़ा कर लिया और अपना शासन चलाया और फिर कुछ समय तक इस किले पर सिखों का भी शासन रहा।

Then came the time which gradually enslaved all the people of India, and it was the time of 18th century. This was the time when the British came to India to trade. When the British came to trade India, they thought of running their rule here. And then gradually the British started ruling India under the name of East India Company. The British ruled India for nearly 200 years.

फिर वो समय आया जिसने भारत के सभी लोग धीरे-धीरे गुलाम बना दिया, और यह समय था 18वीं सदी का। यह वो समय था जब अंग्रेजों भारत व्यापार करने आये थे। जब अंग्रेजों भारत व्यापार करने आये तो उन्होंने यहाँ पर अपना शासन चलाने की सोची। और फिर धीरे-धीरे अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से भारत पर राज करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने करीब २०० सालों तक भारत पर राज किया।


There was a time when the British ruled this Red Fort. The British used to meet in the Red Fort itself. The British kept plundering India for years. He took all the precious things of India with him to England. He even took the Kohinoor diamond with him. One of the world's largest cut diamonds, weighing 105.6 carats, and part of the British Crown Jewels. Probably mined in Golconda, India, but there is no record of its original weight, but the earliest well attested weight is 186 carats.

एक समय ऐसा भी आया था जब इस लाल किले पर अंग्रेजों का राज हो गया था। अंग्रेजों की मीटिंग लाल किले में ही हुआ करती थी। सालों तक अंग्रेज भारत को लुटते रहे। वो भारत की सभी कीमती वस्तुएं अपने साथ इग्लैंड ले गए। यहाँ तक की वो अपने साथ कोहिनूर हीरे को भी ले गए। जो दुनिया के सबसे बड़े कट हीरे में से एक है, जिसका वज़न 105.6 कैरेट है, और ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है। संभवतः भारत के गोलकोंडा में खनन किया गया है, लेकिन इसके मूल वजन का कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन जल्द से जल्द अच्छी तरह से अटेस्टेड वजन 186 कैरेट है।

After the years of prolonged slavery of the British, on 15 August 1947, when India became free from the slavery of the British, India's first Prime Minister Jawaharlal Nehru waved the Indian national flag above the Lahore Gate (Red Fort). Every Independence Day thereafter, the Prime Minister of India waving the national flag at the Red Fort. After Independence, the Red Fort was used for military training and then it became a major tourist destination, while due to its attractiveness and grandeur it was included in the list of World Heritage in 2007 and today it People from every corner of the world go to Delhi to see the beauty.

अंग्रेजों की सालों तक की लम्बी गुलामी के बाद जब 15 अगस्त 1947 को, भारत अंगेजो की गुलामी से आजाद हुआ तो भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर गेट (लाल किला) के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया। इसके बाद हर स्वतंत्रता दिवस पर, भारत के प्रधान मंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज को लहराते है। आजादी के बाद लाल किले का इस्तेमाल सैनिक प्रशिक्षण के लिए किया जाने लगा और फिर यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रुप में मशहूर हुआ, वहीं इसके आर्कषण और भव्यता की वजह से इसे 2007 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया था और आज इसकी खूबसूरती को देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे देखने दिल्ली जाते हैं।

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