Taj Mahal

Taj-Mahal-ताज-महल -True love story (Agra - India)




Taj Mahal- ताज महल

All of us have heard many stories of history, reads, and have seen all the films made on them all. Because of which we have been able to know about the past history of all those people. One story from all the stories in history is of such a person. Who sacrificed everything for the sake of his love, even for the sake of his love, he oppressed those same 20,000 innocent people. Who had helped him for 22 years for his love, and after all this, his son imprisoned him inside a fort. Then after sometime in the fort, after the passage of time Then he died suddenly in the same fort. You may be thinking What am I talking about, yes i am talking about that person whose love to see people coming from thousands to far away from country and also comes from abroad. and after seeing his love from there, While going back, people often see their love over and over again. I am talking about Ella Azad Abul Muzaffar Shahab Ud-Din Mohammad Shahjahan, Shah Jahan means the King of the world. Shah Jahan made such a pattern in memory of his love Which was announced in the world's New 7 Wonders. And made it the first winner (2000-2007). And this winner is named Taj Mahal. Which is located in the city of Agra, India.

वैसे तो हम सबने इतिहास की बहुत सी प्रेम कहानियाँ सुनी है, पढ़ी भी है, और उन सब पर बनी सभी फिल्में भी देखी है। जिसके कारण हम उन सभी लोगों के बीते हुए इतिहास के बारे में जान पाए है। इतिहास की सभी कहानियों में से एक कहानी एक ऐसे इंसान की है। जिसने अपने प्रेम की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, यहाँ तक की उसने अपने प्रेम की खातिर उन्हीं 20,000 बेकुसूर लोगों पर अत्याचार किया। जिन्होंने उसके प्रेम के खातिर 22 सालो तक उसकी मदद की थी और फिर इन सब के बाद, उसी के बेटे ने उसे एक किले के अन्दर कैद करवा दिया। फिर किले में कुछ समय बीत जाने के बाद। फिर उसी किले में उसकी अचानक मौत हो गई। आप सोच रहे होंगे। की मैं किसकी बात कर रहा हूँ जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ उस इंसान की जिसके प्रेम को देखने के लिए लोग दूर-दूर से हजारों की संख्या में आते है विदेशों से भी आते है और उसके प्रेम को एक बार देखने के बाद वहाँ से वापस जाते समय लोग बार-बार उसके प्रेम को पलटकर देखते रहते है। मैं बात कर रहा हूँ एला आज़ाद अबुल मुजफ्फर शहाब उद-दिन मोहम्मद शाहजहाँ की, शाहजहाँ मतलब होता है दुनिया का राजा। शाहजहाँ ने अपने प्रेम की याद में एक ऐसा नमुना बना दिया। जिसे दुनिया के न्यू 7 वंडर्स में घोषित किया। और इसे (2000-2007)तक का पहला विजेता बना दिया। और इस विजेता का नाम है ताज महल। जो हिन्दुस्तान के आगरा शहर में स्थित है।






Probably because today, some 3 million people a year (or around 45,000 a day) visit the Taj Mahal. Taj Mahal, built by Shah Jahan in memory of his beloved wife Mumtaz

शायद इसलिए आज, लगभग 3 मिलियन लोग एक वर्ष ( एक दिन में लगभग 45,000) ताजमहल का दौरा करते हैं। ताज महल जिसे शाहजहाँ ने अपनी जान से प्यारी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया था।

Shah Jahan was born on January 5, 1592 in Lahore. Shahjahan's full name was Ella Azad Abul Muzaffar Shahab Ud-Din Mohammed Shah Jahan. His father's name was Mirza noor-ud-Din Beg Muhammad Khan Salim, who is known by his royal name, Jahangir, Jahangir was the fourth Mughal emperor who ruled from 1605 to 1627 until his death in 1627, after the death of his father Jahangir, Shahjahan at the young age, The successor of the throne was chosen.

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 लाहौर पाकिस्तान में हुआ था। शाहजहाँ का पूरा नाम एला आज़ाद अबुल मुजफ्फर शहाब उद-दिन मोहम्मद शाहजहाँ था। उनके पिता का नाम मिर्ज़ा नूर-उद-दीन बेग मुहम्मद खान सलीम जिन्हें उनके शाही नाम से जाना जाता है, जहाँगीर। जहाँगीर चौथे मुग़ल सम्राट थे, जिन्होंने 1605 से 1627 तक अपनी मृत्यु तक शासन किया। 1627 में अपने पिता जहाँगीर की मौत के बाद शाहजहाँ को छोटी सी उम्र में ही उन्हें मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी चुन लिया गया।


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As Shahjahan's Mughal Emperor was formed, Shah Jahan started developing his empire with speed. During this time there were many marriages of Shahjahan. And Shah Jahan also stayed with all his wives. But today his name is taken only with one. And that's the name, Mumtaz. Mumtaz's full name was Arjumand Bano Begum. Mumtaz gave birth to 14 children in 19 years and then Mumtaz died at the age of 40. Mumtaz died on June 17, 1631. Shah Jahan loved his wife Mumtaz very much. Mumtaz's death broke Shahjahan's heart inside.

शाहजहाँ के मुग़ल सम्राट बनते ही, शाहजहाँ ने तेजी के साथ अपने सम्राज्य का विकास करना शुरू कर दिया। इस दौरान शाहजहाँ की कई शादियाँ हुई। और शाहजहाँ अपनी सभी पत्नियों के साथ भी रहे। लेकिन आज उनका नाम सिर्फ एक के साथ ही लिया जाता है। और वो नाम है, मुमताज़। मुमताज़ का पूरा नाम था अरजुमंद बानो बेगम। मुमताज़ ने १९ साल में १४ बच्चों को जन्म दिया और फिर ४० साल की उम्र में मुमताज़ की मौत हो गई। 17 जून 1631 को मुमताज़ की मौत हो गई। शाहजहाँ अपनी पत्नी मुमताज़ से बहुत ही प्रेम करते थे। मुमताज़ की मौत ने शाहजहां के दिल को अंदर से तोड़ दिया।




Because of which Shahjahan started to be depressed. As the days passed. Shahjahan started going towards darkness And gradually he started getting old, then one day Shah Jahan thought of making a very beautiful tomb in memory of his dear wife Mumtaz.

जिसके कारण शाहजहाँ उदास रहने लगे। जैसे-जैसे दिन बीतते गए। शाहजहाँ अंधेरे की ओर जाने लगे। और धीरे-धीरे वो बूढ़े होने लगे, फिर एक दिन शाहजहाँ ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज़ की याद में एक बहुत ही खूबसूरत मकबरा बनाने की सोची।

After Mumtaz's death, his body was buried in Jainabagh on the banks of Tapti river. After that the construction of the Taj Mahal was started. Which started on the banks of Yamuna river. And after 12 years, Mumtaz's body was buried in the Taj Mahal under construction. Artisans from abroad and abroad were invited to build the Taj Mahal. To make Taj Mahal. A total of 20,000 artisans were engaged. And 1000 elephants who used to carry the burden, to make Taj Mahal the most unique. It used 28 different types of stones, these stones were brought from different places in Rajasthan, Baghdad, Tibet, Iran, Egypt, Afghanistan, etc.

मुमताज़ की मौत के बाद उनके शरीर को ताप्‍ती नदी के किनारे जैनाबाग में जमानती तौर पर दफन कर दिया गया। उसके बाद ताजमहल को बनाने का कार्य शुरू हुआ। जो यमुना नदी के तट पर शुरू हुआ। और फिर 12 साल बाद मुमताज़ के शरीर को निर्माणाधीन ताजमहल में दफन किया गया। ताजमहल को बनाने के लिए देश-विदेश से कारीगरों को बुलवाया गया। ताजमहल को बनाने के लिए। कुल 20,000 कारीगर लगे थे। और 1000 हाथी जो बोझा ढोने का काम करते थे, ताजमहल को सबसे अनोखा बनाने के लिए। इसमें २८ अलग-अलग तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, ये पत्थर राजस्थान, बगदाद, तिबत , ईरान, मिस्र, आफगानिस्तान, इत्यादि, अलग-अलग जगहों से लाये गए थे।



Making Taj Mahal -

It took 22 years to make. (From 1631 AD to 1653 AD) In the Taj Mahal, the Taj Mahal, sometimes with its white colored stones, changes its color. In the hot sunshine of 2 to 3 o'clock in the summer, the Taj Mahal looks very bright white. And as soon as the evening starts to happen. The Taj Mahal seems to be light pink and light blue for some time.

ताजमहल को बनाते-

बनाते २२ साल लग गए। (From 1631 AD to 1653 AD) ताजमहल में लगे सफ़ेद रंग के संगमार के पत्थरों से ताजमहल कभी-कभी अपना रंग बदल देता है। गर्मी के दिनों में २ से ३ बजे की तेज धुप में ताजमहल बिलकुल तेज चमकता हुआ सफ़ेद रंग का दिखाई देता है। और जैसे-जैसे शाम होने लगती है। ताजमहल कुछ देर के लिए, हल्का गुलाबी और हल्का नीला दिखाई देने लगता है।


To make Taj Mahal the most beautiful tomb in the world. Shah Jahan created many beautiful and beautiful artworks on the walls of the Taj Mahal, which is still seen on the walls of the Taj Mahal.Taj Mahal has been described as a very rare jewel of Muslim art in India,

शाहजहाँ ने ताजमहल को दुनिया का सबसे खूबसूरत मकबरा बनाने के लिए। शाहजहाँ ने ताजमहल की दीवारों पर बहुत सी सूंदर-सूंदर कलाएं बनवाई, जो आज भी ताजमहल की सूंदर दीवारों पर देखने को मिलती है। ताजमहल को भारत में मुस्लिम कला का एक बहुत ही नायाब गहना बताया गया है।

Perhaps it took 22 years to complete the Taj Mahal (1631 AD to 1653 AD)

शायद इसलिए ताजमहल को पूरा होने में 22 साल लग गए।(सन 1631 AD to 1653 AD)

The center point of the Taj Mahal is the tomb of white marble built on a square foundation basis. The tomb of Mumtaz Mahal and Shahjahan in the main chamber of this mausoleum The real grave is in a chamber just below the mausoleum made in the tomb. There are four tall towers around this tomb. Each tower is 40 meters high. These towers show the symmetrical tendency of the structure of the Taj Mahal. These towers have been built just like the towers to be built in the mosque. Each tower is divided into three equal parts by two shades. The last balcony is above the tower. Which has a umbrella similar to the main building. There is a special thing in all these towers. These four towers are tilted towards the outside. So that if the situation of the falling of these towers ever happened, then the towers fall from the outside. So that no damage can be reached to the main building.

ताज महल का केन्द्र बिंदु एक वर्गाकार नींव आधार पर बना श्वेत संगमर्मर का मक़बरा है। इस मकबरे के मुख्य कक्ष में मुमताज महल एवं शाहजहाँ की नकली कब्रें हैं, असली कब्र मकबरे में बनी नकली कब्रों के ठीक नीचे बने एक कक्ष में है, इस मकबरे के चारों ओर चार ऊँची मीनारें है। प्रत्येक मीनार 40 मीटर ऊँची है। यह मीनारें ताजमहल की बनावट की सममितीय प्रवृत्ति दर्शित करतीं हैं, यह मीनारें मस्जिद में अजा़न देने हेतु बनाई जाने वाली मीनारों के समान ही बनाईं गईं हैं, प्रत्येक मीनार को दो-दो छज्जों द्वारा तीन समान भागों में बंटी है। मीनार के ऊपर अंतिम छज्जा है। जिस पर मुख्य इमारत के समान ही छतरी बनी हैं। इन सभी मीनारों में एक खास बात है। यह चारों मीनारें बाहर की ओर हलकी सी झुकी हुईं हैं, जिससे कि कभी इन मीनारों की गिरने की स्थिति हुई, तो यह मीनारें बाहर की ओर ही गिरें। जिससे की मुख्य इमारत को कोई क्षति ना पहुँच सके।





There are two huge red sandstone buildings on either side of the Taj Mahal. Which is on the tomb. Their backwaters are linked to the eastern and western walls, and both are a reflection of each other. The western building is a mosque, and the eastern is called a reply. Whose primary objective is the Vastu Balance, and has been used as the Magistrate Room. There is a slight difference between these two buildings, that there is a vault in the mosque, in which there is a head towards Mecca. Whereas the geometrical specimens are made in the answer floor. While 569 prayers in the floor of the mosque are made of black marmalade in front of the bedouen (Ja-Namaz). The original form of the mosque is similar to the other mosques built by Shah Jahan. When the Taj Mahal was completed after 22 years. Then all the wealth of Shah Jahan was over. Shah Jahan made all the riches he had earned to make Taj Mahal, and after making the Taj Mahal, Shah Jahan cut off all those laborers. Who made the Taj Mahal.

ताजमहल के अगल-बगल दोनों ओर दो विशाल लाल बलुआ पत्थर की इमारतें हैं। जो कि मकबरे की ओर बनी हुई है। इनके पिछवाडे़ पूर्वी एवं पश्चिमी दीवारों से जुडे़ हैं, एवं दोनों ही एक दूसरे की प्रतिबिम्ब आकृति हैं। पश्चिमी इमारत एक मस्जिद है, एवं पूर्वी को जवाब कहते हैं। जिसका प्राथमिक उद्देश्य वास्तु संतुलन है, एवं आगन्तुक कक्ष की तरह प्रयुक्त होती रही है। इन दोनों इमारतों के बीच में थोड़ा सा अंतर यह है, कि मस्जिद में एक मेहराब कम है, उसमें मक्का की ओर आला बना है। जबकि जवाब के फर्श में ज्यामितीय नमूने बने हैं। जबकि मस्जिद के फर्श में 569 नमाज़ पढ़ने हेतु बिछौने (जा-नमाज़) के प्रतिरूप काले संगमर्मर से बने हैं। मस्जिद का मूल रूप शाहजहाँ द्वारा निर्मित अन्य मस्जिदों के समान ही है। जब ताजमहल २२ साल बाद बनकर पूरा हुआ। तब शाहजहाँ की सारी दौलत ख़त्म हो गई थी। शाहजहाँ ने अपनी कमाई हुई सारी दौलत को ताजमहल बनाने में लगा दी, और ताजमहल के बनाने के बाद शाहजहां ने उन सभी मजदूरों के हाँथ काट दिए। जिन्होंने ताजमहल को बनाया था।


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So that no other Taj Mahal could be formed. For this reason, big engineers of the country and abroad have not fully understood the structure of the Taj Mahal till date,

ताकि कोई दूसरा ताजमहल ना बन सके। श्याद इसीलिए देश-विदेश के बड़े-बड़े इंजीनियर भी आज तक ताजमहल की बनावट को पूरी तरह नहीं समझ पाए है।

Shah Jahan gave him so much wealth after cutting the hands of all the laborers. So that their future generation could also survive. After the distribution of wealth into artisans, the wealth left over. In the 17th century to build the Taj Mahal, 32 million rupees were spent, which means today 460192.00 million us dollar.

सभी मजदूरों के हाँथ कटवाने के बाद शाहजहाँ ने उन्हें इतनी दौलत दी। जिससे की उनकी आने वाली पीढ़ी भी गुजारा कर सके। कारीगरों में दौलत बांटने के बाद बची हुई दौलत खत्म हो गई। ताजमहल को बनाने में १७ वी. सदी में ३२ मिलियन रुपए लगे थे मतलब आज 460192.00 मिलियन us डॉलर



लाल-किला- Agra-red-fort-world-highest-site

When this news came to know that Shah Jahan's son Aurangzeb So he imprisoned his father Shah Jahan forever in the Red Fort of Agar. Which was built by Shah Jahan And after that Aurangzeb called his father Shahjahan a victim of madness. The Red Fort which was built on the other bank of Yamuna River in front of the Taj Mahal.

जब इस बात की खबर शाहजहाँ के बेटे औरंगजेब को पता चली, तो उसने अपने पिता शाहजहाँ को आगर के लाल किले में हमेशा के लिए कैद करवा दिया। जिसे शाहजहाँ ने ही बनवाया था। और उसके बाद औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को पागलपन का शिकार बताया। लाल किला जो ठीक ताजमहल के सामने यमुना नदी की दूसरी तट पर बना हुआ था।

Shah Jahan, who once used to be a brave king of the Mughal Emperor, became so crazy in his wife's love that his son Aurangzeb imprisoned his father Shah Jahan in the Red Fort of Agra. Shah Jahan was imprisoned in a prison in the Red Fort. There was a small window from which he used to see the Taj Mahal. And he used to remember all the past.

वो शाहजहाँ जो कभी मुग़ल सम्राट का एक बहादुर राजा हुआ करता था, वो अपनी पत्नी के प्रेम में इतना दीवाना हो गया, की उसी के बेटे औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को आगरा के लाल किले में कैद करवा दिया। शाहजहाँ लाल किले के जिस कैदखाने में कैद थे, वहाँ पर एक छोटी सी खिड़की थी, जिसमे से वो झाकर ताजमहल को देखा करते थे।और अपने बीते हुए सभी पलों को याद करते थे।

After seeing the Taj Mahal all day long, when it was in the evening. So Shahjahan used to see the waters of the river Yamuna. Because as soon as the night was there and the moon went out in the sky.And when the moon put its light on the Taj Mahal, the Taj Mahal was shining like gold. Taj Mahal was seen in the river Yamuna when the Taj Mahal was shining, when Shahjahan saw the brightness of the Taj Mahal in the river Yamuna, he would feel closer to him.

सारा दिन खिड़की से ताजमहल को देखने के बाद, जब शाम होती थी। तो शाहजहाँ यमुना नदी के पानी को देखने लगते थे। क्योकि जैसे ही रात हो थी और आसमान में चाँद निकलता था।और जब चाँद अपनी रौशनी ताजमहल पर डालता था, ताजमहल सोने की तरह चमकने लगता था। ताजमहल के चमकते ही ताजमहल यमुना नदी में दिखने लगता था, जब शाहजहाँ यमुना नदी में ताजमहल की चमकती हुई परछाई को देखते तो उसे अपने करीब महसूस करते।


After a few years, on 22 January 1666, (age 74) of Shah Jahan suddenly died in the Red Fort (Agra). After Shah Jahan's death, the body of Shahjahan was taken out of the Red Fort (Agra). The way of Yamuna was brought in the Taj Mahal. And his grave was made right next to his beloved wife Mumtaz and was buried. This is the case that has passed over the years, but whenever someone sees Taj Mahal in Agra, it says, "This is the sign of love love" till date the Taj Mahal is listening to his love story, without saying anything.

फिर कुछ सालो बाद शाहजहाँ की 22 जनवरी 1666,(७४ उम्र ) को लाल किला में ही (आगरा) अचानक मौत हो गई। शाहजहाँ की मौत के बाद शाहजहाँ के शरीर को लाल किले (आगरा) में से निकालकर। यमुना नदी की रास्ते ताजमहल के अन्दर लाया गया। और उनकी कब्र ठीक उनकी प्रिय पत्नी मुमताज़ के बगल में ही बनाकर उन्हें दफना दिया गया। आज सालों बीत गए इस बात को लेकिन जब भी कोई आगरा में ताजमहल को देखता तो यह कहता है, "यह है, साचे प्रेम की निशानी" आज तक ताजमहल उनकी प्रेम कहानी को सुना रहा है, बिना कुछ कहे।

Today, in almost a year, 3 million people (about 45,000 in a day) visit the Taj Mahal. In 2007, it was declared the first winner of the World's New 7 Wonders (2000-2007).

आज, लगभग एक वर्ष में 3 मिलियन लोग( एक दिन में लगभग 45,000) ताजमहल का दौरा करते हैं। 2007 में इसे विश्व के न्यू 7 वंडर्स (2000-2007) पहला विजेता घोषित किया गया।


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If you are thinking of walking around the Taj Mahal, then let us tell you that the Taj Mahal is closed on Friday. Time to open the Taj Mahal Time of day: Daily from sunrise to sunset (06:00 to 06:30) except on Friday. The Taj Mahal is closed every Friday and in the afternoon only Muslims are reached to pray. A 20-minute walk from Taj Mahal, you will find many cheap hotels, the best thing about these hotels is that the hotel is very close to the Taj Mahal. From the top of the roof of these hotels, you can see the Taj Mahal which is very beautiful Is visible. Exiting the Taj Mahal, the start of a very beautiful shop starts in which many beautiful small Taj Mahal is being sold. Everybody who came to visit the Taj Mahal would buy a small Taj Mahal from these shops. Just a few more shops of these shops start dressing up, from which you can buy good clothes for yourself at good and cheap prices.

अगर आप ताजमहल घूमने की सोच रहे है, तो हम आपको बता दे की ताजमहल शुक्रवार को बंद रहता है। ताजमहल खोलने का समय। दिन का समय: सूर्योदय से सूर्यास्त तक प्रतिदिन (०६:०० बजे से ०६:३० बजे) शुक्रवार को छोड़कर। हर शुक्रवार को ताजमहल को बंद कर दिया जाता है और केवल दोपहर में मुसलमानों को नमाज़ अता करने के लिए पहुँचा जाता है। ताजमहल से २० मिनट की पैदल दुरी पर आपको बहुत से सस्ते होटल मिल जायेंगे इन होटलों की सबसे अच्छी बात ये है की ये होटल ताजमहल की बहुत ही नजदीक है इन होटलों की छत के ऊपर से भी आप ताजमहल को देख सकते है जोकि बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है. ताजमहल से बाहर निकलते ही बहुत ही सुन्दर दुकानों का सिलसिला शुरू हो जाता है जिनमें बहुत से सुन्दर छोटे ताजमहल बिक रहे होते है ताजमहल घूमने आया हर व्यक्ति इन दुकानो से एक छोटा सा ताजमहल तो खरीद ही लेता। इन्हीं दुकानों के थोड़ा और आगे सुन्दर कपड़ों की दुकाने शुरू हो जाती है जहाँ से आप अपने लिए अच्छे और सस्ते दामों पर अच्छे कपडे खरीद सकते है.


Note:-

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Chanakya Neeti

Chanakya-चाणक्य (a great teacher)

Chanakya-a great teacher- whose things people believe in today and still do great things. Chanakya, who made Chandragupta Maurya king by destroying Nandvasha. The economics written by him are the great books of politics, economics, agriculture, social science etc. Economics is considered to be the mirror of Indian society of Mauryan.

चाणक्य-एक महान शिक्षक-जिनकी बातों पर लोग आज भी विश्वास रख कर बड़े-बड़े काम कर जाते है. चाणक्य, जिन्होंने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।

All the things that Chanakya has done centuries ago Today we get to read in many books. If today's people pay attention to all the things told by Chanakya, then they will never have any problem in their life. It will be easy to achieve all the goals of your life. Centuries ago Chanakya had thought of making Chandragupta Maurya the emperor of India. Then Chandragupta Maurya was not convinced. But Chanakya composed a new era with his wisdom and his own words. New indivisible India composition. And made Chandragupta Maurya the emperor.

चाणक्य द्वारा कही सदियों पहले की सभी बातें। आज हमें बहुत सी किताबों में पढ़ने को मिलती है। यदि चाणक्य द्वारा बताई सभी बातें पर आज के लोगों ध्यान दे, तो उनके जीवन में कभी भी कोई मुसीबत नहीं आएगी। उन्हें अपने जीवन के सभी लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाएगा। सदियों पहले जब चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाने की सोची थी। तब चन्द्रगुप्त मौर्य को यकीन नहीं हुआ था। लेकिन चाणक्य ने अपनी बुद्धि और अपनी बातों से एक नए युग की रचना की। नए अखंड भारत रचना की। और चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट बना दिया।

In today's era, people are quite impressed by reading the ideas given by the great people like Chanakya. Chanakya's ideas have also elevated the lives of many people. A lot of books have been written about Chanakya's diplomacy and its principles. Chanakya's views are considered very precious in India. The idea of ​​Chanakya is very much like teachers, politicians and business people.

आज के युग में चाणक्य जैसे महान लोगो द्वारा बताए गए विचारो को पढ़कर लोग काफी प्रभावित होते है। चाणक्य के विचारो ने भी कई लोगो के जीवन को उन्नत किया है। चाणक्य की कूटनीति और इसके सिध्धांतो के बारे में बहुत सी पुस्तके लिखी गयी है। चाणक्य के विचारो को भारत में बहुत अनमोल माना जाता है। चाणक्य के विचार अध्यापक, राजनीतिज्ञ और व्यवसायिक लोगो को बहुत ज्यादा पसंद है।

Well, there are many old texts in which Chanakya has said a lot of such things that any person can make their life happy and every one can find what they hope for.Chanakya policy or Chanakya ethics is a policy text written by Chanakya. Chanakya is an important place in the history of scriptural texts in Sanskrit literature. In it, useful tips have been given to make life happy and successful in the formative style. Its main theme is to give practical human education to every aspect of life. It has mainly been presented in pics of progress of religion, culture, justice, peace, education and universal human life. This ethical treatise provides a great coordination of life-principle and life-style and ideal and realism.

वैसे तो बहुत से पुराने ग्रन्थ है जिनमे चाणक्य ने बहुत सी ऐसी बात कही है जिनसे कोई भी मनुष्य अपने जीवन को सुखी बना सकता है और हर वो चीज पा सकता है जिसकी वो आशा रखता है. चाणक्य नीति या चाणक्य नीतिशास्त्र, चाणक्य द्वारा रचित एक नीति ग्रन्थ है। संस्कृत-साहित्य में नीतिपरक ग्रन्थों की कोटि में चाणक्य नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें सूत्रात्मक शैली में जीवन को सुखमय एवं सफल बनाने के लिए उपयोगी सुझाव दिये गये हैं। इसका मुख्य विषय मानव मात्र को जीवन के प्रत्येक पहलू की व्यावहारिक शिक्षा देना है। इसमें मुख्य रूप से धर्म, संस्कृति, न्याय, शांति, सुशिक्षा एवं सर्वतोन्मुखी मानव जीवन की प्रगति की झाँकियां प्रस्तुत की गई हैं। इस नीतिपरक ग्रंथ में जीवन-सिद्धान्त और जीवन-व्यवहार तथा आदर्श और यथार्थ का बड़ा सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है।

Chanakya (estimated 375 BC - 283 BC) was the Chief Minister of Chandragupta Maurya. He was the teacher of Taxila University
Chanakya has some very good talks, some of which are given below.

some examples

1. No person should be 'straightforward' than necessary. Go to the forest and look- The straight stem trees are cut, no one touches the crook.

2. Even if no snake is poisonous, even then he should not leave the pimples. In the same way, a weak person should not show any weakness at all times.

3. Never share your secrets with anyone, this tendency will ruin you.

4. Some selfishness is definitely hidden behind every friendship. There is no such friendship in the world behind which people are not hidden from their own interests, it is a bitter truth, but this is the truth.

5. Your child should first cure with five years of caution. The next five years should be kept under surveillance with scolding. But when the child is sixteen, he should behave like a friend.

6. Save money for the crisis period. If there is a crisis on the family, then you should sacrifice wealth. But protecting ourselves, we should do our family and money by putting them on the stake.

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे,

चाणक्य द्वारा कही बहुत सी अच्छी-अच्छी बाते है जिनमे से कुछ नीचे दी गई है

कुछ उदाहरण.

1. किसी भी व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक 'सीधा' नहीं होना चाहिए। वन में जाकर देखो- सीधे तने वाले पेड़ ही काटे जाते हैं, टेढ़े को कोई नहीं छूता।

2. अगर कोई सांप जहरीला नहीं है, तब भी उसे फुफकारना नहीं छोड़ना चाहिए। उसी तरह से कमजोर व्यक्ति को भी हर वक्त अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

3. कभी भी अपने रहस्यों को किसी के साथ साझा मत करो, यह प्रवृत्ति तुम्हें बर्बाद कर देगी।

4. हर मित्रता के पीछे कुछ स्वार्थ जरूर छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई दोस्ती नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न छिपे हों, यह कटु सत्य है, लेकिन यही सत्य है।

5. अपने बच्चे को पहले पांच साल दुलार के साथ पालना चाहिए। अगले पांच साल उसे डांट-फटकार के साथ निगरानी में रखना चाहिए। लेकिन जब बच्चा सोलह साल का हो जाए, तो उसके साथ दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए।

6. संकट काल के लिए धन बचाएं। परिवार पर संकट आए तो धन कुर्बान कर दें। लेकिन स्वयं की रक्षा हमें अपने परिवार और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।

Some good things about Chanakya policy-

1. As the gem is not found on all the mountains, pearls are not produced in the head of all the elephants; there is no sandalwood tree in all forests, so gentlemen do not meet at all places.

2. Lying, showing excitement, scoffing, cheating, foolish actions, greed, profanity and mercilessness - these are all natural faults of women. Chanakya considers the above defects as a natural virtue of women. However, in these educated women of the present age these defects can not be said right.

3. Having good food for food, having the power of digestion, having the ability to be infected with the beautiful woman, the desire to provide wealth along with abundant wealth. All these pleasures are received by people very difficult.

4. Chanakya says that the person whose son lives under his control, whose wife practices according to the command and who is fully satisfied with the money he earns. For such a person, this world is like heaven itself.

5. Chanakya believes that the same family is happy, whose children obey their commands. The father also has the duty to nurture the sons well. Similarly, such a person can not be called a friend, which can not be believed and such a wife is in vain that no pleasure is available.

6. The friend who talks smoothly in front of you and spoils your work behind the back, it is better to sacrifice him. Chanakya says that it is similar to the utensil, on which there is milk in the upper part, but the inside is filled with venom.

7. Chanakya says that the person who is not a good friend should not believe it, but at the same time should not believe in good relations with a good friend, because if he gets annoyed then he can open up all your distinctions. Therefore caution is extremely important.

8. According to Chanakya, the life of trees on the banks of the river is uncertain, because rivers flood their edge trees during floods. Similarly, a woman living in other homes can also go on the path of decline at any time. Similarly, the king who does not have good advice, can not stay safe for a long time. There should not be any doubt in it.

9. Chanakya says that the way a prostitute turns away from a man when the money is over. In the same way, when the king becomes powerless, the people leave him. Likewise, birds living on trees also live on a tree until they get the fruits from there. When the guest is fully welcomed, he also leaves the house.

10. The person who is friendly with the bad character, the harm that causes others harm, and the people living in an impure place, is destroyed soon. Acharya Chanakya says that man should avoid misbehavior. They say that it is in the good of man that he should leave the evil person as soon as he could.

चाणक्य नीति की कुछ और अच्छी बातें -

1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्त्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्त्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

7. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंध में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

8. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

9. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

10. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

Keep your thoughts in control because it will become your voice. Keep your voice in control, because this will be your karma. Keep your karmo in control because it will become your habit. Keep your habits in control as it will become your character. Keep your character under control because it will be your destiny.

अपने विचारों को वश में रखो क्योकि यही तुम्हारी वाणी बनेंगे। अपनी वाणी को वश में रखो क्योकि यही तुम्हारे कर्म बनेंगे। अपने कर्मो को वश में रखो क्योकि यही तुम्हारी आदत बनेंगे। अपनी आदतों को वश में रखो क्योकि यही तुम्हारी चरित्र बनेंगी। अपने चरित्र को वश में रखो क्योकि इसी से तुम्हारा भाग्य बनेगा।


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mahabharat karan

KARAN-कर्ण (Karan the Munificent)

सदियों पहले, कुरुक्षेत्र (भारत ) में हुए महाभारत में बहुत सी लड़ाई लड़ी गई। और साथ ही इस में लड़ाई बहुत से वीर योद्धाओं ने भाग लिया। जिसमें से एक था। कर्ण
कर्ण महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण को महाभारत का महानायक माना जाता है। कर्ण महाभारत में अपनी धनुर्विद्या, दानवीरता और अपने सबसे अनमोल कवच और कुण्डल के लिए बहुत ही लोकप्रिय था। महाभारत में कर्ण ही एक ऐसा वीर योद्धा था। जिसे बहुत सारे श्राप मिले हुए थे। महाभारत में अगर कोई उसका मित्र था। तो वो केवल दुर्योधन।

Centuries ago, a lot of battle was fought in the Mahabharata of Kurukshetra (India). At the same time, many warriors participated in this fight. One of which was the one. KARAN. Karna is one of Mahabharata's most prominent characters. Karna is considered the Mahabharata's superhero. Karna was very popular for his archery, charity and his most precious armor and helm in Mahabharata. Karna was such a brave warrior in the Mahabharata. Which had received many curses. If anyone in the Mahabharata was his friend So that's only Duryodhana.

कर्ण सूर्य का पुत्र था। कर्ण को भारत में एक आदर्श दानवीर माना जाता है। क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। कर्ण की इसी दानवीरता के कारण करन के साथ छल किया गया। जिसके कारण वो कुरुक्षेत्र (भारत) में लड़ते हुए महाभारत में उसकी मौत हो गई।

Karan was the son of the sun. Karna is considered an ideal donor in India. Because Karna has never refused to give anything to anyone asking for a donation even if it has resulted in his own life in crisis. Karan was duped with Karan due to this same charisma. Due to which he died in the Mahabharata while fighting in Kurukshetra (India).


कर्ण की माँ का नाम कुन्ती था। कुन्ती जब कुंवारी थी। तब एक दिन दुर्वासा ऋषि उसके पिता के महल में पधारे। और कुन्ती को वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण करके उनसे सन्तान उत्पन्न कर सकती है। दुर्वासा ऋषि द्वारा दिए हुए वरदान को जांचने के लिए। एक दिन कुन्ती ने सूर्य देव का ध्यान किया। इससे सूर्य देव प्रकट हुए और उसे एक पुत्र दिया जो तेज़ में सूर्य के ही समान था और वह कवच और कुण्डल लेकर उत्पन्न हुआ था, जो जन्म से ही उसके शरीर से चिपके हुए थे।

Karna's mother's name was Kunti. When Kunti was virgin Then one day Durvasa Rishi came to her father's palace. And gave a boon to Kunti that she can remember any god and raise children from them. To check the boon given by Durvasa Rishi One day Kunti meditated on the Sun God. From this, the Sun God appeared and gave it a son, which was very similar to the sun and was born with the armor and coil which was sticking to his body from birth.

कुन्ती अभी भी अविवाहित थी इसलिये लोक-लाज के डर से उसने उस पुत्र को एक बक्से में रख कर गंगाजी में बहा दिया। कर्ण गंगाजी में बहता हुआ जा रहा था। कि तभी अचानक से महाराज भीष्म के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने उसे देखा। और कर्ण गोद ले लिया और उसका लालन पालन करने लगे। उन्होंने उसे वासुसेन नाम दिया। बचपन से ही कर्ण की रुचि अपने पिता अधिरथ के समान रथ चलाने कि बजाय युद्धकला में अधिक थी। कर्ण और उसके पिता अधिरथ आचार्य द्रोण से मिले जो उस समय युद्धकला के सर्वश्रेष्ठ आचार्यों में से एक थे। द्रोणाचार्य उस समय कुरु राजकुमारों को शिक्षा दिया करते थे। उन्होने कर्ण को शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि कर्ण एक सारथी पुत्र था और द्रोण केवल क्षत्रियों को ही शिक्षा दिया करते थे।

Since she was still unmarried, for fear of public shame, she put the son in a box and sank in Gangaji. Karna was flowing in Gangaji. That's when suddenly Saraithi Adhiratha of Maharaj Bhishma and his wife Radha saw him. And Karna adopted and started adhering to him. They named him Vasusen. Karna's interest from his childhood was more in warfare rather than running his chariot just like his father. Karna and his father met Acharya Acharya Drona, who was then one of the best teachers of warfare. Dronacharya used to teach Kuru princes at that time. He refused to teach Karna because Karna was a charioteer and Drona used to teach only the Kshatriyas.

द्रोणाचार्य के मना करने के बाद कर्ण ने परशुराम से सम्पर्क किया जो कि केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा दिया करते थे। जब ये बात कर्ण को पता चली तो कर्ण ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम से शिक्षा का आग्रह किया। परशुराम ने कर्ण का आग्रह स्वीकार किया और कर्ण को अपने समान ही युद्धकला और धनुर्विद्या में निष्णात किया। इस प्रकार कर्ण परशुराम का एक अत्यन्त परिश्रमी और निपुण शिष्य बना।

After refusing the Dronacharya, Karna contacted Parashuram, who used to teach only Brahmins. When Karna came to know of this, Karna called herself a Brahmin and requested Parashurama to teach. Parashuram accepted the request of Karna and professed Karna as his own master in warfare and archery. Thus Karna became a very hard-working and skilled disciple of Parshuram.

कर्ण की शिक्षा पूरी होने वाली ही थी कि। एक दिन की बात है, गुरु परशुराम कर्ण की जांघ पर अपना सिर रखकर विश्राम कर रहे थे। कुछ देर बाद कहीं से एक बिच्छू आया और उसकी दूसरी जंघा पर काट कर घाव बनाने लगा। गुरु का विश्राम भंग ना हो इसलिए कर्ण बिच्छू को दूर ना हटाकर उसके डंक को सहता रहा। फिर कुछ देर बाद अचानक से गुरुजी की निद्रा टूटी और उन्होनें देखा की कर्ण की जांघ से बहुत रक्त बह रहा है। उन्होनें कहा कि केवल किसी क्षत्रिय में ही इतनी सहनशीलता हो सकती है कि वह बिच्छु डंक को सह ले, ना कि किसी ब्राह्मण में और परशुरामजी ने उसे मिथ्या भाषण के कारण श्राप दिया कि जब भी कर्ण को उनकी दी हुई शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, उस दिन उसकी शिक्षा उसके काम नहीं आएगी।

Karna's education was about to be completed. One day, Guru Parshuram was resting his head on the thigh of Karna. After a while, a scorpion came from somewhere and cut it on his other thigh and started making a wound. The rest of the master is not dissolve, so the Karna does not remove the scorpion and keep its sting. After a while, Guruji's sleep suddenly broke and he saw that a lot of blood was flowing from the thigh of the Karna. He said that only a Kshatriya can have such tolerance that he should take the scorpion sting, and not in any Brahmin and Parshuramji cursed him because of a false speech that whenever Karna would be most needed for his given education, His education will not work on that day.

जब भी कुरुक्षेत्र में यद्ध आरंभ होता। कर्ण के तीर दुश्मनों के शरीर को चीरकर रख देते। जब कर्ण के पास उसके पिता सूर्य देव के दिए हुआ कवच और कुण्डल थे। तब तक कर्ण अमर था। उसे युद्ध में कोई भी मार नहीं सकता था। एक दिन की बात है। सब जानते थे की कर्ण बहुत बड़ा दानवीर है। सुबह के समय जब वह सूर्यदेव की पूजा करता है, उस समय यदि कोई उससे कुछ भी मांगेगा तो वह मना नहीं करेगा और मांगने वाला कभी खाली हाथ नहीं लौटेगा। कर्ण की इसी दानवीरता का महाभारत के युद्ध में इन्द्र और माता कुन्ती ने लाभ उठाया।

Whenever the war started in Kurukshetra The arrow of Karna can be torn off by the enemies of the enemy. When Karna had his father Sun God's armor and coil. By then the Karna was immortal. Nobody could kill him in the war. Its just matter of one day. Everyone knew that Karna is a very big donator. In the morning when he performs the worship of the sun, at that time if someone asks for anything then he will not refuse, and the one who asks will never return empty handed. Indran and Mata Kunti availed the same charity of Karna in Mahabharata's war.

एक युद्ध से पहले कर्ण हमेशा की तरह अपने पिता सूर्यदेव की पूजा कर रहा था। तभी वहाँ पर इंद्र आ गए। कर्ण को पूजा करते देखकर इंद्र ने एक साधु के भेष बनाया और कर्ण के पास चला गया और कर्ण से भिक्षा मांगने लगा। कर्ण दानवीर था, तो उसने मना नहीं किया। इंद्र ने साधु के भेष अपनी भिक्षा में कर्ण से उसके कवच-कुण्डल माँग लिए। क्योंकि यदि ये कवच-कुण्डल कर्ण के ही पास रहते तो उसे युद्ध में परास्त कर पाना असम्भव था और इन्द्र ने अपने पुत्र अर्जुन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कर्ण से इतना बडी़ भिक्षा माँग ली। लेकिन दानवीर कर्ण ने साधु भेष में देवराज इन्द्र को भी मना नहीं किया।

Before a war, Karna was always worshiping his father, Sun Deva. Only then did Indra come there. Seeing Karna worshiping, Indra made the disguise of a Monk and went to Karna and began asking for alms from Karna. Karna was a charisma, so he did not refuse. Indra demanded his armor and coil from Karna in the disguise of Monk in his alms. Because if this armor-shield was near to Karna, it was impossible to defeat him in battle and Indra demanded such a great almighty from Karna keeping in mind the security of his son Arjuna. But Danir Karan did not deny Devraj Indra in the Monk scandal.

कर्ण अपने दान धर्म का पालन करते हुए अपने कवच और कुण्डल को निकलकर इंद्र को दे दिए। कर्ण जानता था। कि कवच और कुंडल के बिना, वो युद्ध में ज्यादा सुरक्षित नहीं रह पाएगा लेकिन फिर भी उसने अपने कवच और कुंडल देवराज इंद्र को दे दिए। जब अगले दिन कर्ण युद्ध लड़ने गया। तो सबने देखा की उसके पास उसके कवच और कुंडल नहीं है। कुछ समय तक अर्जुन के साथ युद्ध करने के बाद, अचानक से कर्ण के रथ का एक पहिया धरती में धँस गया। रथ का एक पहिया धरती में धँसते ही कर्ण अपने रथ के पहिये को ठीक करने लगा। लेकिन अर्जुन अपने तीरो से कर्ण पर लगातार हमला किये जा रहा था। गुरु परशुराम के दिए हुए श्राप के कारण कर्ण अपनी सीखी हुई शिक्षा भी भूल गया। इसका फ़ायदा लेते हुए अर्जुन ने एक दैवीय अस्त्र का उपयोग करते हुए कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया। कर्ण के शरीर के भूमि पर गिरने के बाद एक ज्योति कर्ण के शरीर से निकली और सूर्य में समाहित हो गई।

Karna, following his charity religion, left his armor and coil and gave it to Indra. Karna knew. Without that armor and coil, he would not be able to secure much in war, but still he gave his armor and coil to Devraj Indra. When Karna went to fight the next day. So everyone saw that he did not have his armor and coil. After some time fighting with Arjuna, a wheel of the chariot of Karna suddenly hit the ground. A wheel of the chariot, while chasing the earth, Karna started fixing the chariot wheels. But Arjun was constantly attacking Karna from his arrow. Due to the curse given by Guru Parshuram, Karna also forgot his learned education. Taking advantage of it, Arjun separated the head of Karna from the fuselage using a divine weapon. After falling on the ground of Karna's body, a flame came out of the body of Karna and was absorbed in the sun.

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mawlynnong day trip

Mavelinong Village-cleanest village in asia
Mavelinong Village

Mavelinong Village, Mewelong Village is a very beautiful village, situated in the eastern hills of Meghalaya. It is also known as 'Gods on Garden', along with the praise of being the cleanest village in Asia in 2003. Many people come from far and wide to visit this beautiful village, the beauty of this village attracts many tourists.

मेवलिनॉन्ग गांव, मेवलिनॉन्ग गांव एक बहुत ही सूंदर गांव है, जो मेघालय के पूर्वी खासी पहाड़ियों में स्थित है। इसे 'गॉड्स ओन गार्डन' के रूप में भी जाना जाता है, साथ ही 2003 में एशिया में सबसे स्वच्छ गांव होने की प्रशंसा हासिल की। दूर-दूर से बहुत से लोग इस सुन्दर गांव में घूमने आते है, इस गांव की सुंदरता बहुत से पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करती है।

A community here has tried to maintain the atmosphere of a clean village, which results in cleanliness in the village, and the village offers picturesque natural beauty, this village is very beautiful, the beauty of this village, especially in the monsoon It appears when there is greenery around trees. There is a trek for the living village of Rivi. Boulder balancing is another rock. The envious envy of the neighbors is jealous of the villagers. This village is located about 90 km from Shillong.

यहाँ के एक समुदाय ने एक स्वच्छ गांव के माहौल को बनाए रखने का प्रयास किया है, जिसके कारण गांव में स्वच्छता बनी रहती है ,और गांव सुरम्य प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करता है, यह गाँव बहुत ही सुंदर है, इस गाँव की सुंदरता खासकर मानसून में दिखती है, जब पेड़ों के चारों ओर हरियाली होती है। रिवाई के जीवित गांव के लिए एक ट्रेक है। बोल्डर बैलेंसिंग एक और चट्टान है। ग्रामीणों से ईर्ष्या करने वाले पड़ोसियों के आराध्य ईर्ष्या करते हैं।यह गांव शिलांग से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित है।

If you are going to roam in this village from this Surround you will see that the path to keep the village clean is in the village. For local cleaning of roads, throwing waste and throwing it into the bin is a very common sight. Bamboo waste bins decorate the villagers on every nook. Because of this, Mavelinong is completely clean and green with the streets and streets of the village, which indicates that tourists should maintain uniform during their stay in the village. Hygiene is a centuries old tradition. This village also offers a very breathtaking view of the plains of Bangladesh because it is located on the India-Bangladesh border.

यदि आप इस सूंदर से गाँव में घूमने जा रहे है तो आप देखेंगे की, गाँव को साफ रखने का मार्ग गाँव में है। सड़कों की स्थानीय सफाई के लिए, कूड़ा उठाकर बिन में फेंकना एक बहुत ही आम दृश्य है। बाँस के कचरे के डिब्बे ग्रामीणों के हर नुक्कड़ पर सजते हैं। जिसकी वजह से मेवलिनॉन्ग गांव की गलियों और सड़कों के साथ पूरी तरह से साफ और हरा भरा रहता है जो पर्यटकों को गाँव में रहने के दौरान समान बनाए रखने का संकेत देता है। स्वच्छता एक सदियों पुरानी परंपरा है। यह गाँव बांग्लादेश के मैदानों का बहुत ही लुभावना दृश्य भी प्रस्तुत करता है क्योंकि यह भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित है।

In addition to cleanliness in the Mavelingong village, the people here have built a beautiful treehouse on nearby trees, tourists visiting here are sure to see the treehouse on the trees, to reach the treehouse, made of bamboo above the trees. The high brim of high bridges is to go through the top of these bridges to the treehouse.

मावलिनॉन्ग गांव में साफ सफाई के अलावा, यहाँ के लोगों ने आस पास के पेड़ो पर सुन्दर treehouse बना रखे है, यहाँ पर घूमने आये पर्यटक पेड़ो पर बने treehouse को देखने जरूर जाते है, treehouse तक पहुंचने के लिए, पेड़ो के ऊपर बांस से बने हुए ऊँचे सुन्दर पुल है इन पुलों के ऊपर से होकर treehouse में जाना होता है।

It is very easy for the tourists to visit this village to interact with the people here. Because Hindi and English languages ​​are well spoken to the people of this village. Therefore, a tourist can easily communicate with the people of this village in English. Homestay facilities are also planned for the tourist to stay here. There will also be a lot of food items for the tourists here. There is also adequate parking space for vehicles here.

इस गांव में घूमने आये पर्यटक के लिए यहाँ के लोगों के साथ बातचीत करना बहुत ही आसान होता है। क्योंकि इस गांव के लोगों को हिंदी और इंग्लिश भाषा अच्छी तरह से आती है। इसलिए कोई पर्यटक इस गाँव के लोगों के साथ आसानी से अंग्रेजी में साथ बातचीत कर सकता हैं। पर्यटक के यहाँ रहने के लिए होमस्टे सुविधाओं का भी इंतेजाम है। पर्यटक के लिए यहाँ पर बहुत सी खाने की बुनियादी चीजें भी मिल जाएँगी। साथ ही यहाँ पर वाहनों के लिए पर्याप्त पार्किंग स्थान भी है।

There is a living root bridge in Mavelingong, this bridge is made from the roots of a huge tree, this bridge made from roots of trees is very old, tourists visiting this place are surprised to see this bridge. Located approximately five kilometers away from the living root bridge. A very beautiful Niriang falls. It is situated between the dense green forests, it is not easy to reach the Niriyang Falls. To reach Niriyang Falls, a steep trek has to be taken through a very slippery pathway. Even knowing that the journey is difficult, but even then tourists visiting here go to see Niriang falls, because a view of the waterfall can surprise any visitor.

मावलिनॉन्ग में एक जीवित पुल है, यह पुल एक विशाल पेड़ की जड़ों से निर्मित है, पेड़ों की जड़ों से बना यह पुल बहुत ही पुराना है, यह पर घूमने आये पर्यटक इस पुल के देखकर हैरान रह जाते है। जीवित मूल पुल से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित है। एक बहुत ही सूंदर निरियांग फॉल्स। यह घने हरे भरे जंगलों के बीच स्थित है इस निरियांग फॉल्स तक पहुंचना आसान काम नहीं है निरियांग फॉल्स तक पहुंचने के लिए एक बहुत ही फिसलन पत्थर के रास्ते के माध्यम से एक खड़ी ट्रेक लेना पड़ता है। जानते हुए भी की यात्रा कठिन है, लेकिन फिर भी यहाँ घूमने आये पर्यटक निरियांग फॉल्स को देखने के लिए जाते है, क्योकि झरने का एक दृश्य किसी भी आगंतुक को आश्चर्यचकित कर सकता है।

There is a natural equilibrium rock in the village, another strange natural phenomenon of boulder balancing on the second rock. Many people come here to see this rock and do many things about this rock. But hardly anyone has yet been able to tell about the natural balance of this rock.

गाँव में एक प्राकृतिक संतुलन वाली चट्टान है, दूसरी चट्टान पर बोल्डर के संतुलन की एक अजीब प्राकृतिक घटना है। बहुत से लोगों इस चट्टान देखने यहाँ आते है और इस चट्टान के बारे में बहुत सी बातें करते है। लेकिन शायद ही कोई आज तक इस चट्टान के प्राकृतिक संतुलन के बारे ठीक से नहीं बता पाया है।

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Eklavya


Eklavya-एकलव्य(A great warriors)

By the way, there have been many such great warriors in the ancient times of this world. Whose imagination we can not imagine in today's time Such a warrior who did many great things in his life, because of which he could become great. Today the world is talking about the history of those great warriors. One of the great warriors in history was the name of one of them. Eklavya,

Eklavya is a very small character in the Mahabharata war in India. The war of Mahabharata occurred in 3137 BC. Eklavya is known for his great archery and his love for master, Eklavya was the son of Hiranyudhanu and Sulekha. Eklavya was a dalit living in forests. Eklavya was a very beautiful and skilled child. Eklavya was very quick and intelligent since his childhood. Because of this, Eklavya soon learned all the weapons of his weapon.But Eklavya was not happy with this learned lore. Because Eklavya was very much interested in archery. So Eklavya wanted to learn more archery with weapon. Therefore Eklavya reached near the great Dronacharya for learning archery.

वैसे तो इस दुनिया के बीते हुए प्राचीन समय में बहुत से ऐसे-ऐसे महान योद्धा हुए है। जिनकी कल्पना हम आज के समय में नहीं कर सकते। ऐसे योद्धा जिन्होंने अपने जीवन में बहुत से महान कार्यो किये जिनकी के वजह से वह महान बन पाए। आज उन सभी महान योद्धाओं के इतिहास के बारे में दुनियाँ बात करती है। इतिहास के उन सभी महान योद्धाओं में से एक का नाम था। एकलव्य,

एकलव्य भारत में हुए महाभारत युद्ध का एक बहुत छोटा पात्र है। महाभारत का युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ था। एकलव्य को उसकी स्वयं सीखी गई महान धनुर्विद्या और अपने गुरु के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है, एकलव्य राजा हिरण्यधनु और सुलेखा का पुत्र था। एकलव्य जंगलों में रहने वाला एक दलित था। एकलव्य बहुत ही सूंदर और कुशल बालक था। एकलव्य बचपन से ही अपनी उम्र के बच्चों से काफी तेज और बुद्धिमान था। इसी वजह से एकलव्य जल्द ही अपनी सभी अस्त्र की विद्या को सीख गया। लेकिन एकलव्य अपनी इस सीखी हुई विद्या से खुश ना था। क्योंकि एकलव्य को धनुर्विद्या ज्यादा पसन्द थी। इसलिए एकलव्य को अस्त्र- शस्र के साथ और अधिक धनुर्विद्या को भी सीखना चाहता था। इसलिए धनुर्विद्या सीखने के लिए एकलव्य महान गुरु द्रोणाचार्य के पास जा पहुँचा।

master Dronacharya was the teacher who taught the greatest archery of the Mahabharata period. Who had promised to make his beloved disciple Arjuna the greatest archer of the world.When Eklavya reached for Dronacharya to learn archery. So Dronacharya refused to teach Eklavya to teach archery. Because Dronacharya taught only Kshatriyas and Brahmins. And Eklavya was from a dalit family living in forests. After refusing the Dronacharya, Eklavya did not give up.Eklavya made a statue of Dronacharya inside the forest. And considering the same idol as his Dronacharya, he started trying to learn archery every day.

गुरु द्रोणाचार्य महाभारत काल के सबसे महान धनुर्विद्या सिखाने वाले गुरु थे। जिन्होंने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को दुनिया का सबसे महान धनुर्धर बनाने का वचन दिया था। जब एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य के पास धनुर्विद्या सीखने के लिए पहुँचा। तो गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया। क्योंकि गुरु द्रोणाचार्य केवल क्षत्रिय और ब्राह्मण को ही शिक्षा दिया करते थे। और एकलव्य जंगलों में रहने वाला एक दलित परिवार से था। गुरु द्रोणाचार्य के मना करने के बाद एकलव्य ने हार नहीं मानी। एकलव्य ने जंगल के अंदर गुरु द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई। और उसी मूर्ति को अपना गुरु द्रोणाचार्य मानकर उसके आगे रोज धनुर्विद्या सीखने का प्रयास करने लगा।

Gradually the days began to pass. And then gradually changed in the years. One day master Dronacharya was going to the forest with his pupil Arjuna and a dog. Then suddenly his dog saw something And he started going straight into the forest, inside the jungle. For a while, the master Dronacharya and Arjun were heard listening to the sound of the dog. Then suddenly, they stopped listening to the sound of dog barking. On not hearing the voice of the dog, Guru Dronacharya and Arjun went behind the dog and started going inside the jungle. After going into some distance of the forest, master Dronacharya and Arjun saw that someone has attacked his dog with an arrow and closed his dog's mouth. Seeing this, Arjuna got very angry. And began to find the person who killed his dog. When Arjun was searching for that person. Suddenly, his eyes went towards master Dronacharya. And he saw that master Dronacharya is looking very carefully towards the dog. Arjun came to the master Dronacharya. And the master asked Dronacharya, what are you looking at? On Arjun's request, master Dronacharya said to Arjun, Arjun carefully look. Someone has hit their arrow inside our dog's mouth. Because of which our dog's mouth is closed. And see a drop of blood from the mouth of this dog does not come out. I'm pretty sure. Of course there is someone in this forest that knows archery very well.

धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। और फिर धीरे धीरे दिन सालों में बदल गए। एक दिन गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्य अर्जुन और एक कुत्ते के साथ जंगल में जा रहे थे। तभी अचानक से उनके कुत्ते ने कुछ देखा। और सीधे भोक्ता हुआ जंगल के अंदर जाने लगा। कुछ देर तक तो गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन को कुत्ते की भोखने की आवाज़ सुनाई देती रही। फिर अचानक से, उन्हें कुत्ते की भोकने की आवाज़ सुनाई देना बंद हो गई। कुत्ते की भोकने की आवाज़ सुनाई ना देने पर गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन कुत्ते के पीछे जंगल के अंदर जाने लगे। कुछ दूर जंगल के अंदर जाने के बाद गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन ने देखा की किसी ने उनके कुत्ते पर तीर से हमला करके उनके कुत्ते का मुँह बन्द कर दिया है। ये देखकर अर्जुन को बहुत गुस्सा आया। और उस व्यक्ति को खोजने लगा जिसने उनके कुत्ते को मारा था। अर्जुन जब उस वव्यक्ति को खोज रहा था। तभी अचानक से उसकी नजर गुरु द्रोणाचार्य की ओर गई। और उसने देखा की गुरु द्रोणाचार्य कुत्ते की ओर बहुत ध्यान से देख रहे है। अर्जुन गुरु द्रोणाचार्य के पास आया। और गुरु द्रोणाचार्य से पूछने लगा, ऐसे क्या देख रहे हो। अर्जुन के पूछने पर गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन से कहा, अर्जुन ध्यान से देखो। किसी ने हमारे कुत्ते के मुँह के अन्दर अपना तीर मारा है। जिसके कारण हमारे कुत्ते का मुँह बंद हो गया है। और देखो इस कुत्ते के मुँह से एक बूंद खून भी बाहर नहीं निकला। मुझे पूरा यकीन है। जरूर इस जंगल में ऐसा कोई तो है जो धनुर्विद्या को बहुत अच्छी तरह से जानता है।।

As it was said by master Dronacharya, Arjun said to Dronacharya, why did not we find that archery? And meet him. As Arjun says so, Dronacharya said, let's find that archer. While searching for the archer, Arjun and Dronacharya were going inside the jungle. Suddenly, his eyes fell on a young man. And he saw a beautiful young man trying to learn archery wearing a tribal dress in front of a statue. Seeing this, Arjun and Dronacharya went to that young man. And began to ask him. Have you killed our dog? Eklavya said, "Your dog was distracting my attention. So I had to kill him.

गुरु द्रोणाचार्य के ऐसा कहते ही, अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा, क्यों ना हम उस धनुर्धर को खोजे। और उससे मिले। अर्जुन के इतना कहते ही गुरु द्रोणाचार्य ने कहा, चलो उस धनुर्धर को खोजते है। धनुर्धर को खोजते हुए अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य जंगल के अन्दर चले जा रहे थे। तभी अचानक से उनकी नजर एक नौजवान पर पड़ी। और उन्होंने देखा की एक सुन्दर नौजवान एक मूर्ति के आगे आदिवासी के कपडे पहने हुए धनुर्विद्या सिखने का प्रयास कर रहा है। ये देखकर अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य उस नौजवान के पास गए। और उससे पूछने लगे। क्या तुम्हीं ने हमारे कुत्ते को मारा है। एकलव्य ने जबाब देते हुए कहा, आपका कुत्ता मेरा ध्यान भंग कर रहा था। इसलिए मुझे उसे मारना पड़ा।

Then master Dronacharya asked that young man, who are you? And where did you learn these archeology? The young man said to Dronacharya, My name is Eklavya. And I live in this forest. And I'm the son of Hiranyandhu and Sulekha. I have learned these archeology from you only. 10 years ago When I came to learn archery, then you refused to teach your archery. Then, as a master, I made an idol here. And then every day I started trying to learn archery in front of your idol.

फिर गुरु द्रोणाचार्य ने उस नौजवान से पूछा, तुम कौन हो। और तुमने ये धनुर्विद्या कहाँ से सीखी। उस नौजवान ने गुरु द्रोणाचार्य के कहा, मेरा नाम एकलव्य है। और मैं इसी जंगल में रहता हूँ। और मैं हिरण्यधनु और सुलेखा का पुत्र हूँ। मैंने ये धनुर्विद्या आपसे ही सीखी है। १० साल पहले। जब मैं आपके पास धनुर्विद्या सीखने आया था तब अपने धनुर्विद्या सीखाने से मना कर दिया था। तब आपको गुरु मानकर मैंने आपकी यहाँ पर एक मूर्ति बनाई। और फिर रोज मैं आपकी उस मूर्ति के आगे धनुर्विद्या सीखने का प्रयास करने लगा।

The Master Dronacharya was shocked to hear this. Dronacharya thought that this young man also knows Arctic archery from Arjun. If it does not stop, then the young man who lives in this forest will become a good archer even than Arjuna. Dronacharya said to Eklavya, I am your master. Will not you give me Donation? Eklavya said to Dronacharya, "You are my master. I will definitely give you whatever you want. master Dronacharya said, no, you can not give it. Eklavya then said to Dronacharya, I will definitely give you once you ask for it. Dronacharya said to Eklavya, If it is so, then I ask for your thumb of your right hand.

यह सुनकर गुरु द्रोणाचार्य हैरान रह गए गुरु द्रोणाचार्य ने सोचा ये नौजवान तो अर्जुन से भी भेतर धनुर्विद्या को जानता है। अगर इसे रोका नहीं तो ये जंगल में रहने वाला नौजवान अर्जुन से भी अच्छा धनुर्धर बन जायेगा। गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से कहा, तेरा गुरु तो मैं ही हूँ। क्या तुम मुझे गुरु दक्षिणा नहीं दोगे। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा, आप मेरे गुरु है। आप जो भी चाहो मांगो मैं आपको जरूर दूंगा। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा, नहीं तुम नहीं दे पाओगे। एकलव्य ने फिर गुरु द्रोणाचार्य से कहा, एक बार मांगिए तो मैं आपको जरूर दूँगा। गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से कहा, यदि ऐसा है तो मैं तुमसे तुम्हारे सीधे हाँथ का अँगूठा माँगता हूँ।

As soon as master Dronacharya asked Eklavya's right hand thumb.Arjun was surprised to hear about Dronacharya. And started thinking. What did this Master Dronacharya ask for Eklavya? Arjun felt that perhaps Eklavya would not give his thumb to Dronacharya. If he gave his thumb master Dronacharya. Then how will he run the arrow? Arjun was thinking about all this. Suddenly Eklavya got his knife and cut his right thumb and gave it to master Dronacharya. Arjun was surprised to see this.

गुरु द्रोणाचार्य ने जैसे ही, एकलव्य के सीधे हाँथ का अँगूठा माँगा। अर्जुन गुरु द्रोणाचार्य की बात सुनकर हैरान हो गया। और सोचने लगा। की गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से ये क्या मांग लिया। अर्जुन को लग रहा था की शायद एकलव्य अपना अँगूठा गुरु द्रोणाचार्य को नहीं देगा। यदि उसने अपना अँगूठा गुरु द्रोणाचार्य दे दिया। तो फिर वो तीर कैसे चलाएगा। अर्जुन ये सब सोच ही रहा था। की तभी अचानक से एकलव्य ने अपना चाकू निकला और अपने सीधे हाँथ का अँगूठा काटकर गुरु द्रोणाचार्य को दे दिया। ये देखकर अर्जुन हैरान रहा गया।

With the chopped thumb of Eklavya, master Dronacharya started going out of the forest. Then Arjun asked master Dronacharya, what did you do? You took the thumb of Eklavya. Now Eklavya will not be able to run all the arrows. Then Dronacharya said to Arjun, Eklavya is very good archer. If I did not do that. So you can not become the best archers. And I promised you I will make you the best archers in the world. Arjun said, but now whenever someone will call me the best archers. Then the sliced ​​thumb of Eklavya will laugh at me.

एकलव्य का कटा हुआ अँगूठा लेकर गुरु द्रोणाचार्य वापस जंगल से बाहर जाने लगे। तभी अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा, यह आपने क्या किया। आपने एकलव्य का अँगूठा ले लिया। अब एकलव्य सारी जिंदगी तीर नहीं चला पाएगा। फिर गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन से कहा, एकलव्य बहुत अच्छा धनुर्धर है। यदि मैं ऐसा ना करता। तो तुम सबसे अच्छे धनुर्धर नहीं बन पाते। और मैंने तुम्हे वचन दिया था। की मैंने तुम्हे दुनिया का सबसे अच्छा धनुर्धर बनाऊंगा। अर्जुन ने कहा, लेकिन अब जब भी कोई मुझे सबसे अच्छा धनुर्धर कहेगा। तो एकलव्य का कटा हुआ अँगूठा मेरे ऊपर हंसेगा।

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Krishna

भगवान श्रीकृष्ण-Lord Krishna

Krishna-Krishna is the incarnation of Lord Vishnu. According to the mythological belief or whatever the astrologers and texts, Lord Vishnu has many incarnations on earth. Of which Krishna is also an incarnation of his. Krishna is a major god in Hinduism. They are worshiped as the eighth incarnation of Lord Vishnu. And by some even as supreme God in themselves. Krishna God is the God of mercy, tenderness and love in Hindu religion. And the most popular and widely revered in the Indian diaspora Krishna's birthday is celebrated every year by Hindus on Janmashtami according to the Hindu Calendar. According to the calendar that comes in late August or early September.

कृष्णा-कृष्णा भगवान विष्णु का अवतार है। पौराणिक विश्वास या जो कुछ भी हो ज्योतिषियों और ग्रंथो के अनुसार भगवान विष्णु ने धरती पर बहुत से अवतार लिए। जिसमे से कृष्णा भी उनका एक अवतार है। कृष्णा हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। उन्हें भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है। और कुछ लोगों द्वारा अपने आप में सर्वोच्च भगवान के रूप में भी। कृष्णा भगवान हिंदू धर्म में दया, कोमलता और प्रेम के देवता हैं। और भारतीय दिव्यांगों में सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से पूजनीय हैं। कृष्ण का जन्मदिन हर साल हिंदुओं द्वारा जन्माष्टमी पर हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। जो कैलेंडर के अनुसार अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत में आता है।

According to legendary belief and legend, Lord Shrikrishna was born in the dark half of the Ashtami date, in a prison in Mathura of Rohini Nakshatra, in the dark night, Lord Krishna was born from the womb of Vasudev's wife Devaki. This date reminds of that auspicious time and is celebrated with great fanfare across the country.

पौराणिक विश्वास और कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के एक कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।

According to legendary beliefs and legends, it is believed that before Lord Krishna was born.

In the Dwapar era, Bhojwanshi king Ugrasen ruled in Mathura. His fierce son Kans lifted him from the throne and himself became the king of Mathura. A sister of Kansa was Devaki, who was married to the Yaduvanshi Sardar Vasudeva.

पौराणिक विश्वास और कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है की भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले.

द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।

Its just matter of one day. Kans was going to deliver her in-laws to her sister Devaki. Suddenly there was an airway on the way- 'Hey Kanas, the eighth son of your sister who is taking you to get her in-laws, will kill you. As soon as Kans heard this, Kans got ready to kill Vasudev, the sister of his sister Devaki. Upon listening to this, the sister of Kansa, Devaki, said with humility: "Brother, that child will come from my womb. I will bring him to you. What is the benefit of killing brother-in-law?

एक दिन की बात है। कन्स अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। तभी अचानक से रास्ते में एक आकाशवाणी हुई- 'हे कन्स , तू अपनी जिस बहन को उसके ससुराल पहुंचाने ले जा रहा है, उसी बहन का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा। जैसे ही कंस ने ये सुना, तो कंस अपनी बहन देवकी के पति वसुदेव को मारने के लिए तैयार हो गया। यह सुनकर कंस की बहन देवकी ने विनयपूर्वक कंस से कहा,भईया मेरे गर्भ से जो संतान होगी।उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?'


Kanas accepted his sister Devaki. And came back to Mathura. But he put Vasudev and Devaki in jail. Vasudev and Devaki each had seven children. And seven of them were killed by Kams as soon as they were born. Now the eighth child was going to be. In the prison they were seized with stern guards. At the same time, Nand's wife Yashoda was also going to be a child. Vasudev and Devaki were now going to be the eighth child. Vasudeva and Devaki started calling for God as always, to save their child. God created a remedy to protect his eighth child, seeing the sad life of Vasudev and Devaki. When Vasudeva and Devaki were born, at the same time, a daughter was born from Yashoda's womb. Nothing else It was just charlantanry. In the dark prison, Devaki and Vasudev were imprisoned. There was a sudden light in it. And the quadrangle, the circle, the mace, and the Padma in front of them appeared in the quadrangular Lord. Vasudev and Devaki both fall at the feet of God. Then God told him- "Now the time has come. When I will be born again as a newborn As soon as I was born You leave me at the same time in your friend Nandji's house Vrindavan. And the daughter who is born here is born. Put it here and give it to Kans. At this time the environment is not friendly. Even then you do not worry. The watchmen will go to sleep, the gates of the prison will open themselves, and the fiercely unbless Yamuna will give you a way to cross.

कंस ने अपनी बहन देवकी की बात मान ली। और वापस मथुरा चला आया। लेकिन उसने वसुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया। वसुदेव और देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए। और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। वसुदेव और देवकी का अब आठवां बच्चा होने वाला था।अपने बच्चे को बचाने के लिए वसुदेव और देवकी हमेशा के तरह भगवान को पुकारने लगे। भगवान ने वसुदेव और देवकी के दुखी जीवन को देख उनके आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव और देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। जो और कुछ नहीं। सिर्फ माया थी। जिस अंधरे कारागार में देवकी और वसुदेव कैद थे। उसमें अचानक प्रकाश हुआ। और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। वसुदेव और देवकी दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब अब समय आ गया है। जब मैं पुनः नवजात शिशु के रूप में लूंगा। मेरे जन्म लेते ही। तुम मुझे उसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में छोड़ आओ। और उनके यहाँ जो कन्या जन्मी है। उसे यहाँ लाकर कन्स के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।



At the same time, Vasudev came out of the jail by placing Shrikrishna in a basket in the form of a newborn baby, and he crossed the Yamuna and reached Nandji's house. There he slept newborn baby Krishna with Yashoda.And with her daughter came to Mathura. The doors of the prison stopped undoing.Now Kans received information that Vasudev-Devaki was born to a child.He went to the jail and took away the newborn girl from Devaki's hands and wanted to slay her on the earth, but the girl flew into the sky and said from there- 'O fool, what will happen if I kill you? Your killer has reached Vrindavan. He will soon punish you for your sins. ' This is the story of Krishna birth

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु के रूप में श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखकर कारागृह से निकल पड़े, और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु श्रीकृष्ण को यशोदा के साथ सुला दिया। और अपने साथ कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' यह है कृष्ण जन्म की कथा

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Kumbh

कुम्भ मेला-Kumbh festivals

कुम्भ मेला-कुम्भ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है ये एक ऐसा त्योहार जो एक ही जगह पर एक साथ हजारों लोग मनाते है, कुम्भ मेला भारत में लगने वाला सबसे बड़ा मेला है यह मेला भारत के चार मुख्य जगहों पर लगाया जाता है और यह मेला ३ साल में एक बार लगाया जाता है प्राचीन कथाओ के अनुसार भारत की जिन ४ जगहों पर यह कुम्भ मेला लगाया जाता है वहाँ पर अमृत की कुछ बुँदे स्वर्ग से गिरी थी और ये जगह है, हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक

Kumbh festivals-Kumbh festivals is an important festival of Hinduism, a festival that celebrates thousands of people together in one place. Kumbh fair is the biggest fair to be held in India. This fair is leased to four main places of India and this fair is organized once in three years, according to the ancient legend, the four places where this Kumbh fair is being organized. Some of the nectar was dropped from heaven and this place is Haridwar, Prayag, Ujjain and Nashik.

खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को कुम्भ स्नान-योग कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है।

According to astronomical calculations this fair begins on the day of Makar Sankranti, when the sun and moon enter into zodiac sign and zodiac sign, Aries. This Yoga is known as Aquarius bath-yoga, and this day is considered a special manga, because it is believed that on this day the doors of high seas from the earth open on this day and thus by bathing on this day The soul gets the realization of high seasons with ease. Bathing here is considered as a paradise paradise.

पौराणिक विश्वास जो कुछ भी हो ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी(हरिद्वार) स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनीअंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है। हालाँकि सभी हिंदू त्योहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते है, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है।

Whatever the mythological belief, according to astrologers, the extraordinary significance of Aquarius is connected with Jupiter's entry into the Aquarius and entering the Aries of the Sun. The position of the planetary center is on the banks of the Ganga, on the banks of the Ganges, on the location of Pauri (Haridwar), the Ganga water medicines and it becomes nectar in those days. That is why millions of pilgrims come here to take holy baths to purify their inner soul. From the spiritual point of view, the position of the planets in the period of semi-Aquarius is excellent for concentration and meditation. However, all Hindu festivals are of equal reverence and devotion Are celebrated together, but here are the highest number of tourists visiting the Kumbh and Kumbh festivals.


कुंभ मेला के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र जयंत अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा।

तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं।अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है। जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है,उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ मेला होता है।

Two or three mythological stories are prevalent in organizing the Kumbh festivals, the most of which is the deviation from nectar drops falling from the elixir of Aquarius received from sea monk by the devout demons. According to this legend, when Indra and other deities became weak due to the curse of Maharishi Durvasa, then the demons invaded the Gods and defeated them. Then all the gods went to Lord Vishnu and told him the whole story. Then Lord Vishnu, with his demons, chanted Kshirsagar and advised to remove nectar. On such saying of Lord Vishnu, the entire deity was engaged in a treaty with the demons and tried to remove the nectar. As soon as the emperor kumbh leaves, Indrutant Jayant flew into the sky about Amrut-kalash. After that, according to the order of Dainikguru Shukracharya, the monks take back the nectar

Followed Jayant and after the hard work, he caught Jayant in the middle of the road. Thereafter, there was an uninterrupted war for twelve days in the Dev-Demons for empowerment of Amrit kalash. During this mutual encounter, drops of nectar dropped from four zones of the earth (Prayag, Haridwar, Ujjain, Nashik). At that time, due to the decline of the moon, the sun began to decline, the master kept abducting the demons, and Saturn defended the fear of Devendra. To calm the quarrels, God took the form of Mohini and distributed the nectar to everyone and gave him a drink. Thus the war of dev-demon war was ended. There was an ongoing battle for twelve days between Dev-demons for achieving peace. Twelve days of the gods are equivalent to twelve years of human being. And then Aquarius also consists of twelve. Four of them are on earth and the remaining eight are Aquarius Devlok is there, only those who can attain Deogan, humans can not get there. At the time when Chandradesiks had protected the kalash, when the moon and sun-planet that protects the present zodiac signs of that time, the sum of the kumbh is in that period, in which year the amount of sun, moon and Jupiter is a coincidence. In the same year, in the sum of the same zodiac, wherever the nectar drops, there is Kumbh festivals.

कुम्भ मेले में पुरे भारत से और देश विदेश से बहुत से लोग अपने परिवारों के साथ यहाँ आते है कुम्भ के इस मेले में पुरे भारत बहुत से बहुत से साधू भी इस मेले में आते है

Many people from all over India and abroad from the Kumbh festivals come here with their families. In this festivals of Kumbh, a lot of India's many sadhus also come to this festivals .

कुम्भ मेला और साधु-वेदों और पुराणों के अनुसार हिंदू धर्म में कई प्रकार के साधु होते हैं नागा साधु और अघोरी बाबा। देखने में इनकी वेशभूषा एक जैसी लगती है। मगर इनके साधु बनने की प्रक्रिया और रहन-सहन और तप-साधना में काफी अंतर होता है। नागा साधु कुंभ में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं, लेकिन अघोरी बाबा कुंभ में नहीं जाते।

According to Kumbh festivals and Sage-Vedas and Puranas, there are many types of monks in Hinduism: Naga Sadhu and Agori Baba Seeing their costumes look the same. But there is a great difference between the process of becoming a monk and living and chastity. Naga sadhus take part in the kumbh, but the aghori Baba does not go to Kumbh festivals.


श्‍मशान में बनते हैं अघोरी-नागा और अघोरी साधु बनने के लिए काफी कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। दोनों ही प्रकार के साधु बनने की प्रक्रिय में करीब 12 वर्ष का समय लगता है। मगर इनकी प्रक्रिया काफी अलग होती है। नागा-साधु बनने के लिए अखाड़ों में दीक्षा लेनी पड़ती है, जबकि अघोरी बनने के लिए श्‍मशान में जिंदगी के कई साल काफी कठिनता के साथ श्‍मशान में गुजारने पड़ते हैं।

In the crematorium, it has to undergo a very difficult test to become aghori-naga and aghori monk. It takes about 12 years to process both types of monks. But their process is quite different. In order to become a Naga-sage, initiation has to be initiated in the akhaas, but in order to become an awakening, many years of life have to spend in the crematorium with great difficulty.

नागा साधु के होते हैं गुरु-नागा साधु बनने की प्रक्रिया में अखाडे़ के प्रमुख को अपना गुरु मानना पड़ता है और फिर उसकी शिक्षा-दीक्षा में नागा साधु बनने की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। वहीं अघोरियों के गुरु स्वयं भगवान शिव होते हैं। अघोरियों को भगवान शिव का ही पांचवां अवतार माना जाता है। अघोरी श्मशान में मुर्दे के पास बैठकर अपनी तपस्या करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उन्हें दैवीय शक्तियों की प्राप्ति होती है।

The Naga Sages are of the Guru-In the process of becoming a Naga Sage, the head of the akaday has to be regarded as his guru and then the process of becoming a Naga sadhu is completed in his education. At the same time, the master of the ghagoris themselves are Lord Shiva. Agaris are considered to be the fifth incarnation of Lord Shiva. Atghori crematoriums sit near the idol and perform their penance. It is believed that by doing so he gets the divine powers.


नागा और अघोरी करते हैं ऐसा भोजन-नागा और अघोरी दोनों ही मांसाहारी होते हैं। हालांकि नागाओं में कुछ शाकाहार भी करते हैं। किंतु अघोरी शाकाहारी नहीं होते, माना जाता है कि ये न केवल जानवरों का मांस खाते हैं, बल्कि ये इंसानों के मांस का भी भक्षण करते हैं। ये श्मशान में मुर्दों के मांस का भक्षण करते हैं।

Naga and Aghori do such food-Both Naga and Aghori are carnivores. Although some vegetarians also do in Nagas But the non-vegetarians are not considered vegetarian, they not only eat the meat of animals, but they also feed the human flesh. They feed the flesh of the dead in cremation grounds.

नागा और अघोरी बाबा के पहनावे-नागा और अघोरी बाबा के पहनावे-ओढ़ावे में भी काफी अंतर होता है नागा साधु बिना कपड़ों के रहते हैं। जबकि अघोरी ऐसे नहीं रहते। भगवान शिव के ये सच्चे भक्त उन्हीं की तरह ही जानवरों की से अपने तन का निचला हिस्सा ढकते हैं।

Naga and Aghori baba's clothes-There is a great difference in the dress and necklace of Naga and Aghori Baba, Naga Sadhus live without clothes. Whereas, do not live like this. Like these, these true devotees of Lord Shiva cover the lower part of their body with animals.

जीवित रहते हुए भी कर देते हैं, अपना अंतिम संस्कार। नागा और अघोरी दोनों ही पूरे तरीके से परिवार से दूर रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। नागा और अघोरी। इन दोनों को ही साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले अपना अंतिम संस्कार करना होता है। और इस वक्त ये अपने परिवार को भी त्याग देने का प्रण लेते हैं। परिजनों और बाकी दुनिया के लिए भी ये मृत हो जाते हैं।और अपनी तपस्या को पूरा करने के लिए। वह फिर कभी भी अपने परिवार वालों से नहीं मिलते।

Even after living, do your funeral. Both Naga and Aghori abstain from family and follow complete Brahmacharya. Naga and Aghori In the process of becoming a monk, both of them have to do their last rites first. And at the same time, they also want to sacrifice their family. They also become dead for the family and the rest of the world. And to complete their penance. He never meets his family members again.

अघोरी सदैव श्मशान में ही बिताते हैं वक्त- नागा साधुओं के दर्शन अक्सर हो जाया करते हैं, मगर अघोरी कहीं भी नजर नहीं आते। ये केवन श्मशान में ही वास करते हैं। जबकि नागा साधु कुंभ जैसे धार्मिक समारोह में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और उसके बाद यह वापस हिमालय की ओर चले जाते हैं। मान्यता है कि नागा साधु के दर्शन करने के बाद अघोरी के दर्शन करना भगवान शिव के दर्शन करने के बराबर होता है।

Agghori always spend time in the crematorium- The philosophy of Naga sadhus is often done, but the arrogance is not seen anywhere. These poets reside in cremation grounds. While the Nagas take part in religious ceremonies like Sadhu Kumbha and after that they go back to the Himalaya. It is believed that after seeing Naga Sadhu Lord is equal to seeing Lord Shiva.


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